केजरीवाल इन दिनों दुःख के साथ MCD चुनाव करा दो, करा दो का राग अलाप रहे हैं जिसका सरोकार MCD चुनाव से अधिक अपनी रोटी सेंकने का है। पंजाब में जीत के बाद अरविंद केजरीवाल को यह लग रहा था कि अब तो MCD चुनाव में आम आदमी पार्टी जीत जाएगी पर केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली की नगर निगम जो अभी तीन भागों में विभाजित है उसके एकीकरण के सन्दर्भ में विधेयक (MCD Unification Bill) को मंगलवार को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी थी। इसके बाद से ही राज्य का सियासी पारा चढ़ने के साथ ही कटाक्ष और आरोपों का दौर चरम पर है।
इस कारण दिल्ली को एक नगर निगम देने का है उद्देश्य
वर्तमान में दिल्ली नगर निगम तीन निगमों में बंटा पड़ा है, उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली नगर निगम। शीला दीक्षित सरकार ने पहले एक नगर निगम को तीन में बांटने का निर्णय लिया था जिसे अब केंद्र सरकार बदलने जा रही है क्योंकि जिस सुगम शासन की परिकल्पना की गई थी उससे कहीं ज़्यादा तो दुःख तीन निगमों में भागीकृत होने के बाद बढ़े थे। यह हवा हवाई बाते नहीं अपितु सत्य है। इस नुकसान की भरपाई के लिए अब पुनः दिल्ली को एक नगर निगम देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार इसी सत्र में विधेयक ला सब कुछ पहले की भांति करने जा रही है। जैसे पहले पूरी दिल्ली का एक की महापौर(Mayor) और एक ही कमिशनर हुआ करता था, वही योजना पुनः दिल्ली को वापस मिलने जा रही है जिससे बजट की तकलीफ दूर होने के साथ-साथ तीन-तीन अलग निगमों को चलाने का भार ख़त्म होगा।
और पढ़ें- झूठ के पुलिंदे पर टिका है अरविंद केजरीवाल का शिक्षा मॉडल !
आम आदमी पार्टी का क्या कहना है ये समझना आवश्यक
इस पूरे क्रियाकलाप से एक व्यक्ति बारात में रूठे फूफा जैसे रूठ गए हैं जो हैं सीएम अरविंद केजरीवाल। सरकार को कोसने और दोषी ठहराने और भाजपा MCD चुनाव में पहले ही हार से डर गई जैसे बयानों से आम आदमी पार्टी नेताओं ने मंच लेना शुरू कर दिया है।
भाजपा बीते 15 वर्ष से दिल्ली नगर निगम में सत्ता में है, उसने एकाकृत निगम भी देखा और विभाजित भी पर आम आदमी पार्टी का यह कहना है कि बीते 15 साल में भाजपा ने भ्रष्टाचार के अतिरिक्त कुछ नहीं किया जबकि 8 साल से सत्ता में बैठे अरविंद केजरीवाल की सरकार ने स्वयं अपने इतने शासनकाल में MCD को बस इसलिए फंड के लिए रुलाए रखा क्योंकि वहां आम आदमी पार्टी नहीं भाजपा सत्ता पक्ष में बैठी हुई थी।
ऐसे में ये निगम चुनाव इस बार आम आदमी पार्टी भाजपा पार्षदों के भ्रष्टाचार पर लड़ने की योजना बना रही थी वो बात अलग है कि चंदे के नाम पर और पार्टी गठित करने के नाम पर अरविंद केजरीवाल ने जितना चंदा इकट्ठा किया वो उनकी जेब में ही गया।
दिल्ली को फ्री की राजधानी बना देने वाले इन्हीं अरविन्द केजरीवाल ने अपनी सत्ता को बचाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद का प्रयोग कर कितने ही चंदे अपनी जेब में डाल लिए पर बीते 8 वर्षों में दिल्ली की मूलभूत चीज़ें पानी-बिजली और सड़क की ऐसी हालत कर दी जिसका आंकलन दिल्ली की जनता हर सुबह करती है और कहती है कि किस पार्टी को ले आए हैं हम फ्री के चक्कर में। आप संयोजक ने भाजपा को समय पर MCD चुनाव कराने की चुनौती देते हुए कहा कि यह ‘लोगों की आवाज दबाने’ के समान होगा।
लोगों की आवाज दबाने और लोकतंत्र की बात वो कर रहे हैं जिनकी पार्टी के मुखिया और सर्वेसर्वा आज भी स्वयं अरविन्द केजरीवाल ही हैं। मुख्यमंत्री भी मैं बना रहूं और पार्टी का प्रमुख भी इसी लालसा को अरविन्द केजरीवाल अपने साथ ऐसे लिए घूमते हैं जैसे कौनसा लट्ठ गाड़ दिया हो। सत्य तो यह है कि भाजपा शासित नगर निगम को तब गलत ठहराया जा सकता है जब उसकी स्थिति निर्णय लेने लायक हो। जहां राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार इतने वर्षों से निगम को उसके हक़ का फंड देने में हमेशा आना कानी करती आई है और साथ ही भाजपा को भ्रष्टाचारी बताने वाली आम आदमी पार्टी को यह लग रहा था कि MCD में भी केजरीवाल वाला नारा इस बार काम आ जाएगा पर जैसे ही MCD चुनाव की तारीखों में बदलने की खबरें आने लगी उसकी बैटरी फुस्स हो गई।
और पढ़ें- केजरीवाल सरकार बस 3 चीजों से चलती है, ‘विज्ञापन, विज्ञापन और विज्ञापन’
और भी हैं कारण
ये एक अकेला कारण नहीं है, MCD को भ्रष्ट बताने वाली आम आदमी पार्टी ने खुद ही अबतक MCD का बकाया फंड सालों से इसलिए रोक रखा है क्योंकि उसके अनुसार भाजपा ने निगम के बजट में भ्रष्टाचार करती आई है परंतु जब राज्य सरकार ने बजट या निगम के हक़ का पैसा ही उसे नहीं दिया तो भ्रष्टाचार की बात ही कहाँ से आ गई। आम आदमी पार्टी इन सवालों से भी खूब भागती है क्योंकि बीते 8 वर्षों से तो आम आदमी अपर्ति ही सत्ता में है और भाजपा से हीं भावना के परिणामस्वरूप सारी खीज जनता के कामों पर निकल रही है।
यही नहीं चूंकि MCD चुनाव देर से हो सकते हैं इसकी भनक लगते ही केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी को इस बात का डर सता रहा है की भाजपा पुनः निगम में सरकार न बना ले जिसकी आशंका सर्वाधिक है। एकीकरण की प्रक्रिया पूर्ण होने में एक तय समय सीमा लगती है उसके बाद वार्डों का परिसीमन भी पुनः होना होता है। इन सभी प्रक्रियाओं में जहां एक ओर समय लगेगा तो वहीं आम आदमी पार्टी की नीतियां धूमिल होने की पूरी सम्भावना है जिनके बल पर वो इस बार निगम चुनाव लड़ना चाहती थी।
राजनीतिक हलकों में तो यह भी चर्चा है कि जिन पार्षदों, पूर्व पार्षदों को अपनी पार्टी से पुनः टिकट मिलने की आस खोती दिख रही थी उन सभी ने आम आदमी पार्टी इस एवज में ज्वाइन कर ली कि कल को उन्हें वहां से टिकट मिल जाएगी और इसके लिए लेन-देन भी हुआ जिससे पार्टी आलाकमान अब दुखी है क्योंकि एकीकरण के बाद निगम का परिवेश कैसा होगा इस स्थिति में वो सभी अपनी दान-दक्षिणा वापस मांगने लग गए हैं जो “आप” के गले की फांस बन गया है।
और पढ़ें- अपनी राजनीति चमकाने के लिए केजरीवाल ने खालिस्तान को खाद-पानी से सींचा
भाजपा का मास्टरस्ट्रोक
ऐसे में यह भाजपा का मास्टरस्ट्रोक भी हो सकता है जिसके कर्ताधर्ता स्वयं गृह मंत्री अमित शाह बताये जा रहे हैं। निगम में भाजपा अपने 15 साल के दबदबे को बरकरार रखने के लिए सभी प्रयोजन करती दिख रही है और आम आदमी पार्टी की पीड़ा तो उसी वक्त दिख गई जब बुधवार को अरविंद केजरीवाल ने यह कह दिया कि, “अगर बीजेपी इन चुनावों को समय पर करवाती है और जीतती है तो AAP राजनीति छोड़ देगी।” इस हताशा ने यह प्रदर्शित कर दिया कि आम आदमी पार्टी जितनी आश्वस्त अब तक दिख रही थी कि वो निगम चुनाव जीत रही है, एकीकरण के बाद की स्थितियों से वो पहले ही भयभीत हो गई और कारण साफ़ है क्योंकि पुनः उसे यही लग रहा है कि निगम में आएगी तो बीजेपी ही।