शर्मनाक! हमारे विपक्षी पीएम उम्मीदवार के विचार ऐसे हैं!

दुःख होता है कि ऐसी घटिया मानसिकता वाले लोग हमारे देश में नेता हैं

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ओ सपने देखे बड़े बड़े, बड़ा ना कुछ भी करना पड़े, बुझी बुझी सी रंगत जिसकी, उडी उडी ख़ुश्बू..नाम है ममता, नाम है ममता। इस गाने के बोल अंततः इसलिए बदले गए क्योंकि ममता बनर्जी जो स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार के साथ ही 2024 का पीएम मोदी का प्रतिद्वंद्वी बनाने के भरसक प्रयास कर रही हैं, उनसे अपने बयानों पर काबू पाना ही मुश्किल पड़ रहा है। सपने हैं पीएम बनने के और ढंग चवन्नी का नहीं, कब क्या बोलना है इसकी सभ्यता तो टीएमसी में कभी रही ही नहीं, तो टीएमसी कार्यकर्ताओं की लीडर से क्या ही उम्मीद की जा सकती है। यूँ तो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, एक संवैधानिक पद पर बैठी हैं पर राजनीतिक सुचिता और कूटनीति से उनका कोई सरोकार नहीं है, उनका लेना देना है तो सिर्फ पीएम कैसे बनूँ उससे है। इसी क्रम में मैडम ने हाल ही में बड़बोलेपन की सारी सीमा और रेखाएं त्याग दीं और मोदी सरकार के ऊपर रूस और यूक्रेन के मध्य छिड़े युद्ध को बढ़ावा देने का आरोप मढ़ दिया।

ममता बनर्जी अपने क्रोध और अनर्गल बयानों के लिए बड़ी चर्चित बनी रहती हैं, उनका फाइनल एजेंडा विपक्ष का इकलौता चेहरा बन प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनना है जिसकी झलक कभी प्रशांत किशोर के साथ मेल-जोल से या शरद पवार के साथ बैठक में शामिल होने के बाद सभी को दिख ही जाती है। ऐसे में पीएम भी बनना है पर देश की इज़्ज़त की कोई फ़िकर नहीं है, देश के कूटनीतिक संबंधों से ममता का कोई वास्ता नहीं है। यही कारण है कि सत्ता के मद में चूर ममता बनर्जी बंगाल विजय के बाद पगला सी गई हैं और जबसे उनके कथित रणनीतिकार साथी पीके ने उनका साथ छोड़ा है तबसे तो ममता की हालत बड़ी दयनीय हो गई है।

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बेवकूफी की एक सीमा होती है 

ममता बनर्जी का एक वीडियो हाल ही में सामने आया है, जिसमें वे रूस और यूक्रेन युद्ध के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार बता रही हैं। ममता साफ कह कहती दिख रही हैं कि तुमको युद्ध शुरू करने के पहले सोचना नहीं चाहिए था कि हमारे बच्चे जब वापस आएंगे तो क्या खाएंगे? कहां जाएंगे, कैसे पढ़ेंगे।” निस्संदेह, खिस्यानी बिल्ली खंबा नोचे वाली प्रवृत्ति की आदी हो चुकी 2024 चुनावों के लिए स्वघोषित विपक्षी चेहरा मंमता बनर्जी ने इस बार अपने पद की भी गरिमा नहीं रखी। जहाँ विश्व अभी तक भारत को इस आशा भरी निगाह से देख रहा है कि यूक्रेन-रूस के इस द्वंद्व को शांत कराने में मात्र भारत ही कुछ कर सकता है, ऐसे में भारत के ही एक राज्य की मुख्यमंत्री जब ऐसे तुच्छ बयान दे तो उससे उस व्यक्ति नहीं पूरे देश की छवि पर गहरा असर पड़ता है। यूँ तो ममता बनर्जी को देश की इज़्ज़त की इतनी ही पड़ी होती तो वह ऐसा बयान देती ही नहीं। उन्हें राजनीति और पीएम बनने के कीड़े ने ऐसा बावला किया हुआ है कि भारत और उसकी अंतरर्राष्ट्रीय पटल पर सकारात्मक छवि को पल भर में धूमिल करने के कोई भी प्रयास खाली नहीं छोड़ रही हैं।

कोई विपक्षी पार्टी का नेता ऐसे बयान देता तो एक बार के लिए उसकी विवशता और राजनीति करने  मुद्दे के तौर पर इसे देखा जा सकता था पर ममता बनर्जी जो स्वयं एक पार्टी की सर्वेसर्वा, एक राज्य की मुख्यमंत्री होने के साथ ही स्वयं को प्रधानमंत्री पद के के सर्वोत्तम उम्मीदवार मानने वाली नेता हैं जिनके मुख से यह शब्द फूट पडे।  एक बार के लिए उन्हें विपक्ष का भावी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान भी लिया जाए तो विश्व क्या सोचेगा कि इनके नेताओं की सोच अपने ही देश के प्रति ऐसी है। अरे, राहुल गांधी ने भी अब सोना-आलू करना बंद कर दिया है, ममता के इस बयान के बाद तो अब राहुल गाँधी कई ज़्यादा परिपक्व दिखाई पड़ते हैं। ममता के इस बयान में पीएम मोदी के प्रति तो उबाल था ही पर उनकी संवेदनशून्यता ने इस बार उनके सभी कर्मों को पीछे छोड़ दिया।

शर्मनाक!

ममता के इस भाषण का वीडियो पश्चिम बंगाल के भाजपा विधायक और विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने ट्विटर पर शेयर किया है। उन्होंने लिखा है – माननीय विदेश मंत्री एस जयशंकर कृपया ये वीडियो देखें और स्थित स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास करें। मुझे शर्म आती है कि हमारी मुख्यमंत्री की गलती से आपको अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है।

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यह वीडियो कल का बताया जा रहा है। सुवेंदु ने वीडियो पोस्ट में लिखा- हमारी मुख्यमंत्री कल अपनी सीमा को पार कर गईं और केंद्र सरकार पर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध भड़काने का आरोप लगाया। क्या उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि इन शब्दों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कूटनीतिक रूप से किया जा सकता है? हमारी विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध प्रभावित हो सकते हैं।

सत्य तो यह है कि राजनीति करने के लिए ही कोई राजनेता इस समाज में कदम रखता है, पर राजनीति के दायरे और उसके मानदंडों की लंका दहन करना बेशर्मी की सबसे बड़ी पराकाष्ठा है। ममता बनर्जी ने न केवल भारत के संबंधों की वैश्विक स्तर की मिट्टी पलीत करने का प्रयास किया बल्कि छिड़े हुए युद्ध में भी दूसरे देशों के मन में भारत की तटस्थ छवि को केवल युद्ध को बढ़ावा देने का माध्यम बना दिया जो शर्मनाक है। अंत में अब देश ममता बनर्जी से इतना ही कह रहा है कि “ममता, तुमसे न होबे और तुमसा न कोई बेशर्म!”

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