अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक ऐसा नारा है, जिसपर कांग्रेस ज़ोर देते नहीं थकती। उनके लिए यह उनके प्राणों से भी अधिक प्यारा है, परंतु तभी तक, जब तक यह उनके विचारों के विरुद्ध न हो। जहां कोई पुस्तक या फिल्म उनके विचार के विरुद्ध निकली या उनकी पोल खोलती दिखाई दी, तो समझ लीजिए कि काँग्रेस उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाएगी, जैसे अभी वह ‘द कश्मीर फाइल्स’ के पीछे पड़ी हुई है।‘द कश्मीर फाइल्स’ के पीछे कांग्रेस का वैचारिक विरोध किसी से नहीं छुपा है, लेकिन अभी जो राजस्थान के कोटा में हुआ, उससे प्रतीत होता है, कि कश्मीरी हिंदुओं के साथ हुई त्रासदी पर आधारित इस फिल्म से कांग्रेस कितनी भयभीत है। ये फिल्म अब कांग्रेस के लिए कानून व्यवस्था को ‘भंग करने’ के समान है। हाल ही में कोटा प्रशासन ने एक ऑर्डर जारी किया है, जिसके अंतर्गत 21 अप्रैल, यानि अगले एक माह के लिए जिले में धारा 144 को लागू किया जा रहा है, जिसके लिए का प्रमुख बताए कारणों में से एक ‘द कश्मीर फाइल्स’ भी है –
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जी हाँ, आपने ठीक सुना ! जैसे पूर्व में दीपावली पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश राजस्थान के एक अन्य जिले में की गई थी, ठीक उसी प्रकार कांग्रेस शासित राजस्थान के कोटा जिले में ‘महिला सुरक्षा’ (आपने बिल्कुल ठीक पढ़ा ) के नाम पर कश्मीर फाइल्स को सुरक्षा व्यवस्था के लिए हानिकारक बताते हुए धारा 144 लगाने का निर्णय लिया गया है।
प्रतिबंधों और कांग्रेस का अटूट रिश्ता
हालांकि ये प्रथम बार नहीं है जब वास्तविक सच दिखाने पर कांग्रेस इतनी आक्रोशित हुई हो। ऐसी कई फिल्में हैं जिन्हें कांग्रेस सरकार ने केवल इसलिए प्रतिबंधित किया, क्योंकि वह या तो उनके विचारधारा के विरुद्ध थी, या फिर उनकी पोल खोलती थी |
कांग्रेस द्वारा प्रतिबंधित सबसे पहली फिल्म- ‘नील आकाशेर नीचे’
नेहरू प्रशासन के समय से ही यह प्रतिबंधों का खेल शुरू हो गया, जब 1959 में बंगाली फिल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ को अकारण ही प्रतिबंधित कर दिया गया। मृणाल सेन द्वारा निर्देशित इस फिल्म में दूर दूर तक कोई भी भड़काऊ कॉन्टेन्ट नहीं था।
कांग्रेस द्वारा प्रतिबंधित दूसरी फिल्म- ‘आंधी’
इस फिल्म को लेकर जितना विवाद उपजा, उतना तो शायद ही किसी फिल्म के साथ हुआ। प्रसिद्ध लेखक, गीतकार एवं फिल्मकार सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलज़ार द्वारा निर्देशित इस फिल्म में संजीव कुमार एवं सुचित्रा सेन प्रमुख भूमिकाओं में थी, और ये नेहरू सरकार में मंत्री रही तारकेश्वरी सिन्हा पर आधारित थी। परंतु आपातकाल के समय प्रदर्शित इस फिल्म को लेकर ये अफवाह फैला दी गया कि यह फिल्म इंदिरा गांधी पर आधारित है, जिसके चलते इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया, और ये तभी हटा, जब 1977 में इंदिरा गांधी की सरकार चली गयी ।
कांग्रेस द्वारा प्रतिबंधित तीसरी फिल्म है ‘किस्सा कुर्सी का’
आंधी तो फिर भी भाग्यशाली थी कि उसे प्रदर्शित होने का अवसर मिला, परंतु एक फिल्म ऐसी भी थी, जिसे प्रदर्शित भी नहीं होने दिया गया। अमृत नाहता द्वारा निर्देशित ‘किस्सा कुर्सी का’ एक व्यंग्यात्मक फिल्म थी, जिसे प्रदर्शित होना तो दूर की बात, उसके प्रिन्ट तक कांग्रेस नेताओं की देख रेख में एक फैक्ट्री में जला दिए गए। जो कुछ बचा खुचा उससे एक टेलीफ़िल्म बनाकर बाद में प्रदर्शित किया गया।
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कांग्रेस द्वारा प्रतिबंधित चौथी फिल्म- ‘कुट्टरापथरीकाई (Kuttrapathirikai)’
इस फिल्म पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि वह वास्तव में कितनी उदार है। 1991 में निर्मित यह फिल्म LTTE से संबंधित श्रीलंकाई गृह युद्ध पर आधारित थी, और 1993 में प्रदर्शित होने को भी तैयार थी, परंतु इस पर कांग्रेस सरकार ने प्रतिबंध लगाया, क्योंकि ये ‘उग्रवाद’ को बढ़ावा देती थी, जबकि इसमें राजीव गांधी की हत्या को भी चित्रित किया गया था। रोचक बात तो यह थी कि अनुपम खेर ने ही पूर्व प्रधानमंत्री की भूमिका भी निभाई गई थी। मद्रास हाईकोर्ट द्वारा इस निर्णय को रद्द करने के पश्चात यह फिल्म 2007 में प्रदर्शित हुई।
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इसी भांति 2005 में सिन्स नामक एक फिल्म आई थी, जिसे कांग्रेस सरकार और कैथोलिक ईसाइयों ने लगभग प्रतिबंधित करा ही दिया था, परंतु वे पूर्णतया सफल नहीं हो पाए। आज जो कोटा में हुआ है, वह पूर्व में भी हो चुका है, और ये सिद्ध करता है कि कांग्रेस की कार्यशैली और विचारधारा पर सवाल उठते है तो काँग्रेस इससे बचने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।