भारत सरकार शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली है। अब ऐसे लोगों को भी विद्यार्थियों को पढ़ाने का अवसर मिलेगा जिनके पास औपचारिक डिग्री नहीं है किंतु अनुभव का ज्ञान है। यूजीसी नियमों में बदलाव करने वाली है जिसके बाद ऐसे लोगों को, जो इंडस्ट्री एक्सपर्ट हैं, उन्हें विद्यार्थियों के साथ अपने विचार साझा करने का अवसर मिलेगा।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए अनिवार्य पीएचडी की आवश्यकता को खत्म करने का फैसला किया है। निकाय के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में इसकी जानकारी दी।
रिपोर्ट के अनुसार यूजीसी द्वारा प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस और एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस जैसे नए पदों के सृजन की संभावना है। उन्होंने बताया “कई विशेषज्ञ हैं जो पढ़ाना चाहते हैं। ऐसा कोई व्यक्ति हो सकता है जिसने बड़ी परियोजनाओं को लागू किया हो और जिसके पास बहुत अधिक जमीनी अनुभव हो, या कोई महान नर्तक या संगीतकार हो सकता है लेकिन हम मौजूदा नियमों के तहत उन्हें नियुक्त नहीं कर सकते हैं।”
विद्वता बनाम डिग्री में विद्वता मजबूत है
एक समय था जब भारत में विद्वता को किताबी ज्ञान से बड़ी चीज माना जाता था। महात्मा बुद्ध की एक कथा प्रसिद्ध है। महात्मा बुद्ध सन्यास के दिनों में कठोर तप कर रहे थे तभी उन्हें एक वीणा वादक से एक विशेष ज्ञान प्राप्त हुआ। वीणा वादक अपने शिष्य को बता रहा था कि वीणा की तार को बहुत अधिक कसने पर तार टूट सकती है जबकि अधिक ढीला छोड़ने पर उससे स्वर नहीं निकलेगा। इस छोटी सी बात को समझ कर बुद्ध ने तपस्या के मध्यम मार्ग की शिक्षा ग्रहण की। बुद्ध ने बताया कि माया से बचने के लिए ना तो शरीर को अत्यधिक कष्ट देने की आवश्यकता है और ना ही चार्वाक लोगों की तरह केवल माया में लिप्त रहने की आवश्यकता है।
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अब इस कहानी में कल्पना करें कि बुद्ध इस छोटी सी बात को सीखने के बजाय उस व्यक्ति से बहस करते और पूछते कि तुम्हारे पास क्या डिग्री है? यह बात हास्यास्पद लगेगी किंतु भारत की शिक्षा व्यवस्था ऐसी ही बन चुकी है। भारतीय प्रधानमंत्री कितनी सफलतापूर्वक प्रशासन चला रहे हैं, कुछ लोगों के लिए इससे महत्वपूर्ण यह है कि उनकी डिग्री क्या है।
डिग्री और परंपरागत शिक्षा के प्रति पागलपन ने भारत में भेड़चाल को जन्म दिया है। आज का युवक भेड़ों की तरह पहले विद्यालयों में और फिर कॉलेज में हांक दिए जाते हैं। जबकि बहुत से ऐसे सफल उद्योगपति, खिलाड़ी, संगीतकार हुए हैं, जिन्होंने किसी विद्यालय या विश्वविद्यालय से कोई डिग्री प्राप्त नहीं की है। सचिन तेंदुलकर से क्या यह प्रश्न किया जा सकता है कि क्रिकेट के किस अकैडमी से उन्होंने डिग्री प्राप्त की थी?
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ऐसे बहुत से विद्वान हैं जिनके पास अनुभव जनित ज्ञान है। वस्तुतः किताबी ज्ञान का नाम जीवन में कोई उपयोग नहीं होता। विद्यार्थियों को अपने शिक्षकों के साथ जो समस्या सबसे अधिक होती है वह यह है कि शिक्षा के नाम पर उन्हें तथ्य रटाए जाते हैं। इतिहास के विषय का ही उदाहरण लें तो शिक्षक विद्यार्थियों को ऐतिहासिक घटनाओं के चक्र, उसके पैटर्न, घटनाक्रम के कार्य कारण संबंध नहीं समझाते, केवल तथ्य लिखवाते हैं। भारत की अधिकांश पीएचडी स्तरहीन है, वर्षों से केवल एक ही परिपाटी पर एक जैसे शोधकार्य हो रहे हैं। ऐसे में ज्ञान के क्षेत्र में कोई नई उपलब्धि हासिल नहीं हो रही है।
परंपरागत ज्ञान और डिग्री के महत्व को समाप्त नहीं किया जा सकता किंतु उसके साथ अनुभव जनित ज्ञान को सम्मिलित करके शिक्षा के स्तर को अवश्य ही ऊंचा उठाया जा सकता है।
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