जमीन से उठाकर स्टार बना दूंगा, वेलकम मूवी के इस डायलॉग को कथित राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इतना दिल से लगा लिया है कि चुनाव आते नहीं उससे पहले अपना नया शिकार ढूंढ़ने निकल ही जाते हैं माननीय। अबकी बार लक्ष्य है 2024 के देश का आम चुनाव जिसके लिए हर ओर दर-दर भटकने के बाद पीके की चुनाव जिताऊ मशीनरी Indian Political Action Committee (I-PAC) अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) के पास जा पहुंची है। अबकी बार पीके 2024 के चुनावों के लिए राव को हलाल करने के लिए तीसरे मोर्चे का गठन करने पहुँच गए हैं, के चंद्रशेखर राव को नेतृत्वकर्ता बना तीसरे मोर्चे के लुभावन सपने के साथ। ऐसे में अब केसीआर, पीके की सदाबहार Ponzi Scheme के नए पोस्टर बॉय बन गए हैं।
2014 से पीएम मोदी के लिए प्रचार में जुटे प्रशांत किशोर बहुत जल्द ऊबने के बाद 2015 में बिहार में भाजपा से गठबंधन तोड़, लड़ रही जेडीयू के पास चले गए। यहाँ जेडीयू ने जीत हासिल की। फिर 2017 के पंजाब चुनाव में कांग्रेस के साथ जा पीके ने रणनीतिक साझेदारी के साथ अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय लिया। फिर आया उत्तर प्रदेश का चुनाव जिसे जीतना समाजवादी पार्टी के लिए नाक का सवाल था पर इस बार पीके ने पहले कांग्रेस का साथ दिया और बाद में यूपी के दो लौंडे के साथ गठबंधन करा कांग्रेस और समाजवादी पार्टी अर्थात राहुल गाँधी और अखिलेश यादव को साथ ला दिया और परिणाम वो रहा जिसकी कल्पना सपा और कांग्रेस दोनों नहीं कर रहे थे क्योंकि उन्हें तो यह लग रहा था कि उनके प्रचार पर पीके महाराज जी का हाथ था। और चूंकि पीके ने अपने I-PAC की मार्केटिंग ऐसी की थी कि राहुल और अखिलेश इस वहम में आ गए कि अब तो वो चुनाव जीत ही जायेंगे। परिणाम ने ऐसा घात किया कि यूपी के दो लौंड़ों का हाल “ये गलिया ये चौबारा यहाँ आना न दोबारा जैसा हो गया था।”
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2017 में ही आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के समर्थन में I-PAC ने प्रचार किया और एक और जीत का तमगा पीके ने अपने सिर लेने का काम किया। फिर 2020 में पुनः बिहार के चुनाव आते ही पीएम मोदी से रुष्ट पीके ने किसी पार्टी के लिए प्रचार न करना ही बेहतर समझा क्योंकि इस बार जेडीयू भाजपा के साथ लड़ रही थी तो आंकलन और आंकड़ों की लंका लग गई और I-PAC ने अपनी “बात बिहार की” अभियान को बिहार में चलाने का काम किया।
फिर आया 2021 का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव, टीएमसी के लिए प्रचार में जुट गए पीके ने यह आंकलन किया कि दीदी ही आएँगी और कुद गए एक और जीत का तमगा अपने सर लेने। लेकिन यहाँ मामला कुछ अलग रहा, भाजपा 3 से 77 सीटों तक पहुँच गई और ममता बनर्जी अपनी ही सीट नंदीग्राम से हार गईं। चुनाव जीतने के बाद भी PK और I-PAC से खिन्न ममता ने अपने दरवाजे धीरे-धीरे बंद करने शुरू कर दिए। यही कारण रहा जो तीसरे मोर्च के एक प्रमुख चेहरे के तौर पर अब पीके के लिए प्राथमिकता ममता नहीं केसीआर हो गए हैं।
इन आंकड़ों को देखकर यह प्रतीत होता है कि वाकई प्रशांत किशोर और उनकी I-PAC चुनाव जीतने में सबसे ज़्यादा सहायक है, पर इन सभी के पीछे कई अपवाद और कई अंदरूनी बातें छुपी हैं जिनको जानना सभी के लिए आवश्यक है। 2015 में बिहार में जेडीयू इसलिए जीती क्यंकि भाजपा पर एक चेहरे की कमी थी जो आज तक बिहार में पूरी नहीं हुई है। 2017 में पंजाब चुनाव मात्र बादल और भाजपा में अविश्वसनीयता के कारण पंजाब के हाथ चला गया था। सबसे बड़ी हार रहे उत्तर प्रदेश में, जब बड़ा रणनीतिकार समझने की भूल में पीके ने राहुल गाँधी और अखिलेश यादव को साथ लाकर दोनों का गठबंधन करा दिया और आखिर में जो हुआ उसका खामियाजा आज भी दोनों पार्टियां भुगत रही हैं। 2017 में ही जगन मोहन रेड्डी की YSRCP के साथ जाना पाके की सबसे सोची समझी डील में से एक था क्योंकि जगन मोहन को पारिवारिक पृष्ठभूमि से राजनीतिक होने का लाभ मिल गया। 2021 में यह जानते हुए कि ममता ने बंगाल में अपनी पार्टी की बिसात बहुत दांव खेलकर बिछाई है पीके ने I-PAC का झंडा-डंडा लेकर दीदी का प्रचार किया और चुनाव टीएमसी जीती।
विश्वास की नींव पर टिके भरोसे को खत्म करना किसी भी राजनीतिक व्यक्ति के लिए सरल होता है क्योंकि अंतिम लक्ष्य सत्ता प्राप्ति होता है। पीके भी उन्हीं पथचिन्हों पर चलकर अपनी जेब भरने वाले उन महत्वकांक्षी लोगों में से हैं जिनके जीवनलोभ-लालच से बढ़कर कुछ नहीं होता। केसीआर के साथ होने वाले 300 करोड़ के करार को भले ही पीके नकार दें पर अपने लक्ष्य के लिए वो केसीआर के राजनीतिक जीवन को मठियामेंठ करने की योजना बना चुके हैं। मूलबात यही है कि पीके काम ही उनका करते आए हैं जिनका जीतना तय हो या थोड़ी बहुत गुंजाईश हो या फिर उनका जिनका राजनीतिक करियर ख़त्म करने का निर्धारण I-PAC ने किया हो। अबकी बार केसीआर से माया अर्थात धन का करार कर पीके ऐसे सपने दिखा रहे हैं जैसे अनुराधा ने राजू-श्याम और बाबू राव को दिखाए थे, अर्थात “21 दिन में पैसा डबल की तर्ज़ पर मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बना दूंगा।”
यह प्रशांत किशोर का राजनीतिक दलों और नेताओं से स्नेह ही है जो उनको आबाद कम और बर्बाद अधिक करता है। केसीआर बने पीके की सदाबहार पोंजी योजना के नए पोस्टर बॉय, इस बर्बादी का एक नया और ताजा उदाहरण है।
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