राजनीति में महत्वकांक्षा इतनी बढ़ जाती है की लोग आने वाला पतन भी दरकिनार कर देते हैं। कुछ ऐसा हीं हाल बिहार की राजनीति में भी हुआ है जहां वीआईपी पार्टी के मुखिया मुकेश साहनी का राजनीतिक पैर कतर दिया गया है। दरअसल वीआईपी पार्टी प्रमुख मुकेश साहनी के लिए एक बड़ा झटका लगा है जहां उनकी पार्टी के तीनों विधायक भाजपा में शामिल हो गए। यह तीन विधायक – राजू सिंह, मिश्रीलाल यादव और स्वर्ण सिंह क्रमशः साहेबगंज, अलीनगर और गौरा बौराम निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वर्तमान में, मुकेश साहनी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले बिहार मंत्रिमंडल में पशुपालन और मत्स्य पालन मंत्री के रूप में कार्यरत हैं। बिहार विधानसभा चुनावों में उनकी हार के बाद उन्हें विधान परिषद में पूरे 6 साल का कार्यकाल नहीं देने के अलावा वीआईपी पार्टी को दो कैबिनेट मंत्रालय नहीं देने के लिए भाजपा के साथ उनका टकराव रहा है। इस साल जुलाई में उनका कार्यकाल समाप्त होने पर उनके एनडीए द्वारा उम्मीदवार के रूप में खड़े होने की संभावना नहीं है।नाव के निशान पर चुनाव लड़ने वाले साहनी की नाव हीं डूब गई है और इससे भाजपा राज्य में सबसे मजबूत पार्टी बन गई है।
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बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी बीजेपी
तीन वीआईपी पार्टी विधायकों के ताजा कदम से भाजपा बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। बिहार विधानसभा में भाजपा की संख्या अब राजद के 75 से 77- 2 अधिक है। इसलिए विकास भाजपा को मनोवैज्ञानिक बढ़ावा देता है और उसके गठबंधन सहयोगी जद (यू) पर बढ़त देता है।2010 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने 91 सीटें जीती थीं, लेकिन उस समय वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में नहीं उभरी थी। इसलिए, यह बिहार में भाजपा के लिए एक नया युग है, क्योंकि पार्टी लोकप्रियता के मामले में अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों से आगे निकल गई है। इसके साथ ही, राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में जीत से भाजपा का मनोबल बढ़ा है।
बीजेपी और जदयू के बीच सब कुछ ठीक नहीं
यह कदम और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि भाजपा और जद (यू) के बीच सब कुछ ठीक नहीं हो सकता है। खबरों के अनुसार, इस महीने ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार और बीजेपी के स्पीकर विजय कुमार सिन्हा के बीच विवाद चल रहा था। इस महीने की शुरुआत में कुमार ने सिन्हा की उनके “असंवैधानिक” आचरण के लिए आलोचना की थी। दूसरी ओर, सिन्हा ने सीएम से “सदन की गरिमा नहीं गिराने” के लिए कहा था।
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पिछले साल पेगासस विवाद को लेकर एनडीए के सहयोगियों के बीच मतभेद पैदा हो गए थे। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पेगासस के आरोपों की जांच की मांग की थी। अंत में, जद (यू) के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी कहा था कि नीतीश कुमार “प्रधान मंत्री (पीएम) मटेरियल ” थे। इसके जवाब में बीजेपी मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा था कि प्रधानमंत्री का पद अगले 10 साल खाली नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि सीएम नीतीश कुमार को जद (यू) का पीएम चेहरा बनने से कोई रोक नहीं सकता है जबकि बीजेपी के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे।
दोनों पक्षों के नेताओं की हालिया टिप्पणी यह नहीं दर्शाती है कि गठबंधन में काफी सामंजस्य है। दरअसल, एनडीए में दरार के संकेत दिख रहे हैं। हालांकि, वीआईपी पार्टी विधायकों के भाजपा में शामिल होने से बिहार राज्य में इसका स्पष्ट फायदा है। अब भाजपा फ्रंटफुट पर खेलने के लिए तैयार है और भाजपा का किला मजबूत देख कर नीतीश कुमार की भी नींद उड़ गई होगी।
नीतीश कुमार को भी डर सत्ता रहा होगा की यदि उनके पार्टी के विधायक भी पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए तो उनकी कुर्सी के साथ -साथ उनकी राजनीति भी समाप्त हो जाएगी और वैसे भी नीतीश की उम्र अब सत्ता छोड़ने की हो चुकी है और भाजपा अब उनकी कोई भी अनैतिक बात बर्दाश्त करने के मूड में नहीं दिखती है। इसलिए भाजपा अब पूरी मजबूती से बिहार में अपनी सरकार चलाने में जूट गई है और संभव हो तो आने वाले दिनों में भाजपा बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा करने की योजना बना रही है चाहे नीतीश का समर्थन हो या फिर न हो भाजपा अब बिहार में रूकने वाली नहीं है।
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