जब भी अमेरिका की भारत से कंपकंपी छूटती है, तब-तब उसके अलगाव वाले स्वर कुस्मित फूल बन जाते हैं। ऐसा ही कुछ वर्तमान में रूस-यूक्रेन विवाद में भारत की भूमिका लेकर कुछ हुआ, जिसमें अमेरिका कह रहा था कि यूक्रेन के लिए हम सभी मिलकर (विशेषकर भारत) रूस के साथ सामूहिक प्रतिक्रिया और वार्ता के लिए कदम आगे बढ़ाएंगे। ऐसे में मात्र दो दिन पूर्व ही अमेरिका भारत पर दबाव डालने का प्रयास कर रहा था, भारत को धमका रहा था, परंतु भारत के स्पष्ट रुख़ से अब अमेरिका भी अपनी जान बचाते दिख रहा है। दरअसल, भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने प्रभावशाली भारतीय-अमेरिकी समुदाय को आश्वासन दिया है कि वह द्विपक्षीय व्यापार में सुधार की दिशा में काम करेंगे, साथ ही उन्होंने मानवाधिकारों और बहुलवाद के महत्व को भी रेखांकित किया। भारतीय-अमेरिकी समुदाय के प्रमुख सदस्यों के साथ एक बंद कमरे में रात्रिभोज के दौरान, गार्सेटी ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन्हें बताया है कि “अमेरिका-भारत संबंध उनके दिमाग में सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक संबंध है।”
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आखिरकार खुल ही गई अमेरिका की आंखें
ज्ञात हो कि भारत और अमेरिका के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2020-21 में 80.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि 2019-20 में यह 88.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। अमेरिका को भारत का निर्यात वर्ष 2020-21 में 51.62 बिलियन अमेरीकी डॉलर रहा, जबकि 2019-20 में यह 53 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। वहीं, अमेरिका से भारत का आयात वर्ष 2020-21 में 28.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि वर्ष 2019-20 में यह 35.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा था।
ऐसे में अमेरिका की आंखें तब खुली, जब उसे लगा कि दूसरे देशों के चक्कर में वो अपने संबंधों में वैमनस्यता पैदा कर रहा है और यदि भारत अपने पर आ गया, तो जिस प्रकार भारत ने चीन के बाज़ार को देश से खदेड़ा था, कुछ वैसा ही अमेरिका के साथ भी हो सकता था। बस फिर क्या था, जो बाइडन ने मीठे-मीठे शब्दों के साथ अपने दूत के तौर पर एरिक गार्सेटी के माध्यम से अपनी पूरी बातें भारत के समक्ष रख दी और साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि हालात कुछ भी हो, भारत-अमेरिकी रिश्ते उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक संबंध है। भारत का वर्चस्व इसी बात से प्रतिबिंबित होता है कि भारत से बैर लेना स्वयं अमेरिका के लिए घातक होगा, जो अमेरिका होने नहीं देना चाहता।
योगी चुग और मोनिका चुग द्वारा आयोजित बातचीत के दौरान, भारतीय-अमेरिकी समुदाय के सदस्यों ने इस साझेदारी को बनाने और मजबूत करने के महत्व और इसमें उनकी भूमिका पर जोर दिया। अपनी टिप्पणी में, गार्सेटी ने मानवाधिकारों और बहुलवाद के महत्व और देशों के बीच व्यापार में सुधार के लिए प्रतिबद्धता की पुष्टि की। करीब ढाई घंटे तक चली यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय प्रवासी के प्रमुख नेताओं के साथ गार्सेटी की पहली मुलाकात थी। भारतीय अमेरिकी कांग्रेसी रो खन्ना ने एक टिप्पणी में चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षा पर रोक लगाने और उदार लोकतंत्र की जीत सुनिश्चित करने के लिए भारत-अमेरिकी संबंधों के महत्व के बारे में बताया। गार्सेटी ने सामुदायिक नेतृत्व से कहा कि वह इस नई भूमिका में अपने विचारों को बताने के लिए भारतीय अमेरिकियों पर बहुत अधिक निर्भर होंगे।
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ये नया भारत है अमेरिका की ‘पुंगी’ बजा देगा
सत्य तो यह है कि आज अमेरिका स्वयं को अन्य सभी देशों से ठगा हुआ महसूस करता हुआ, वो जब भी आशान्वित होते हुए किसी देश से कुछ साझा करता है, अंतोत्गत्वा उसका परिणाम “ज़ीरो-निल बटा-सन्नाटा” ही होता है। भारत के मामले में ऐसा नहीं है, भारत हमेशा से अपने मित्र देशों के लिए उदारवादी और सहयोगी रहा है, बाद में भले ही उस लचीलेपन का चीन जैसे द्रोही देशों ने लाभ उठा लिया। परंतु भारत की छवि यही रही है कि चीन गुस्ताखी कर गया, पर भारत का रुख सौम्य रहा। हालांकि, अब भारत आँख मूंदकर भी किसी पर विश्वास नहीं करता है, यही कारण है कि जो अमेरिका यह सोचता था कि भारत को जहां बोलेंगे वो वहां हस्ताक्षर कर देगा, उसकी बात मान लेगा, उसके इशारे पर चल लेगा, पर भैया अब यह कहां संभव है। इसी स्थिति को भांपते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने आनन-फानन में भारत के प्रति अपने तल्ख़-तेवरों को नरम कर लिया है और परिणामस्वरुप अमेरिका भारत पर प्यार उड़ेलने लगा है।