ट्रेनों को ‘टकराव मुक्त’ बनाने के लिए भारतीय रेलवे का बड़ा कदम

रेलवे की यह नीति उसे अमेरिका और यूरोप के दर्जे की बना देगी!

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ट्रेन वो माध्यम है जिससे एक छोर से दूसरे छोर जाना सुगमता से पूर्ण हो जाता है। हवाई जहाज से पहले किसी भी आम भारतीय के लिए उसकी सस्ती-सुन्दर और टिकाऊ सवारी ट्रेन ही होती है। सुरक्षा के लिहाज से ट्रेन के हादसों को रोकना और उसकी क्षमताओं को निखारने की जिम्मेदारी रेल मंत्रालय की होती है, ऐसे में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की अपने इस मंत्रालय के प्रति संजीदगी और जवाबदेही दोगुनी बढ़ जाती है क्योंकि ट्रेन की सवारी की सुरक्षा रेल मंत्रालय की सर्वोच्च प्राथमिकता में से एक होती है।

इन चर्चाओं के बीच में भारतीय रेलवे ने एक ही ट्रैक पर विपरीत दिशाओं से आने वाले दो लोकोमोटिव में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वी के त्रिपाठी के साथ सिकंदराबाद के पास ट्रेनों के लिए एक स्वचालित टक्कर-रोधी प्रणाली कवच का लाइव प्रदर्शन किया। दोनों लोको एक दूसरे से 380 मीटर की दूरी पर अपने आप रुक गईं और इस नई तकनीक की वजह से दोनों ट्रेने आपस में टकराने से बच गईं।

अश्विनी वैष्णव कायाकल्प बदलने के लिए तैयार हैं-

दरअसल, रेल मंत्री बनने बाद से ही अश्विनी वैष्णव के प्रति लोगों का आशन्वित चेहरा देखते ही बनता है। चूंकि वो पूर्व में एक आईएएस अधिकारी रहे हैं ऐसे में रेल मंत्रालय के जीर्णोद्धार के लिए सभी की नज़रें वैष्णव पर टिकी हुई हैं। ऐसे में रेल यात्रा के दौरान यात्रियों की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा होता है और उससे निपट लिया गया तो समझिये की रेल की स्थिति नित्त-निरंतर बुलंदियां छूने लगेगी। उसी को ध्यान में रखते हुए अश्विनी वैष्णव ने भी मंत्रालय की प्राथमिकताओं की सूची में यात्रियों की सुरक्षा पर काम करना प्रारंभ कर दिया है।

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यूँ तो भारतीय रेलवे का सबसे बड़ा लक्ष्य टक्कर-रोधी और स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली को लागू करके “शून्य दुर्घटनाएं” हासिल करना है। कवच इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जीपीएस और आरएफआईडी टैग का एक सेट है जो लोकोमोटिव, सिग्नलिंग सिस्टम और ट्रैक में होता है। उच्च रेडियो फ्रीक्वेंसी का उपयोग करते हुए, ये उपकरण एक दूसरे से बात करते हैं और प्रोग्रामिंग सिस्टम बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के कार्रवाई शुरू करता है। यदि सिस्टम को चालक द्वारा किसी भी मैनुअल त्रुटि या अनजाने में लाल सिग्नल कूदने जैसी किसी अन्य खराबी का पता चलता है, तो कवच के साथ लगे इंजन स्वचालित रूप से बंद हो जाएंगे। अधिकारियों ने कहा कि कवच को जल्द ही दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-कोलकाता कॉरिडोर पर तैनात किया जाएगा, जिन्हें 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने की अनुमति देने के लिए अपग्रेड किया जा रहा है।

अब तक, कवच को लगभग 1,200 किलोमीटर रेलवे ट्रैक पर तैनात किया गया है और अगले दो महीनों में और 264 किलोमीटर को कवर किया जाएगा। सिस्टम को इस तरह से निर्मित किया गया है कि यदि कवच उसी ट्रैक पर दूसरी ट्रेन को नोटिस करता है तो यह ट्रेन को स्वचालित रूप से रोक देता है। निश्चित रूप से यह गर्व करने की बात है कि कवच पर आई लागत उसके विदेशी अनुमानित लागत से आधे में पूर्ण हो रही है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार, “अगर हम यूरोप से ऐसी तकनीक लाते हैं तो इसे संचालित करने के लिए 1.5 करोड़ रुपये से 2 करोड़ रुपये प्रति किमी की लागत आएगी, जबकि ‘कवच’ की लागत 40 लाख रुपये से 50 लाख रुपये प्रति किमी के बीच होगी और यह पेशकश की जाने वाली तकनीक की तुलना में एक कदम आगे है। अगर इसे 7,000-8,000 किलोमीटर के रेलवे नेटवर्क में तैनात किया जा सकता है, तो उत्पाद को अन्य देशों में भी निर्यात किया जा सकता है।

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अप्रत्याशित रूप से सुरक्षित है यह तकनीक-

रेल मंत्रालय ने कहा कि कवच का वर्तमान अवतार-संस्करण सुरक्षा अखंडता स्तर 4 (Safety Integrity Level 4) नामक उच्चतम स्तर की सुरक्षा और विश्वसनीयता मानक का पालन करता है।  एक अन्य वीडियो में, वैष्णव को ले जाने वाला लोकोमोटिव अपने आप रुक गया क्योंकि यह किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए स्वयं में सक्षम है और खतरा भांपते ही वो सतर्क होकर स्वयं निर्णय ले लेता है। सरकार ने 2012 में ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम (टीसीएएस) के नाम से भारत का अपना एटीपी विकसित करने की प्रक्रिया शुरू की थी और 2014 में परीक्षण परीक्षण शुरू हुआ था।

ऐसे में धड़ल्ले से चल रही रेल परियोजनाओं के अतिरिक्त रेल यात्रा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मोदी सरकार कवच जैसी नई तकनीकों को अमल में लाने का वो काम कर रही है जिसके बारे में पहले ही सोचा जाना चाहिए था। ऐसे में जब-जब, जो-जो होना है, तब-तब सो-सो होता है वाला कथन सटीक सिद्ध होता है क्यूंकि अन्तोत्गत्वा करना तो सब मोदी सरकार को ही है, और सरकारों ने तो बस कुर्सी गर्म करने के अलावा कुछ किया नहीं।

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