सरकार विवादित भारत-चीन सीमा के साथ लगने वाले कम आबादी वाले क्षेत्रों को विकसित करने के लिए एक वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम शुरू करने के लिए तैयार है, जाहिर तौर पर यह पड़ोसी कम्युनिस्ट देश चीन की चाल का मुकाबला करने के लिए और बसे हुए आबादी के विकास के लिए भारत का एक साहसिक पहल है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में केंद्रीय बजट 2022-23 पेश करते हुए उत्तरी सीमा पर विवादित भारत-चीन सीमा पर बस्तियों के लिए नए वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम (वीवीपी) की घोषणा की थी, पर सरकार अब इसे शीघ्रताशीघ्र कार्यान्वयन करने जा रही है। आपको बता दें की सरकार अपने इस एक तीर से दो निशाने साधेगी, आखिर कैसे?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में कहा था:- “कम आबादी वाले सीमावर्ती गांव, सीमित संपर्क और बुनियादी ढांचा अक्सर विकास लाभ से छूट जाते हैं, अतः, उत्तरी सीमा पर बसे ऐसे गांवों को नए वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत कवर किया जाएगा।” वीवीपी गांव के बुनियादी ढांचे के निर्माण, आवास, पर्यटन केंद्रों, सड़क संपर्क, विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा के प्रावधान, राष्ट्रीय टीवी नेटवर्क दूरदर्शन और शैक्षिक चैनलों के लिए प्रत्यक्ष घर तक पहुंच के साथ-साथ आजीविका सृजन के लिए समर्थन पर ध्यान केंद्रित करने की योजना है।
केंद्र सरकार वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम को लागू करने और सीमावर्ती बस्तियों के विकास के लिए अतिरिक्त धन मुहैया कराएगी। इसके अलावा, मौजूदा सरकारी योजनाओं को भी वीवीपी के रोल-आउट का समर्थन करने के लिए अभिसरण किया जाएगा। इस कदम का उद्देश्य स्पष्ट रूप से भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से सटे गांवों में लोगों के लिए रहना आसान बनाना और उन्हें अन्य स्थानों पर पलायन करने से रोकना है।
नई दिल्ली चिंतित है क्योंकि भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर काम आबादी बीजिंग के साथ सीमा वार्ता में उसके लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है। अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर दोनों पक्षों के सैन्य गतिरोध में शामिल होने के बाद से दोनों सरकारों के विशेष प्रतिनिधियों के नेतृत्व में भारत-चीन सीमा वार्ता रुकी हुई थी।
नई दिल्ली को संदेह है कि बीजिंग भविष्य में बातचीत फिर से शुरू होने की उम्मीद में अपने क्षेत्रीय दावों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। चीन न केवल भारत और भूटान के क्षेत्रों में गांवों का निर्माण कर रहा है, बल्कि तिब्बती और मंदारिन चीनी में अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलकर भी अपने दावों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
सीमा विवाद के समाधान के लिए राजनीतिक मापदंडों और मार्गदर्शक सिद्धांतों पर समझौते का लाभ उठाने के लिए कम्युनिस्ट देश की मंशा पर नई दिल्ली तेजी से चिंतित है, जिस पर भारत और चीन ने 2005 में हस्ताक्षर किए थे। 2005 के समझौते के अनुच्छेद VII में कहा गया है कि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए समझौता करते समय दोनों पक्ष सीमावर्ती क्षेत्रों में बसी आबादी के हितों की रक्षा करेंगे।
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सी हिना का नया भूमि सीमा कानून, जो 1 जनवरी को लागू हुआ, भारत और भूटान के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में गांवों और कस्बों के विकास और संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा में नागरिकों की भूमिका पर भी जोर देता है, जो इसकी विवादित सीमाओं के साथ बस्तियों का विस्तार करने की योजना का संकेत देता है।
अतः, भारत सरकार अपनी वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम से ना सिर्फ अपनी सीमावर्ती क्षेत्रों का सर्वांगीण विकास करेगा बल्कि चीन की साम्यवादी सरकार के विस्तार वाली चाल को भी मात दे, इससे भारत की संप्रभुता सुदृढ़ होगी बल्कि साथ ही साथ भारत का दावा भी मजबूत होगा। ऊपर से पूर्वोत्तर में जो विकास की धारा बहेगी, वह भारत को और भी मजबूत करेगा कुल मिलाकर सरकार का यह अभियान साहसिक और सराहनीय है।
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