एक बेहतरीन नेता हैं जयंत चौधरी लेकिन सपा की घंटी बांधे हुए हैं

भाजपा ही बेड़ा पार लगा सकती है!

उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मन मुताबिक नतीजे मिले हैं लेकिन अब इस पड़ाव को पार करने बाद उसे अपना किला 2024 में सुरक्षित रखने के लिए कई बड़े कदम उठाने होंगे। भाजपा ने कुल 255 सीटें जीतने के साथ ही सपा-आरएलडी के गठबंधन को भेदने का काम कर दिया। सपा ने कुल 111 सीटें तो आरएलडी ने कुल 8 सीटें जीती हैं। राजनीतिक गलियारों में इस गठबंधन के हारने के बावजूद जिस व्यक्ति की सबसे भारी पूछ हो रही है वो और कोई नहीं बल्कि आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी हैं।

कांग्रेस और बसपा से आगे निकल गयी जयंत की पार्टी

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, जयंत की पार्टी ने पश्चिमी यूपी में 8 सीटों पर जीत हासिल की, जहां उनकी पार्टी ने 33 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और लगभग 3 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया। इस प्रक्रिया में, यह कांग्रेस और बसपा से आगे जाते हुए राज्य में चौथी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भी उभरी है। परिणामों की घोषणा के बाद जयंत ने जनादेश को स्वीकार कर ट्विटर पर लिखा, “मैं जनता की राय का सम्मान करता हूं। सभी विजयी विधायकों को बधाई! उम्मीद है कि वे लोगों के भरोसे के अनुरूप काम करेंगे। कार्यकर्ताओं ने कड़ी मेहनत की है, और संघर्ष जारी रहेगा!”

और पढ़ें- यूपी में दमदार जीत के साथ योगी ने तोड़ डाले कई बड़े रिकॉर्ड्स

चुनाव में रालोद के अच्छे प्रदर्शन ने जयंत को उनके पिता और रालोद के संस्थापक अजीत सिंह से कहीं ज़्यादा आगे कर दिया है। अजीत सिंह के रहते हुए रालोद के पास 2017 के राज्य चुनावों में केवल एक सीट छपरौली थी। हालांकि, 2021 में कोविड के कारण उनके असामयिक निधन के बाद, जयंत ने पार्टी की बागडोर संभाली और इस एक के आंकड़े को आठ सीटों की ओर बढ़ाया। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना ​​है कि अजीत सिंह के साथ रालोद ने आत्मसमर्पण कर दिया था लेकिन जयंत ने सुनिश्चित किया कि पार्टी जीवित तो रहे ही और उसका उद्धार होने के साथ राजनीतिक रूप से फले-फूले। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने गठबंधन सहयोगी के तौर पर जयंत की पार्टी रालोद को जोड़ा। यह जमीनी हकीकत है कि जयंत एक जमीनी और मिलनसार नेता हैं। चौधरी चरण सिंह के मजबूत परिवार और राजनीतिक वंश और एक मिलनसार व्यक्तित्व के साथ जयंत अपने साथियों के बीच नेता वाली परिपाटी में से सबसे अलग हैं।

एक नेता के तौर पर खरे उतरे हैं जयंत

ज्ञात हो कि, शैक्षणिक रूप से सबल जयंत चौधरी पूर्व लोकसभा सांसद हैं, जिन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 2002 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से अकाउंटिंग और फाइनेंस में मास्टर्स पूरा किया। एक नेता के भीतर जिन मूल बातों का होना अत्यंत आवश्यक होता है जयंत उन सभी बिंदुओं पर खरे उतरते हैं। यूँ तो मूल रूप से उनकी पार्टी जाट समुदाय की राजनीति करती आई है पर जयंत अपने पुरखों की भांति उस जाति वाली राजनीति से इतर रहकर राजनीति करना पसंद करते हैं।

शायद यही कारण है कि भाजपा रालोद नेता के प्रति अपनी प्रशंसा स्पष्ट करने से कभी नहीं कतराती है। जनवरी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सांसद प्रवेश वर्मा के आवास पर जाट नेताओं के साथ बैठक की और कहा कि जयंत के लिए दरवाजे खुले हैं क्योंकि दोनों पार्टियों और समुदाय की विचारधारा समान है और दोनों राष्ट्रीय हित को पहले रखते हैं और इसके खिलाफ लड़ते रहे हैं। प्रवेश वर्मा ने बैठक के बाद में संवाददाताओं से कहा था कि, ‘बैठक में हमने सुझाव दिया है कि जाट समुदाय के लोग जयंत चौधरी से बात करें, भाजपा के दरवाजे हमेशा खुले हैं।”

 और पढ़ें-  योगी-मोदी देश के वो नेता हैं जिन्होंने सफलतापूर्वक परिवार के भीतर वोटों का बंटवारा किया है!

बीजेपी और उसके शीर्ष नेता शायद ही कभी विपक्षी नेताओं के साथ ऐसे फूल बरसाते हों, लेकिन जयंत चौधरी एक अपवाद प्रतीत होते हैं। अगर बीजेपी जयंत को भगवा पार्टी में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकती है, तो कोई बड़ी बता नहीं होगी। चुनाव बाद भी दल इधर से उधर होते हैं, यह एक धोखा नहीं भविष्य के लिए किया जा रहा आज का निवेश होगा। विधानसभा चुनावों ने संकेत दिया है कि 2024 के आम चुनाव किस ओर जा रहे हैं। हालांकि, अगर बीजेपी 2024 को पक्का करना चाहती है तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छह-सात विषम संसदीय सीटों को जयंत के साथ गठजोड़ कर सुनिश्चित कर सकती है।

मुस्लिम-जाट एकता की कहानी को भाजपा ने कर दिया फ्लॉप

14 महीने लंबे फर्जी किसानों के विरोध के बाद विपक्ष ने मुस्लिम-जाट एकता की कहानी गढ़ी थी जो भाजपा उखाड़ फेंकने में कामयाब हुई। हालांकि यह नौटंकी काम नहीं आई क्योंकि भाजपा को अपने सीट शेयर में मामूली सेंध लगी। और भाजपा के पास जयंत चौधरी के रूप में सबसे बड़े जाट नेता को अपने साथ रखने के अलावा कोई बेहतर तरीका नहीं है।

और पढ़ें-  क्या अमित शाह ने भी संकेत दे दिया कि योगी बनेंगे देश के अगले प्रधानमंत्री?

जयंत के खेमे में होने से भाजपा राज्यसभा में अपनी संख्या बढ़ाने के साथ-साथ सपा को कमजोर करने में सक्षम हो सकती है। इसके अलावा, जिस प्रकार जाट हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में भाजपा के भाग्य की कुंजी हैं ऐसे में उन्हें संतुष्ट रखना भाजपा की भविष्य की महत्वाकांक्षाओं के लिए एक लंबा रास्ता तय कर सकता है। यह नए लक्ष्य निर्धारित करने का मामला भी है। जयंत ने भले ही उज्ज्वल शुरुआत की हो लेकिन अगर वह खुद को सपा की जातिवादी तर्ज पर जारी रखते हैं तो वह और उनकी पार्टी सिर्फ मिड-टेबल पार्टी बनकर सिमट जाएगी। जयंत को अपने क्षितिज का विस्तार करना होगा और विषम जोखिम उठाना होगा इसके तहत उनकी अगली पारी भाजपा होनी चाहिए। इसमें ही उनका हित दिखता है।

Exit mobile version