अगर अपने घटिया कारनामों से बाज नहीं आया बॉलीवुड, तो अगले 5 साल में खत्म हो जाएगा अस्तित्व

जल्द ही बॉलीवुड मुक्त हो सकता है भारत!

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Source- TFIPOST

कुछ लोगों को देख अनायास ही एक कहावत स्मरण हो आती है, ‘चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए’ और ये बात बॉलीवुड पर शत प्रतिशत लागू होती है। फिल्म उद्योग के भाग्य रसातल में है, जनता का विश्वास लगभग उठ चुका है, लेकिन मजाल है कि अपने आप को स्टार्स या सुपरस्टार्स समझने वाले अपनी ओछी हरकतों से बाज आए। इसी बीच चर्चित अभिनेता जॉन अब्राहम का अपनी फिल्म के प्रोमोशन के दौरान एक विवादित बयान आया, जिसमें वे कहते हैं कि भारतीय सिनेमा में बने रहने के लिए वो क्षेत्रीय सिनेमा का हाथ नहीं थामेंगे और वो अपने आप को हिन्दी फिल्म के ही हीरो मानते हैं। अपने इन कारनामों की वजह से ही बॉलीवुड अपने विनाश की ओर अग्रसर है और मौजूदा समय में बॉलीवुड के जिस स्वरूप को हम देख रहे हैं, आने वाले 5 वर्षों में उसका अस्तित्व ही मिट जाएगा।

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जॉन की घटिया विचारधारा

अब जॉन अब्राहम के बयान का बॉलीवुड के विनाश से क्या वास्ता? वास्ता है, यदि आप उनके बयान पर गहराई से विचार करें तो…। अपनी फिल्म ‘अटैक’ के प्रोमोशन के दौरान जब जॉन से एक फिल्म में उनकी कथित भूमिका के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उसका खंडन करते हुए कहा, “मैं अपने आप को हिन्दी फिल्मों का हीरो मानता हूं और मैं कभी भी रीजनल फिल्म नहीं करूंगा। मैं दूसरे अभिनेताओं की भांति उद्योग में बने रहने के लिए सेकंड लीड की भूमिका भी नहीं निभाऊँगा।”

जॉन का संकेत कहीं न कहीं अजय देवगन और आलिया भट्ट समेत उन कलाकारों की ओर था, जिन्होंने हाल ही में RRR समेत कई महत्वपूर्ण बहुभाषीय प्रोजेक्ट साइन किये थे। अब किसी के व्यक्तिगत निर्णय पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं हो सकता, परंतु जिस तरह से क्षेत्रीय फिल्मों को जॉन ने संबोधित किया, उससे स्पष्ट होता है कि आज भी कई बॉलीवुड सितारे कैसे तेलुगु, मलयालम, तमिल, कन्नड़ जैसे प्रतिभाशाली सिनेमा उद्योगों को अब भी भारतीय सिनेमा का हिस्सा नहीं मानते, और हेय की दृष्टि से देखते हैं। एक ओर अल्लु अर्जुन और डुलकर सलमान जैसे अभिनेता अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए भी अपने आप को क्षेत्रीय नहीं, भारतीय सिनेमा का हिस्सा मानते हैं, वहीं दूसरी ओर जॉन अब्राहम जैसे लोग भी हैं, जो अभी भी अपनी कूप मंडूक विचारधारा के सहारे जीते हैं और सोचते हैं कि जनता इन्हें हाथों हाथ स्वीकार करेगी।

जल्द ही बॉलीवुड मुक्त हो सकता है भारत

शायद इसी का परिणाम है कि बॉलीवुड की फिल्में इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर रही हैं। नवंबर 2021 से अगर देखा जाए, तो ‘सूर्यवंशी’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ को छोड़कर कोई भी फिल्म अपना मूल बजट तक घरेलू बॉक्स ऑफिस पर रिकवर नहीं कर पाई। ‘83’, ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ और ‘बच्चन पाण्डेय’ तो सुपर फ्लॉप सिद्ध हुए, क्योंकि उनका एक तो मनोरंजन या कंटेंट से दूर तक कोई नाता नहीं और एजेंडावाद तो उसमें ठूंस ठूंस कर भरा हुआ था। वहीं, दूसरी तरफ चाहे ‘पुष्पा’ या फिरRRRजैसी फिल्मों के जरिए तेलुगु फिल्म उद्योग के नेतृत्व में क्षेत्रीय सिनेमा ने भारतीय सिनेमा की एक ऐसी नई परिभाषा गढ़नी प्रारंभ कर दी है, जहां बॉलीवुड का वर्चस्व नहीं चलेगा, अपितु उसी फिल्म का प्रभुत्व होगा, जिसकी कहानी में दम होग, और अभी KGF–Chapter 2 की लहर तो बाकी है भैया!

ऐसे में इतना तो स्पष्ट है कि बॉलीवुड का अस्तित्व अब खतरे में है। निस्संदेह ‘शेरशाह’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाने वाले अब भी उपस्थित है, लेकिन उनकी उपस्थिति लगभग नगण्य है और यदि बॉलीवुड को चलाने वाले नहीं सुधरे, तो आने वाले वर्षों में ‘कांग्रेस’ मुक्त भारत के समान एक दिन हमें बॉलीवुड मुक्त भारत भी देखने को मिल सकता है।

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