पिछले दिनों कर्नाटक में हुए हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला आ चुका है। अपने निर्णय में हाई कोर्ट ने कहा कि हिजाब इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इस प्रकार कोर्ट ने सरकार के निर्णय पर मुहर लगा दी है, जिसके बाद यह तय हो गया है कि मुस्लिम महिलाओं को शिक्षण संस्थाओं में बुर्का तथा हिजाब जैसे वस्त्र पहनने की अनुमति नहीं होगी। कोर्ट के समक्ष तीन प्रश्न थे। प्रथम क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित इस्लामी आस्था के तहत हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है? द्वितीय, क्या स्कूल यूनिफॉर्म का निर्देश अनुच्छेद 19 (ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 21 (निजता का अधिकार) के तहत छात्र के अधिकारों का उल्लंघन है? और तृतीय, क्या 5 फरवरी को सरकारी आदेश “मनमाने ढंग से जारी किया गया” ?
और पढ़ें: हिजाब आंदोलन ‘सांस्कृतिक’ नहीं, बल्कि ‘राजनीतिक इस्लाम’ का हिस्सा है
कोर्ट ने कही ये बात
कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा, “हम मानते हैं कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। दूसरे प्रश्न का उत्तर यह है कि हमारा यह सुविचारित मत है कि स्कूल यूनिफॉर्म का निर्धारण केवल एक उचित प्रतिबंध है, संवैधानिक रूप से अनुमेय है, जिस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते। तीसरे प्रश्न का उत्तर यह है कि सरकार के पास आदेश जारी करने का अधिकार है और इसके अमान्य होने का कोई मामला नहीं बनता है।“
TFI ने पहले ही अपने एक लेख के माध्यम से बताया था कि हिजाब या बुर्का इस्लाम के मूलभूत अवयव नहीं है। जैसे- गौ, गंगा, गीता और गायत्री आदि हिंदुओं के धार्मिक स्तम्भ हैं, वैसे ही कृपाण, कंघा, कडा और केश सिखों के धार्मिक आधार हैं, उसी तरह हज, जकात और कुरान आदि मुसलमानों के। इन सभी में हिजाब और बुर्का का उल्लेख कहीं भी नहीं है। हिजाब सांस्कृतिक इस्लाम न होकर राजनीतिक इस्लाम का मूलभूत अवयव है। राजनीतिक इस्लाम से तात्पर्य एक ऐसे विचार से है, जो समाज के हर क्षेत्र को इस्लामिक कट्टरपंथी के प्रभाव में लेना चाहता है। हिजाब दिखावे का पहनावा है। अगर यह दीनदारों की निशानी है तो पहले मौलानाओं को बुर्का पहनना चाहिए क्योंकि सबसे बड़े दीनदार वही हैं!
विवाद के पीछे था PFI का हाथ
हालांकि, इस मामले पर कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है किंतु बड़ा सवाल यह भी है कि इस विवाद को जन्म देने के पीछे किन लोगों का हाथ था। यह सर्वविदित है कि जिन लड़कियों ने हिजाब को लेकर आंदोलन चलाया, वे अपने निजी जीवन में हिजाब पहनने को बहुत तवज्जो नहीं देती है। यह लड़कियां PFI के छात्र संगठन से जुड़ी थी और उन्होंने ही यह अनावश्यक विवाद पैदा किया। इतना ही नहीं जिस विद्यालय में यह विवाद चल रहा था, वहां से दो मुस्लिम युवकों को धारदार हथियारों के साथ पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इस पूरे विवाद के दौरान हिंदुओं की मॉबलिंचिंग की घटनाएं भी देखने को मिली। जब हिंदू युवकों और युवतिओं ने मुस्लिम कट्टरपंथ के विरुद्ध आवाज उठाई तो उन्हें मीडिया के विशेष वर्ग द्वारा आतंकवादी घोषित कर दिया गया। विद्यालय पर इस्लामिक कट्टरपंथी आतंकियों ने पथराव भी किया था।
अब हिजाब विवाद पर कोर्ट का फैसला आ चुका है, लेकिन बड़ा प्रश्न यह है कि समाज में ऐसे कट्टरपंथी अभी भी सक्रिय हैं। ऐसी मानसिकता के लोगों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। ऐसे लोग पीएफआई जैसे संगठनों से जुड़े हुए हैं और कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों में प्रभावी हैं। सरकार को सुरक्षा तंत्र में आवश्यक बदलाव करने चाहिए, जिससे इस्लामिक कट्टरपंथियों और आम मुसलमानों की निगरानी बढ़ाई जाए। जिससे ऐसे कट्टरपंथी आम मुसलमानों को बरगला कर भविष्य में सांप्रदायिक उन्माद न फैला सकें।