पाकिस्तान में भारत विरोधी बयानबाजी करने के बाद अचानक चीन के विदेश मंत्री भारत दौरे आ गए। उन्हें उम्मीद थी कि सीमा पर चल रहे तनाव के बीच आए चीनी विदेश मंत्री का भारत भव्य तरीके से स्वागत सत्कार करेगा, उन्हें इस बात का भ्रम था कि उनके इस दौरे के माध्यम से सीमा पर चल रहे तनाव को कम करने को लेकर भारत उनसे बातचीत करेगा। किंतु भारत ने उनके सपने को चकनाचूर कर दिया है। न तो उनके इस दौरे को मीडिया में अधिक तवज्जो दी गई और न ही चीनी विदेश मंत्री वांग यी (Wang Yi) को कोई सकारात्मक उत्तर देकर वापस भेजा गया। मीडिया को दी गई जानकारी में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि भारत चीन के साथ एक स्थिर और पूर्वानुमान संबंध चाहता है। अर्थात् दोनों पक्ष किसी प्रकार की अप्रत्याशित नकारात्मक कार्रवाई न करें यह भारत की उम्मीद है। साथ ही भारत सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि सामान्यीकरण तभी हो सकेगा जब सीमा पर शांति स्थापित होगी।
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सीमा की स्थिति ही संबंधों को तय करेगी
महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने म्युनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में पहले ही भारत की स्थिति स्पष्ट कर दी थी। उस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था कि “सीमा पर जो स्थिति होगी वह आपसी संबंधों की रूपरेखा तय करेगी।” भारत ने चीनी विदेश मंत्री के इस दौरे में भी अपने स्टैंड में कोई बदलाव नहीं किया है। भारत ने स्पष्ट किया है कि आपसी संबंध 3 सिद्धांतों पर टिके हैं, पहला- द्विपक्षीय सम्मान, दूसरा- द्विपक्षीय संवेदनशीलता और तीसरा- द्विपक्षीय हित। खबरों की मानें तो चीनी विदेश मंत्री की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाकात हुई है। किंतु इस मुलाकात में क्या बातचीत हुई है इस संदर्भ में मीडिया को अधिक जानकारी नहीं दी गई है।
संभव है कि LAC पर भविष्य में होने वाले घटनाक्रम यह स्पष्ट करेंगे कि वर्तमान बातचीत सकारात्मक रही थी या भारत ने चीनी मंत्री की बैंड बजाकर उन्हें वापस भेज दिया! यहां एक तथ्य रेखांकित करने योग्य है कि गलवान घाटी में हुए टकराव के बाद सैन्य तनाव को कम करने के लिए अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी की बातचीत हुई थी। उस समय अजीत डोभाल ने चीनी विदेश मंत्री को स्पष्ट संदेश दिया था कि भारत चीन संबंध में सामान्य स्थिति बहाल होगी अथवा नहीं यह बात संघर्ष वाले स्थान से चीनी सेना की वापसी पर निर्भर करती है।
वांग यी के भारत दौरे का क्या कारण रहा?
ध्यान देने वाली बात है कि चीनी विदेश मंत्री का यह दौरा अकारण नहीं हुआ है। चीन इस वर्ष ब्रिक्स सम्मेलन का मेजबान है। अभी यह तय नहीं हुआ है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में उपस्थित होंगे अथवा नहीं, किंतु चीन यह चाहता है कि भारतीय प्रधानमंत्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं। एक ऐसे समय में जब यूक्रेन युद्ध के कारण रूस पश्चिमी देशों के निशाने पर है, चीन चाहता है कि ब्रिक्स देश एक साथ दिखाई दे। ब्रिक्स सम्मेलन की सफलता चीन और रूस के आपसी संबंधों को मजबूत करेगी। किंतु यह तभी संभव है जब भारतीय प्रधानमंत्री वहां उपस्थित हों।
हालांकि, भारत सरकार का रवैया यह बताता है कि चीन के लिए प्रधानमंत्री मोदी को अपना मेहमान बनाना आसान कार्य नहीं होगा। इस दौरे पर हुई बातचीत में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी समकक्ष को स्पष्ट संदेश दिया है कि पाकिस्तान में चीनी विदेश मंत्री द्वारा कश्मीर मुद्दे पर की गई बयानबाजी भारत को स्वीकार्य नहीं है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि एक राष्ट्र के रूप में भारतीयों की भावनाएं चीन के प्रति सकारात्मक नहीं है और इसका असर आपसी संबंधों पर पड़ेगा ही पड़ेगा। कुल मिलाकर चीनी विदेश मंत्री अपने आका शी जिनपिंग को भारत दौरे से प्रसन्न करना चाहते थे। यदि यह बातचीत सकारात्मक रहती और ब्रिक्स सम्मेलन सफल होता, तो जिनपिंग की अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में छवि सुदृढ़ होती। किंतु यह सब इतनी आसानी से होता नहीं दिख रहा है।
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