भारत का आयुर्वेद उद्योग फार्मा कंपनियों की बैंड बजाने के लिए पूरी तरह तैयार है

2025 तक 1 ट्रिलियन का हो जाएगा आयुर्वेदिक दवाओं का बाजार

आयुर्वेद दवाइयों

Source- TFIPOST

मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत ने आर्थिक तरक्की का दौर देखा है। 8 वर्षों में तैयार किए गए आधार के बल पर ही आज भारतीय निर्यात एक वर्ष में 400 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। पिछले 8 वर्षों में रक्षा से लेकर टेलीकॉम तक, सभी क्षेत्रों ने अभूतपूर्व वृद्धि देखी है। आयुर्वेद भी इससे अछूता नहीं है। आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार के प्रयास का नतीजा यह हुआ है कि वर्ष 2014 में आयुर्वेद से जुड़ी दवाइयों का निर्यात 22 हजार करोड़ रुपये वार्षिक से बढ़कर अब 1 लाख 40 हजार करोड़ हो गया है।

बीते 26 मार्च को भारत ने WHO के साथ मिलकर पारंपरिक आयुर्वेद दवाइयों हेतु गुजरात में संयुक्त रूप से एक संस्थान खोलने का समझौता किया है। यह संस्थान ग्लोबल सेंटर के रूप में कार्य करेगा जो भारत के आयुर्वेद को वैश्विक बाजार उपलब्ध कराने में मदद करेगा। इस संदर्भ में देश को जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को एक ट्वीट में कहा, “भारत एक अत्याधुनिक WHO ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन का घर बनकर सम्मानित महसूस कर रहा है। यह केंद्र एक स्वस्थ ग्रह बनाने और वैश्विक भलाई के लिए हमारी समृद्ध पारंपरिक प्रथाओं का लाभ उठाने में योगदान देगा।”

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कोरोना के बाद आयुर्वेद की ओर बढ़ चली है दुनिया

WHO के प्रमुख डॉ टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने कहा, “यह सुनिश्चित करना कि सभी लोगों को सुरक्षित और प्रभावी उपचार मिल सके, WHO के मिशन का एक अनिवार्य हिस्सा है और यह नया केंद्र पारंपरिक औषधि में मौजूद के आधार पर विज्ञान की शक्ति को बढ़ाएगा।” WHO ने कहा कि केंद्र आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से पारंपरिक दवाओं की क्षमता को अधिकतम करने में मदद करेगा। ध्यान देने वाली बात है कि कोरोना काल में भारत सहित पूरी दुनिया ने आयुर्वेद और योग की शक्ति को स्वीकार किया है। हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें बताया गया था कि नीम पर प्रयोग करके कोरोना की दवा बनाने का प्रयोग, अमेरिकी और भारतीय वैज्ञानिकों ने किया है जो सफल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार नीम की छाल में कोरोना का इलाज है। नीम की छाल में ऐसे एंटीवायरल गुण होते हैं जो कोरोनावायरस के मूल रूप और नए वैरिएंट्स को टारगेट कर सकते हैं।

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2025 तक 1 ट्रिलियन का हो जाएगा आयुर्वेदिक दवाओं का बाजार

आपको बताते चलें कि एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना काल के पूर्व आयुर्वेदिक कंपनियों की वार्षिक वृद्धि दर 15 से 20 प्रतिशत रहती थी, जो कोरोना काल में बढ़कर 50 से 90 प्रतिशत वार्षिक के स्तर पर पहुंच गया। इस दौरान शहद की मांग में 45 प्रतिशत, च्यवनप्राश में 85 प्रतिशत की वृद्धि हुई और आयुर्वेदिक दुकानों में हल्दी की बिक्री में 40 प्रतिशत तक वृद्धि हुई। वहीं, कोरोना के फैलाव के पूर्व प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में आयुर्वेद बाजार का मूल्य वर्ष 2018 में INR 300 बिलियन था और पूर्वानुमान अवधि (2019-2024) के दौरान 16.06% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) पर विस्तार करते हुए, वर्ष 2024 तक INR 710.87 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद थी। अब कोरोना ने इस वृद्धि दर को और बढ़ा दिया है।

ऐसे में वर्ष 2024 तक आयुर्वेद से जुड़ी दवाइयों का बाजार 1 ट्रिलियन रुपये अर्थात् 1 लाख करोड़ रुपये हो सकता है। भारत आज एलोपैथी में दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है। सरकार दवाइयों के निर्माण हेतु आवश्यक API के निर्माण में आत्मनिर्भर होने के लिए प्रयास कर रही है और वर्ष 2025 तक भारत में API निर्माण शुरू हो जाएगा। एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स के स्वदेशी निर्माण हेतु PLI योजना शुरू की गई है। ड्रग रेगुलेशन के नियमों में ढील देकर, सिंगल विंडो सिस्टम के अंतर्गत इस क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब आयुर्वेदिक दवाइयों भी इस दौड़ का हिस्सा बन रही हैं, जिससे भारतीय मेडिकल सेक्टर का और विस्तार होने की संभावना है।

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