देश में पिछले कुछ दशकों से मुस्लिम वोटों के लिए मारा-मारी होते आई है। तमाम पार्टियों द्वारा मुस्लिम वोट बैंक के लिए लड़ा जाता है। भारतीय राजनीति की बात करें तो चुनाव दर चुनाव में मुस्लिमों के नेता के रूप में ओवैसी का उदय हुआ है, या उनका ऐसा भ्रम है। आज से कुछ वर्ष पहले तक ओवैसी और उनकी पार्टी का जनाधार सिर्फ हैदराबाद तक ही सीमित था लेकिन आज के परिदृश्य में ओवैसी देश के हर राज्य तक अपना पांव पसारने में जुटे हुए हैं लेकिन उन्हें कुछ खास कामयाबी हासिल नहीं हुई है। हिन्दुओं के लिए घृणित बयान हो या अनपढ़ मुसलमानों को अपने भावनात्मक सन्देश से लोगों में नफरत की बीज बोने के कारण ओवैसी और उनका कुनबा बदनाम है।
अपने पारंपरिक गढ़ हैदराबाद में सात विधानसभा सीटों तक सीमित रहने से लेकर अब उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर चुनाव लड़कर जीतने का सपना देख रही ओवैसी की पार्टी धड़ाम होने के कगार पर है। यह पहली बार नहीं है जब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन उत्तर प्रदेश में अपने राजनीतिक भाग्य आजमा रही है। 2017 में, पार्टी ने 403 सीटों में से 38 पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। उसने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, उन पर उसे करीब दो लाख वोट मिले और उसके केवल चार उम्मीदवार ही अपनी जमानत बचा पाए।
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जब योगी आदित्यनाथ को मठ में भेजने वाले थे ओवैसी-
आपको बता दें कि चुनावी बयार के दौरान औवेसी ने कहा था, ‘मैं तो उन पुलिस के लोगों से कहना चाहता हूं, याद रखना मेरी बात को। हमेशा योगी मुख्यमंत्री नहीं रहेगा और हमेशा मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेगा। हम मुसलमान वक्त के तिमार से खामोश जरूर हैं, मगर याद रखो हम तुम्हारे जुल्म को भूलने वाले नहीं हैं। हम तुम्हारे जुल्म को याद रखेंगे। अल्लाह….अपनी ताकत के जरिए तुम्हारी अंतिम को नेस्तनाबूद करेंगे। और हम याद रखेंगे। हालात बदलेंगे। जब कौन बचाने आएगा तुमको? जब योगी अपने मठ में चले जाएंगे, मोदी पहाड़ों में चले जाएंगे। जब कौन आएगा? हम नहीं भूलेंगे।’
ओवैसी ने भरे मंच से अपनी औकात दिखाते हुए पुलिस प्रशासन को ठेंगा दिखाया और योगी आदित्यनाथ का मजाक बनाया। यह मजाक योफी के संत परम्परा पर प्रहार था। महाराष्ट्र और बिहार में भी ओवैसी चुनाव लड़ने गए थे, हालांकि वहां जीतने के लिए ओवैसी ने तमाम चुनावी शिगूफा छोड़ा पर ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ। वहीँ पिछले साल हुए बंगाल चुनाव में ओवैसी और उनकी पार्टी AIMIM औंधे मुँह गिर गई थी जिसके बाद ओवैसी को अपनी राजनीति हैसियत समझ में आ गई थी। ओवैसी को बंगाल चुनाव में मुसलामानों ने नकार दिया था, इसके कारण ओवैसी उत्तर प्रदेश के चुनाव को लेकर बहुत ही विषैले और कुंठित भाषण दिए थे, जिससे मुसलामानों को रिझाया जा सके।
पिछले साल हुए बंगाल चुनाव में मुसलमानों द्वारा दरकिनार होने के बाद ओवैसी अब अपने ऊपर हमला का मुद्दा उछाल कर मुसलमानों को भावुक और दिग्भ्रमित करने की कोशिश की थी ताकि आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव में मुसलामानों का वोट पूरी तरह से अपने पाले में ला सकें। ओवैसी यह समझ चुके हैं कि मुसलामानों को रिझाना है तो इस तरह के सियासी चाल चलना जरुरी है। लेकिन इन सबका परिणाम क्या निकला?
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अब खुद अपनी भद्द पिटवा रहे हैं ओवैसी
ओवैसी जिस उद्देश्य से यूपी की राजनीति में आए थे, उन्हें जनता से उस तरह की प्रतिक्रिया मिलती नहीं दिख रही है। मुस्लिम मतदाताओं के वोटों का ध्रुवीकरण करने की तीव्र इच्छा के साथ आए असदुद्दीन ओवैसी को राज्य में पहले से स्थापित पार्टियों ने बहुत पीछे छोड़ दिया है। एक दौर था जब ओवैसी ओमप्रकाश राजभर के साथ चुनाव लड़ने की बात कर रहे थे, लेकिन राजभर चुनाव से पहले ओवैसी को लात मार कर अखिलश यादव के साथ गठबंधन कर ओवैसी को चिढ़ा गए थे।
जिस तरह से मीडिया चैनलों ने उत्तर प्रदेश के चुनावी रुझान में ओवैसी की पार्टी का सूफड़ा -साफ़ दिखाया है, उससे तो पार्टी शून्य पर सवार दिख रही है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व में AIMIM ने भी चुनाव में एड़ी चोटी का जोर लगाया था लेकिन एबीपी न्यूज़ की तरफ से ABP Cvoter Exit Poll के आंकड़ों में एआईएमआईएम की सच्चाई उजागर हो गई है। ABP Cvoter Exit Poll के आंकड़ों में यूपी में ओवैसी की पार्टी का बुरा हाल हुआ है। ओवैसी की पार्टी ने यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ा है। जमकर चुनाव प्रचार करने के बाजूद ओवैसी की पार्टी को एग्जिट पोल में एक भी सीट मिलती नहीं दिख रही है। देश में अपने आप को मुसलामानों का सबसे बड़ा नेता होने का दावा करने वाले ओवैसी की हालत पतली हो गई है और अगर रुझान सही साबित होते हैं तो ओवैसी का राजनीतिक पतन निश्चित है। योगी मठ तो नहीं जा रहे हैं लेकिन ओवैसी हैदराबाद जरुर भगाए जा रहे हैं।
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