लालच में लिया फैसला अंत में दुःख ही देता है। शिवसेना से बेहतर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण और कौन ही हो सकता है। महाराष्ट्र सरकार की तीन पहिए वाली सरकार का एक पहिया शिवसेना है, जबकि बचे दो पहिये कांग्रेस और एनसीपी हैं। अब इस तीन विपरीत विचारों की टोली में AIMIM अर्थात असदुद्दीन ओवैसी की भी एंट्री होने वाली थी कि शिवसेना ने अपने हिंदूवादी टैग को न खोने की जुगत में इस पेशकश को ठुकरा दिया। लेकिन यह कोई अपने मूलभूत सिद्धांत से समझौते नहीं बल्कि उस डर से किया गया जो शिवसेना को भाजपा से लगता है।
भाजपा के पुनरुत्थान से डरती है शिवसेना
दरअसल, महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के पुनरुत्थान के डर से, शिवसेना ने ओवैसी की पार्टी से हाथ मिलाने से मना कर दिया। वैसे ही अपने पुराने कर्मकांडों से आज तक शिवसेना उभर नहीं पायी है। नवंबर 2019 से गठित हुई महाविकास अघाड़ी सरकार का गठन ही साजिशन हुआ था। भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाली शिवसेना ने चुनाव जीत लेने के बाद अपने असल रंग दिखाने शुरू कर दिए थे, यही कारण है कि शिवसेना ने सत्ता के लालच में अपने 3 दशक से अधिक पुराने राजनीतिक संबंधों में तिलांजलि देते हुए भाजपा से अलग हो गई थी।
इसके तुरंत बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने की आस में अपने वैचारिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और एनसीपी से समझौता कर सरकार बना ली। पहले दिन से ही तीनों की वैचारिक मतभिन्नता के चर्चे राज्य भर में हर ओर सुनाई देते रहे हैं। ऐसे में औरंगाबाद से सांसद इम्तियाज जलील ने शनिवार को एक मराठी समाचार चैनल से कहा कि एमवीए में एक और पहिया जोड़कर उसे तीन पहिया ऑटो-रिक्शा से चार पहिया ‘आरामदायक कार’ में बदला जा सकता है। बस राजनीति चंद शब्दों का खेल है और ये शब्द राज्य का सियासी पारा चढाने के लिए काफी थे।
और पढ़ें- आदित्य ठाकरे की उर्दू भाषा वाली होर्डिंग की तस्वीर आई सामने, शिवसेना अब सेक्युलर सेना बन गयी है?
बालासाहेब ठाकरे की वो पार्टी जिसका उदय ही हिंदुत्व पर काम करना रहा है, उस शिवसेना ने उद्धव ठाकरे की छत्रछाया में नित्त-निरंतर कुछ ऐसे रिकॉर्ड कायम किए हैं जिसकी परिकल्पना बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना में होना तो असंभव था। अक्सर गैर-भाजपा दलों द्वारा वोट ‘कटुआ’ होने का आरोप लगाया जाता है, हाल ही में उत्तर प्रदेश के चुनावों में, AIMIM ने महाराष्ट्र में सहयोगी कांग्रेस और एनसीपी के प्रस्ताव के साथ चुनाव लड़ा था। पार्टी ने कहा है कि वह “भाजपा और सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए” दोनों दलों (कांग्रेस-एनसीपी) के साथ हाथ मिलाने को तैयार है। महाराष्ट्र पहला राज्य है जहां AIMIM ने अपने गढ़ हैदराबाद के बाहर चुनाव जीता था।
अब शिवसना समझौते करने के लिए ही जानी जाती है
सामाजिक रूप से इस दावे को नकारने वाले कई बुद्धिजीवी थे पर जिस प्रकार पार्टी के भीतर पूर्व में हुई घटनाएं घटित हुईं थीं सभी का विश्वास डांवाडोल हो चुका था। शिवसना अब समझौते करने के लिए जानी जाती है क्योंकि उसने पहले भाजपा से अपने इतनी मधुर संबंध सत्ता के लालच में त्याग दिया और सरकार चलने के बाद आजतक आपसी सिरफुट्टवल सबके सामने है। AIMIM सांसद इम्तियाज जलील ने शनिवार को महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ गठबंधन का सुझाव दिया। जलील ने कहा कि राज्य में सत्तारूढ़ महा विकास अघाडी (एमवीए) गठबंधन तीन पहियों वाले एक ऑटो-रिक्शा से ‘आरामदायक कार’ में बदल सकता है, जो भाजपा को सत्ता में आने से रोकने में सक्षम होगा।
ऐसे में भाजपा से रूष्ट शिवसेना सरीके नेता AIMIM से बच रहे हैं। वहीं महाविकास अघाड़ी सरकार के दो अन्य पहिये कांग्रेस और एनसीपी तो इस गठबंधन का स्वागत करने में जुट चुके हैं। ऐसे में यह शिवसेना की इज़्ज़त पर आ गई बात थी क्योंकि जिस पार्टी की उत्पत्ति ही हिन्दू ह्रदय सम्राट जैसे शब्दों से हुई है, जिसके संस्थापक बालासाहेब ठाकरे रहे हों उसकी बेइज़्ज़ती कैसे की जा सकती है। यदि शिवसेना इस प्रस्ताव को भी स्वीकार कर लेती तो इस बार भूचाल ही आता। जनता ने भाजपा को दिए धोखे और सरकार बना मुख्यमंत्री बनने पर कुछ नहीं कहा था पर AIMIM के साथ जाने पर गाली भी पड़नी थी और फजीहत भी तबियत से होती।
और पढ़ें- ‘गोडसे से गांधी तक’ बाल ठाकरे के बाद कैसे बदली शिवसेना की प्राथमिकताएं
आगामी महाराष्ट्र निकाय चुनावों में संभावित गठबंधन की अटकलों के बीच, शिवसेना सांसद संजय राउत ने शनिवार (19 मार्च) को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से गठबंधन पर अपना रुख साफ कर दिया। राउत ने कहा कि, “अगर सिर्फ एक बैठक हुई है तो इसका मतलब यह नहीं है कि गठबंधन किया गया है। बात यह है कि महाराष्ट्र सरकार तीन दलों, शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी द्वारा बनाई गई है। किसी चौथे को शामिल नहीं किया जाएगा।”
फिलहाल गठबंधन को अकल्पनीय बताया गया है
गठबंधन की स्थिति को पूरी तरह से अकल्पनीय बताते हुए राउत ने कहा, “हमारी पार्टी छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज के मूल्यों पर बनी थी और उसी मूल्यों के साथ जारी रहेगी। हम ऐसी पार्टी के साथ गठबंधन क्यों करेंगे जो औरंगजेब के सामने झुकती है। एक और शिवसेना नेता एवं विधान परिषद सदस्य अंबादास दानवे ने कहा कि उस पार्टी के साथ गठबंधन का सवाल ही नहीं उठता है, जो ‘वंदे मातरम’ का विरोध करती है और ‘रजाकार’ की विचारधारा पर चलती है। ‘रजाकार’ 1947-48 में हैदराबाद में मुस्लिम शासन बनाए रखने और भारत में उसके विलय का विरोध करने के लिए तैनात अर्धसैनिक स्वयंसेवी बल था।
और पढ़ें- पूर्वांचलियों के आगे हाथ फैलाकर मदद की भीख मांग रही है ‘शिवसेना’
अपने पूरे मौकापरस्ती के इतिहास में शिवसेना ने इस बार AIMIM से इसलिए गठजोड़ नहीं बैठाया क्योंकि उसे यह डर था कि विरोधी दल अर्थात भाजपा इस बात का पूरा लाभ ऐसे उठा लेगी कि हिन्दू और हिंदुत्ववादी पार्टी के नाम पर राज्यभर में सिर्फ भाजपा ही रह जाएगी। इसी भय में शिवसेना ने AIMIM से गठजोड़ नहीं बैठाया वरना गालियां बहुत मिलती।