उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने सबसे निचले पायदान पर पहुँच गई हैं। 2022 के विधान सभा चुनाव में बसपा को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है। एक समय था जब मायावती की तूती पूरे देश में चलती थी। दलित राजनीति की जब भी बात आएगी तो देश में मायावती का भी नाम लिखा जाएगा। हालांकि आज का परिदृश्य मायावती के राजनीतिक पतन का संकेत दे रहा है।
आपको बता दें कि बसपा की राजनीति का सबसे अच्छा दौर उस समय आया था जब 2007 में पार्टी ने 206 सीटों के साथ सरकार बनाई थी और उसे 30.43 फीसदी वोट मिले थे वहीं 2012 में 26% वोट शेयर बरकरार रखा था, और 2017 में 22.33% वोट भी प्राप्त किया था, जब उसे 19 सीटें मिली थीं और चुनाव दर चुनाव उनका और उनकी पार्टी का जनाधार घटता चला गया और इस बार का चुनाव तो उनके राजनीतिक जीवन को ही समाप्त कर दिया है। आपको बता दें कि ये वहीँ मायावती हैं जो चार बार यूपी की सीएम रह चुकी हैं।
मायावती चुनाव के बाद फिर एक बार चर्चा के केंद्र में आ गई हैं
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती ने यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी की भारी हार के बाद रविवार को एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की। लखनऊ में बसपा कार्यालय में हुई बैठक में मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद ,जो पहले से पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, उनको राज्य में पार्टी मामलों की देखभाल करने के लिए सौंपा है।
मायावती ने बैठक शुरू होने से पहले अपने चारों प्रवक्ताओं को हटा दिया। बसपा के तीन नए प्रभारी मुनकद अली, राजकुमार गौतम और डॉ विजय प्रताप नियुक्त किए गए, जो सीधे मायावती को रिपोर्ट करेंगे।
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यूपी चुनाव में बसपा की हार के संभावित कारणों की समीक्षा करते हुए मायावती ने पार्टी पदाधिकारियों को भविष्य के लिए नई रणनीति बनाने का निर्देश दिया। सूत्रों ने कहा कि उन्होंने बूथ स्तर के नेताओं से भी फीडबैक लिया। हाल ही में संपन्न यूपी चुनावों में, बसपा 403 सदस्यीय सदन में सिर्फ एक सीट हासिल कर सकी, जिसमें पार्टी का वोट प्रतिशत घटकर 13% रह गया। इस बैठक में बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट से जीते बसपा के इकलौते विधायक उमाशंकर सिंह बैठक में मौजूद थे।
वहीं इसके साथ मायावती एक और चर्चा का केंद्र बन गई जब यह खबर आई मायावती अगली देश की अगली राष्ट्रपति बन सकती हैं हालांकि बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने रविवार को कहा कि वह किसी भी पार्टी से राष्ट्रपति पद के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगी। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर झूठा प्रचार करने का आरोप लगाया कि अगर भाजपा उत्तर प्रदेश चुनाव जीतती है तो उन्हें ‘राष्ट्रपति’ बनाया जाएगा।
उन्होंने आगे कहा ,”मैं इस तरह के पद को कैसे स्वीकार कर सकती हूं जब हम जानते हैं कि हम बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे। इसलिए मैं बसपा के प्रत्येक पदाधिकारी को स्पष्ट करना चाहती हूं कि किसी भी बात से गुमराह नहीं हो।
आज के परिदृश्य में जब मायावती खुद के सक्रीय रहते हुए अपने भतीजे को जिस तरह से आगे बढ़ा रही हैं उससे यह प्रतीत होने लगा है की मायावती अपनी राजनीतिक पारी की तिलांजलि खुद देना चाहती हैं। बसपा का पतन एक गंभीर समस्या को दर्शाता है जिसे राजनीतिक दलों के साथ आंतरिक लोकतंत्र की अनुपस्थिति, और उनकी जाति और समुदाय के नेताओं को उनसे मोह भांग होना मायावती की राजनीति ढलान पर है। आपको बता दें कि बसपा जिस रास्ते पर चली है, उसके पुनरुद्धार की कोई संभावना नहीं है, जब तक कि मायावती और उनके समर्थकों का नेतृत्व नहीं बदल जाता और अगर ऐसा नहीं होता है तो बसपा और मायावती एक इतिहास बन कर रह जाएंगी।
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