नीतीश कुमार के सुशासन की छवि पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। उनका जो कुछ भी राजनैतिक कैरियर और सत्ता में सहभागिता बची है, वह भाजपा की वजह से है। मात्र 45 सीटें जीतने के बावजूद भी भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री पद सौंप कर उन पर उपकार ही किया है। बिहार विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण में उन्हें अपने पक्ष में मतदान कराने के लिए जनता से भावनात्मक अपील करनी पड़ी और इसके साथ ही साथ इस चुनाव को अपना आखिरी चुनाव बताने का दांव भी चलना पड़ा। परंतु अब ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार से न तो राजनीति संभल रही है और ना ही उनमें कोई प्रशासनिक क्षमता बाकी रह गई है। प्रशासनिक क्षमता के अभाव के कारण ही सुशासन बाबू का चोला ओढ़े नीतीश कुमार पर अब लोग बिहार को मॉबक्रेसी में बदलने का आरोप लगाने लगे हैं।
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खबर है कि पश्चिमी चंपारण के बलथार पुलिस ने एक कॉन्स्टेबल की हत्या और तीन पुलिसवालों को गंभीर रूप से जख्मी करने के मामले में 14 लोगों को हिरासत में लिया है। वैसे चंपारण रेंज के डीआईजी प्रणव कुमार प्रवीण के अनुसार मुख्य आरोपी की खोजबीन अभी भी जारी है। यह दुर्घटना उस समय हुई जब गांव के सैकड़ों लोगों ने पश्चिमी चंपारण तथा भारत नेपाल के सीमा पर स्थित बलथर पुलिस चौकी पर उस समय हमला कर दिया जब पुलिस के हिरासत में एक 30 वर्षीय ग्रामीण की मौत की खबर आग की तरह गांव में फैली, मृतक का नाम अनिरुद्ध कुमार उर्फ अमृत यादव बताया जा रहा है जो कि बलथा पुलिस चौकी के अंतर्गत आने वाले आर्यनगर का रहने वाला है।
मृतक के बड़े भाई कन्हैया यादव ने पुलिस हिरासत में अपने भाई के ऊपर हुए बर्बरता को उसकी मौत का जिम्मेदार ठहराया है। इस हत्या से गुस्साए ग्रामीणों ने पुलिस चौकी पर हमला कर ना सिर्फ एक पुलिस वाले की हत्या की बल्कि टीम को गंभीर रूप से घायल करते हुए दर्जनों पुलिस के वाहनों को आग में झोंक दिया। वैसे इस मामले में बेतिया के एसपी उपेंद्र नाथ वर्मा ने अपना पक्ष रखते हुए स्पष्टीकरण दिया है कि अनिरुद्ध कुमार उर्फ अमृत यादव की मृत्यु पुलिस हिरासत में की गई बर्बरता की वजह से नहीं हुई बल्कि उसकी मृत्यु तब हुई जब वह पुलिस चौकी के परिसर में स्थित नलकूप से पानी पी रहा था और उसी समय मधुमक्खियों के एक झुंड ने उस पर हमला कर दिया जिससे उसका पूरा बदन सूज गया और उसकी मृत्यु हो गई।
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मृतक कॉन्स्टेबल का नाम रामजतन राय है जो कि बगल के पुरुषोत्तम पुरुषोत्तमपुर पुलिस स्टेशन से यहां पदस्थापित किया गया था। जख्मी पुलिस वालों के नाम हैं- चंदन कुमार, पप्पू कुमार शर्मा और राजेंद्र प्रसाद सिंह, जिन्हें उपचार के लिए सरकारी चिकित्सालय में भर्ती कराया जा चुका है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए विपक्षी राजनीतिक दल भी पूर्ण रूप से सक्रिय हो चुके हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीकटा से जनप्रतिनिधि वीरेंद्र गुप्ता ने इस मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
राजद और विपक्षी दल के नेता तेजस्वी यादव ने इस मामले पर ट्वीट करते हुए बिहार सरकार को फटकार लगाई और कहा कि प्रशासन पूरी तरीके से मोम कृषि को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि 24 घंटे के अंतराल में ही भीड़ के द्वारा तीन लोगों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। नीतीश कुमार ने बिहार को ‘लिंच बिहार’ में परिवर्तित कर दिया है। कानून और व्यवस्था नियंत्रण से बाहर हो चुकी है जबकि नीतीश कुमार अपराधियों से सांठगांठ करने में जुटे हैं।
बिहार को भीड़ तंत्र में परिवर्तित करने के लिए ना सिर्फ नीतीश सरकार उग्र भीड़ को प्रोत्साहित कर रही है बल्कि अपने प्रशासन को भी कानून से इतर काम करने की छूट दे रखी है। अभी हाल ही में कोसी के बाहुबली कहे जाने वाले पप्पू देव की मौत पर कई सुलगते सवाल उठ खड़े हुए हैं। पुलिस बता रही थी कि पप्पू देव की मौत हिरासत में दिल का दौरा पड़ने से हुई है, जबकि बिहार के एक राजनीतिक दल राष्ट्रीय जन जन पार्टी के चीफ आशुतोष ने इस मामले में आरोप लगाते हुए यह कहा है की पप्पू देव की हत्या सहरसा डीएसपी निशिकांत भारती ने लाठी-डंडों से पीट-पीटकर कर दी। क्योंकि पप्पू देव प्रशासन के समक्ष पहले ही आत्मसमर्पण कर चुके थे आनन-फानन में प्रशासन द्वारा बिना पोस्टमार्टम किए उनके शव को जलाने की तैयारी भी कर रही है उनके शरीर पर भी पिटाई के कई निशान देखने को मिले हैं।
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इन सभी मामलों को देख कर ऐसा लग रहा है कि नीतीश कुमार बिहार को पूर्ण रूप से भीड़ तंत्र में परिवर्तित कर रहे हैं और आने वाले समय में वह भी बिहार की जनता द्वारा वैसे ही अछूत करार कर दिए जाएंगे जैसे कि लालू प्रसाद यादव। नीतीश कुमार के पास तो कोई उचित और स्थापित जातीय समीकरण भी नहीं है जिसके बदले वह कम से कम राजनीतिक समझौता कर सकें।