भारतीय राजनीति ने इतने लंबे समय तक मुस्लिम तुष्टीकरण आधारित राजनीति की है। शायद इसीलिए वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वतंत्रता की परिधि, सीमाएं और कर्तव्य आदि को ढंग से पहचान नहीं पाए हैं और इसी कारण समाज के एक वर्ग को वे हमेशा से दिग्भ्रमित करते रहे हैं, उनके नाजायज मांगों को पूरी करते रहे हैं। स्थिति ऐसी हो गई है कि अब वे अवसर की समानता को भी नहीं पचा पा रहे हैं। हिजाब समर्थक कार्यकर्ता भी उनमें से एक हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इन कोर्ट सक्रियता को नॉकआउट पंच दे दिया है।
‘हिजाब का परीक्षा से कोई लेना-देना नहीं’
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने खुद शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं को विशेषाधिकार प्राप्त सुनवाई प्रदान करने से इनकार कर दिया है। दरअसल, हिजाब प्रतिबंध के संबंध में कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को बदलने के लिए याचिकाकर्ताओं के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत इस मामले में हिजाब समर्थक कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 24 मार्च को कामत ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह इसे एक जरूरी मामला मानते हुए उनकी याचिका पर सुनवाई शुरू करे। कामत के अनुसार प्रभावी रूप से राष्ट्रीय महत्व के अन्य मामलों की तुलना में हिजाब कार्यकर्ताओं की याचिकाएं अधिक महत्व रखती हैं।
कामत ने यह कहते हुए तत्काल याचिका को सही ठहराया कि लड़कियों की परीक्षा इस महीने के अंत में होनी है और अगर उन्हें प्रवेश से वंचित कर दिया जाता है, तो इससे उनके करियर को नुकसान होगा। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। परीक्षा के तर्क को नष्ट करते हुए CJI रमन्ना ने कहा, “परीक्षा का इस मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है। इस मुद्दे को सनसनीखेज न बनाएं।”
वहीं, दूसरी ओर कर्नाटक सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल (एसजी), तुषार मेहता ने बताया कि याचिकाकर्ता बार-बार परीक्षा के मुद्दों का उल्लेख करके जुनून पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, कामत परीक्षाओं को लेकर अपने तर्क पर कायम रहे। उन्होंने कहा, “ये लड़कियां हैं। परीक्षा 28 तारीख से है। उन्हें स्कूलों में प्रवेश करने से रोका जा रहा है। एक साल बीत जाएगा।” लेकिन CJI ने इस पर कोई ध्यान देने से इनकार कर दिया और याचिका को खारिज कर अगले मामले की सुनवाई की ओर बढ़ गए।
और पढ़ें: हिजाब के चक्कर में अपने ही करियर का बंटाधार कर बैठी हैं ये छात्राएं
कर्नाटक उच्च न्यायालय की टिप्पणी
गौरतलब है कि इस महीने की शुरुआत में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने छात्राओं को शैक्षणिक संस्थानों के ड्रेस कोड का उल्लंघन करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। तब उन लड़कियों ने जोर देकर कहा था कि उन्हें हिजाब पहनकर संस्थानों में प्रवेश करने दिया जाए। उनके अनुसार, हिजाब पहनना इस्लाम में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है। लेकिन जब स्कूलों ने उन्हें अनुमति देने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने उपरोक्त तर्क के साथ कर्नाटक उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की। स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के लिए कर्नाटक सरकार के खिलाफ विभिन्न संगठनों द्वारा दायर रिट याचिकाओं को खारिज करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि हिजाब इस्लाम की एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
उच्च न्यायालय ने कहा, “पवित्र कुरान मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब या हेडगियर पहनना अनिवार्य नहीं करता है। हिजाब ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक जगहों तक पहुंच हासिल करने का एक जरिया है न कि खुद का धार्मिक उद्देश्य। अधिक से अधिक, इस परिधान को पहनने की प्रथा का संस्कृति से कुछ लेना-देना हो सकता है, लेकिन निश्चित रूप से धर्म से नहीं।”
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है अपना रूख
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब इन याचिकाकर्ताओं ने अपने लिए विशेष कानूनी उपचार की मांग की है। जब मूल याचिकाएं कर्नाटक उच्च न्यायालय में दायर की गई थी, तो इन याचिकाकर्ताओं ने पदानुक्रम में निचली अदालत को दरकिनार करते हुए मामले को सीधे सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का आग्रह किया था। इसके अलावा उन्होंने तब हिजाब प्रतिबंध को बरकरार रखने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा अस्थायी आदेश को रद्द करने के लिए भी कहा था। तब भी CJI रमन्ना ने इन दलीलों पर विचार करने से इनकार कर दिया था। इन सारे प्रकरण से ऐसा प्रतीत होते दिख रहा है कि हिजाब समर्थक कार्यकर्ताओं को अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण से लाभ उठाने के लिए उचित रूप से प्रशिक्षित किया गया है। यही कारण है कि वे लाखों मामलों के लंबित मामलों की परवाह किए बिना एक ही मुद्दे पर याचिकाएं दायर करते रहते हैं। हालांकि, तत्काल सुनवाई से इनकार के साथ ही अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा खींच दी है।
और पढ़ें: हिजाब के खिलाफ फैसला देने वाले न्यायाधीशों को धमका रहे हैं पागल कट्टरपंथी!