पंजाब में AAP की जीत केजरीवाल को पार्टी से बाहर कर सकती है

महत्वाकांक्षा की जंग में अब AK की हार तय है!

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पंजाब की चुनाव परिणाम बाद क्या होगा ‘केजरीवाल का हाल’, यही है सबसे बड़ा सवाल? जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना। दरअसल, चुनाव में विजय उपरांत किसी पार्टी का सर्वोच्च नेता सबसे ज्यादा सुखी निश्चिंत और सुरक्षित महसूस करता है लेकिन केजरीवाल के संदर्भ में ऐसा नहीं है क्यूंकि पंजाब में अगर आम आदमी पार्टी प्रचंड बहुमत से जीतती है तो केजरीवाल की मुश्किलें प्रचंड रूप से बढ़ जाएंगी।

हो सकता है उन्हें आम आदमी पार्टी से निकाल बाहर फेंका जाए। वैसे भी आम आदमी पार्टी के परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन में अपने सम्मानित नेताओं को पार्टी से निकाल फेंकना रीति-नीति रही है। केजरीवाल के साथ भी अगर कुछ ऐसा ही हो जाए तो कोई नई बात नहीं होगी। अब हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसके पीछे के तर्को और तथ्यों से आपको अवगत करा देते हैं और वैसे भी राजनीति संभावनाओं का ही खेल है। संभावनाएं और समीकरण बनते बिगड़ते रहते हैं। आज का राजा कल का रंक और फकीर भी हो सकता है।

नमस्कार, आप देख रहे हैं TFI जो है देश का सबसे बड़ा न्यूज़ मीडिया पोर्टल और मैं अनिकेत राज आज अपने दर्शकों को बताऊंगा कि आखिर क्यों पंजाब में आम आदमी पार्टी की बड़ी जीत ना सिर्फ केजरीवाल के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होगी बल्कि आम आदमी पार्टी के विघटन और केजरीवाल के राजनीतिक सफर का अंत भी सिद्ध हो सकती है?

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महत्वाकांक्षा के भूखें हैं केजरीवाल-

हम सभी जानते हैं कि केजरीवाल राजनीतिक रूप से एक महत्वकांक्षी व्यक्ति हैं। सत्ता ही उनका एकमात्र सिद्धांत है। हम लोगों के मन में हमेशा से एक भ्रम रहा है कि केजरीवाल एक प्रशासनिक व्यक्ति या फिर एक सामाजिक कार्यकर्ता है, पर ऐसा नहीं है। केजरीवाल ने एक कपटी राजनेता की तरह इन दोनों चीजों का इस्तेमाल, जनता को दिग्भ्रमित करके सत्ता हासिल करने के लिए किया है। उन्होंने अन्ना हजारे, प्रशांत भूषण, आशीष खेतान और कुमार विश्वास सरीखे नेताओं का प्रयोग कर लोकपाल के मुद्दे को एक बड़े जन आंदोलन में परिवर्तित किया। इसे वह आज तक पूरा नहीं कर सके पर इस भ्रम जाल के माध्यम से वह सत्ता के शिखर पर अवश्य पहुंच गए। पर, अभी भी उनके मन में राजनीतिक सर्वोच्चता को प्राप्त करने की अभिलाषा गई नहीं है।

केजरीवाल भी जानते हैं कि दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त गवर्नर के अधीन इसकी प्रशासनिक और पुलिस व्यवस्था है। उनके जिम्मे सिर्फ जनता का विकास और कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े ही मुद्दे हैं। परंतु स्वयं को तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता और आम आदमी के रूप में चिन्हित करने वाले केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से खुश नहीं है। वह ज्यादा से ज्यादा ताकत तथा पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था पर अपना कब्जा चाहते हैं। इसीलिए, वह दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा भी दिलवाना चाहते हैं पर केंद्र में मोदी सरकार के रहते ऐसा नहीं हो सकता है।

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अतः, केजरीवाल दिल्ली के बाहर के किसी राज्य पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए आतुर हैं और वह राज्य है-पंजाब। जैसा कि एग्जिट पोल में बताया जा रहा है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी एक बड़ी जीत की ओर बढ़ रही है।

भगवंत मान बनाम केजरीवाल की लड़ाई शुरू होगी

पंजाब में विधानसभा सीटों की संख्या 117 है और उम्मीद है की आम आदमी पार्टी 90 से 100 सीटें जीतने में कामयाब रहेगी। इसका तात्पर्य यह है जो भी व्यक्ति पंजाब का मुख्यमंत्री बनेगा वह वहां का निर्विवाद नेता होगा और उसके पास केजरीवाल से भी 20-30 अधिक विधायकों का समर्थन होगा। आप सभी जानते हैं कि पंजाब के वह नेता भगवंत मान हो सकते हैं। इससे दिल्ली से बाहर आम आदमी पार्टी के लिए एकमात्र लोकसभा सीट हासिल करने वाले भगवंत मान का कद काफी बढ़ जाएगा। वैसे भी भगवंत मान के प्रभाव के आगे पंजाब में केजरीवाल की एक नहीं चलती। हालांकि, केजरीवाल पंजाब पर कब्जा करना चाहते हैं पर उनके इस रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा भगवंत मान है। केजरीवाल की महत्वाकांक्षा का खुलासा कुमार विश्वास भी कर चुके हैं। जिसमें उन्होंने कहा था कि जब पंजाब में खालिस्तानी ताकतों का समर्थन करने के लिए उन्होंने केजरीवाल को रोका तो केजरीवाल ने कहा कि या तो वह पंजाब के मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर स्वतंत्र खालिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री। उनकी इसी कथन से उनके कुटिल नियत और गलत उद्देश्य का पर्दाफाश होता है।

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पर, अपनी इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने कठिन श्रम भी किया है। शायद इसीलिए पंजाब में केजरीवाल प्रचंड बहुमत से जीत रहे हैं अन्यथा किसान आंदोलन का समर्थन तो कांग्रेस और अकाली दल के नेताओं ने भी किया था और विकास के मुद्दे पर भी पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कोई अप्रत्याशित झंडे भी नहीं गाड़े पर, जीत फिर भी रहें है। मतलब साफ है, केजरीवाल ने खालिस्तानीयों का समर्थन प्राप्त कर पंजाब में आम आदमी पार्टी के लिए अंडरकरेंट का निर्माण किया और अब जीत की ओर बढ़ रहे हैं।

हालांकि, इसमें एक पेंच भी है। भगवंत मान भी राजनीतिक रूप से कोई नादान व्यक्ति नहीं है और महत्वाकांक्षा उनकी भी उतनी ही है जितनी की केजरीवाल की है। उन्होंने कई मौकों पर केजरीवाल को अपनी बात मानने के लिए मजबूर कर दिया है। अपनी राह में रोड़ा बनने वाले गुरप्रीत गोगी को उन्होंने जबरदस्ती आम आदमी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। यहां तक की मजीठिया से माफी मांगने के मुद्दे पर उन्होंने केजरीवाल को स्पष्टीकरण तक देने के लिए बाध्य कर दिया।

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भगवंत मान के सामने केजरीवाल की लाचारगी तब दिखी जब ना चाहते हुए भी केजरीवाल को आम जनसभा के सामने प्रत्यक्ष रुप से भगवंत मान को आम आदमी पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने के लिए बाध्य होना पड़ा। अब इन्हीं दोनों की महत्वकांक्षा आम आदमी पार्टी में कलह का कारण बनेगी और इस लड़ाई में घी डालने का काम आम आदमी पार्टी की वह दिग्गज नेता करेंगे, जो केजरीवाल और भगवंत मान से खार खाए बैठे हैं या फिर वो जो आम आदमी पार्टी में और अधिक ताकत और रुतबा हासिल करना चाहते हैं जैसे कि मनीष सिसोदिया और संजय सिंह सरीखे नेता।

भगवंत मान की छवि एक दारूबाज और अक्षम नेता के रूप में है जबकि विकास का ढोंग करने वाले केजरीवाल के विकास पुरुष की छवि भी ठंडी पड़ चुकी है। सार्वजनिक रूप से कमजोर हो चुके यह दोनों नेता पार्टी को ना सिर्फ कमजोर करेंगे बल्कि तोड़ भी देंगे। तो, तैयार हो जाइए 10 मार्च को पंजाब विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद आम आदमी पार्टी का विघटन और इस पार्टी से केजरीवाल का अपमानजनक निष्कासन देखने के लिए।

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