अमेरिका यह समझ ले कि भारत ‘तुर्की’ नहीं है, वह छाती ठोककर S-400 खरीदेगा

बाइडेन की गीदड़भभकी से घंटा फर्क नहीं पड़ता है

SOURCE- TFIPOST

अब समय आ गया है कि अमेरिका यह समझ ले कि भारत छोड़िये, कोई भी देश अमेरिका से नहीं डरता है। अब कोई अमेरिका पर निर्भर नहीं है। इसकी गुंडई अब वहीँ चल सकती है जहाँ परमाणु हथियार नहीं है और जिनकी सैन्य क्षमता में दम नहीं है। इससे ज्यादा अमेरिका की औकात नहीं है और कम से कम अफगानिस्तान में बुरी हार के बाद तो अमेरिका को यह समझ में आ जाना चाहिए था लेकिन आत्ममुग्ध अमेरिका इस समय गुमान में है।

इसी घमंड के कारण अमेरिका की हिम्मत इतनी हो गई है कि वह भारत को आँख दिखा रहा है और ईरान, उत्तरी कोरिया की तरह भारत पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रहा है। खबर के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद के लिए CAATSA कानून के तहत अमेरिका के प्रमुख साझेदारों में से एक भारत पर प्रतिबंध लागू करने या माफ करने के बारे में फैसला करेंगे। ईरान, उत्तर कोरिया या रूस के साथ महत्वपूर्ण लेन-देन करने वाले किसी भी देश पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमेरिकी प्रशासन को घरेलू कानून, काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शंस एक्ट (सीएएटीएसए) के तहत भारत पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रहा है अमेरिका।

आपको बता दें कि बुधवार, 2 मार्च को, यूएसए के राजनयिक डोनाल्ड लू ने कहा कि बाइडेन प्रशासन इस बात पर विचार कर रहा है कि CAATSA के तहत रूस से एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद के लिए भारत के खिलाफ प्रतिबंधों को लागू किया जाए या माफ किया जाए।

भारत द्वारा UNSC और फिर UN में रूस के खिलाफ मतदान से दूर रहने के बाद अमेरिका द्वारा भारत पर प्रतिबंध लगाने की अटकलें तेज हो गई है। लू के मुताबिक, बाइडेन प्रशासन को अभी यह तय करना है कि भारत पर CAATSA के तहत प्रतिबंध लगाए जाएं या नहीं। उन्होंने कहा, “मैं जो कह सकता हूं वह यह है कि भारत वास्तव में हमारा एक महत्वपूर्ण सुरक्षा भागीदार है और हम उस साझेदारी को आगे बढ़ाने को महत्व देते हैं।”

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गीदड़भभकी से नहीं डरता है भारत

भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस के साथ पांच एस 400 खरीदने के लिए 5 बिलियन अमरीकी डालर का सौदा किया था। अमेरिका की चेतावनी से भारत का यह सौदा प्रभावित नहीं होना चाहिये और यह बात अमेरिका भी जानता है कि भारत पर प्रतिबंध के क्या अंजाम होंगे। पहली बात तो यह कि भारत जैसा समृद्ध बाजार से खेलना उसके बस की नहीं है। जिस देश का मीडियन हाउसहोल्ड पैसे रखा हो वहां से खेलना निरा मुर्खता होगी। दूसरी बात यह है कि अमेरिका से प्रतिबंध भारत को सीधे चीन के पास लेकर आ जाएगा और वेस्टर्न बनाम इस्टर्न ब्लॉक की लड़ाई से अमेरिका भी डरता है। भौगौलिक कूटनीति के हिसाब से अमेरिका के बस में नहीं है।

क्या है CAATSA?

गौरतलब है कि CAATSA एक सख्त अमेरिकी कानून है जिसे 2017 में लाया गया था और अमेरिकी प्रशासन को रूस से प्रमुख रक्षा हार्डवेयर खरीदने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अधिकृत करता है। इससे पहले तुर्की नाटो का पहला सदस्य देश है जिसने इसे खरीदा है। हालांकि, अन्य नाटो सदस्य राज्यों जैसे बुल्गारिया, क्रोएशिया, स्लोवेनिया और ग्रीस ने पहले रूसी एस -300 रक्षा प्रणाली खरीदी थी। तुर्की द्वारा S-400 की खरीद पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शंस एक्ट (CAATSA) के तहत आर्थिक प्रतिबंध लगाए और डरकर तुर्की ने हथियार को बेच भी दिया लेकिन भारत के मामले में ऐसा नहीं है। पश्चिम देश के लिए भारत पर प्रतिबंध लगाना आसान नहीं है और अमेरिका यह गलती करता है तो भारत वह देश नहीं रहा की वो अमेरिका की गीदड़भभकी से झुक जाएगा। भारत पहले भी कह चूका है की वो रूस से S-400 खरीदना जारी रखेगा।

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भारत रूस के रक्षा सम्बंध लाजवाब हैं और रहने भी चाहिए-

भारत रूसी हथियारों और गोला-बारूद का प्रमुख खरीदार रहा है। विशेष रूप से, अमेरिकी सरकार ने एक ऐसे क़ानून को लागू करने में देरी की है जो रूस के साथ व्यापार करने के लिए भारत पर प्रतिबंध लगाता है क्योंकि अमेरिका चीन के लिए एक प्रमुख क्षेत्रीय काउंटरवेट के रूप में भारत के साथ अपने संबंधों को गहरा करता है। इसके अलावा, भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका से सैन्य उपकरणों की खरीद में वृद्धि की है, जिसमें हेलीकॉप्टर और परिवहन विमान शामिल हैं। लू ने टिप्पणी की कि भारत ने रूसी मिग -29 लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टरों और टैंक-रोधी हथियारों के ऑर्डर को रद्द कर दिया है और नए दंड अन्य देशों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

यह याद किया जा सकता है कि भारतीय रक्षा मंत्रालय ने 14 जनवरी, 2022 को कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल और 14 हेलीकॉप्टर खरीदने से संबंधित सौदों के लिए निविदा वापस लेने का फैसला किया था। प्रधान मंत्री मोदी ने तत्कालीन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत सहित रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक के बाद यह निर्णय लिया, जहां यह महसूस किया गया कि यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूत उपाय किए जाने चाहिए कि देश दृढ़ता से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़े।

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भारत के स्वतंत्र फैसले से झल्ला गया है अमेरिका

आपको बता दें कि UNGA प्रस्ताव पिछले शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यीय निकाय में परिचालित हुआ था, जिस पर भारत ने भी भाग नहीं लिया था। स्थायी सदस्य रूस द्वारा अपने वीटो का प्रयोग करने के बाद, UNSC के प्रस्ताव, जिसके पक्ष में 11 वोट थे और तीन देशों ने परहेज़ किया  था।

प्रस्ताव को स्वीकार करने में परिषद की विफलता के बाद, सुरक्षा परिषद ने रविवार को समस्या के समाधान के लिए 193 सदस्यीय महासभा का एक विशेष “आपातकालीन विशेष सत्र” बुलाने पर सहमति व्यक्त की। भारत ने एक बार फिर यह दोहराते हुए परहेज करने का फैसला किया कि, “कूटनीति और बातचीत के रास्ते पर वापस लौटने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है”।

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