ममता बनर्जी के राज्य में हिंदुओं को न्याय मिलना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है!

कोर्ट ने अब ममता के निरंकुशता पर लगाम लगाने की तैयारी कर ली है

भारत के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा मुख्यमंत्री हुआ हो जो इस स्तर का तानाशाह हो, जैसी ममता बनर्जी हैं। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने अपने विरोधियों के प्रति बर्बरता और निरंकुशता की सारी हदें पार कर दी हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव उपरांत नृशंसता और नरसंहार का नंगा नाच पूरी दुनिया ने देखा है। 

रोहिंग्या मुसलमानों, अवैध बांग्लादेशियों, तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं गुंडों और राष्ट्र विरोधी तत्वों के साथ मिलकर जिस तरीके से हिंदुओं के साथ अत्याचार किया गया और महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर बलात्कार किया गया, उसने संपूर्ण राष्ट्र को स्तब्ध कर दिया। 

लोगों को विश्वास नहीं हुआ कि सत्ता की सनक में कोई पार्टी और उसका मुख्यमंत्री इस स्तर पर क्रूरता का परिचय दे सकता है। खैर, ममता बनर्जी ने जो किया वह अक्षम्य और सजा देने योग्य है। परंतु इससे भी बड़ा अत्याचार तो वह है जो ममता बनर्जी अब कर रही है। वो ना सिर्फ चुनावी हिंसा से पीड़ित हिंदुओं को धमका रहे हैं बल्कि पलायन कर चुके लोगों के पुनर्वास को ही रोकने का भरपूर प्रयास कर रही हैं। 

इस प्रक्रिया में वह अपने तृणमूल कांग्रेस के गुंडों का सहारा ले रही हैं लेकिन उनके इस कुकृत्य और गलत उद्देश्य को कोलकाता उच्च न्यायालय ने विफल कर दिया है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सोमवार को पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा के 303 पीड़ितों को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि चुनावी हिंसा के कारण बेघर हुए लोगों को जल्द से जल्द घर भेजने की जरूरत है और राज्य पुलिस को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे शांति से अपना जीवन जी सकें।

बंगाल पुलिस के डीजी और आईजी को उन सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है, जिन्होंने राज्य विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की जीत के बाद हिंसा के कारण बेघर होने की शिकायत की है।

उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित चुनावी हिंसा मामले में याचिका दायर करने वाली अधिवक्ता प्रियंका टिबरेवाल ने आज पीठ के समक्ष बेघर भाजपा कार्यकर्ताओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की।

टिबरेवाल ने दावा किया कि अब तक 303 बेघर लोगों ने अदालत के समक्ष हलफनामा दायर किया है, जबकि कई और पीड़ित डर के मारे सामने नहीं आए हैं। उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्यों को मिलाकर एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन की मांग की है।

सत्ता समर्थित हिंसा की जिम्मेदार ममता बनर्जी है

आपको बताते चलें कि 2 मई को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद राज्य में सत्तारूढ़ TMC के तीसरी बार सत्ता में लौटने के बाद पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में बलात्कार और हत्या की घटनाएं सामने आईं थी।

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कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को चुनावी हिंसा के दौरान राज्य में मानवाधिकारों के उल्लंघन के सभी मामलों की जांच के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था।

एनएचआरसी द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद, उच्च न्यायालय ने चुनावी हिंसा में गंभीर मामलों की सीबीआई जांच का आदेश दिया।

पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने चुनावी हिंसा से संबंधित अन्य सभी अपराधों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का भी आदेश दिया। दोनों जांचों पर कोर्ट की नजर है।  टीएमसी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने एनएचआरसी की रिपोर्ट और कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा आदेशित सीबीआई जांच दोनों को कानूनी रूप से चुनौती दी थी।

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ममता बनर्जी एक अपरिपक्व और बुद्धिहीन राजनेता है। राष्ट्रीय स्तर के नेता बनने का सपना संजोए ममता बनर्जी और भूल चुकी हैं कि वह उनकी भी मुख्यमंत्री है जिन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया है और अगर उन्हें लगता है कि जिन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया है उन्हें कुचल दिया जाना चाहिए तो वह राष्ट्रीय स्तर के नेता का परिचय तो कभी नहीं प्राप्त कर सकती और आने वाले समय में बंगाल की जनता भी सत्ता से बेदखल कर देगी। शायद इस वक्त ममता बनर्जी को उत्तर प्रदेश आ करके योगी आदित्यनाथ से राजनीति का ककहरा सीखना चाहिए कि कैसे निष्पक्ष रुप से हिंसा मुक्त चुनाव का आयोजन किया जाता है और गरिमा में लोकतांत्रिक पद हासिल करने के बाद किस तरह से समावेशी सरकार का संयोजन कर सबको साथ लेकर के चला जाता है‌। उन्हें भाजपा के सबका साथ और सबका विकास की नीति से सीखने की जरूरत है, वरना न्यायालय जनता और केंद्र सरकार तीनों मिलकर आने वाले समय में उन्हें सबक सिखाएगी।

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