मेक इन इंडिया भारत सरकार का एक प्रमुख राष्ट्रीय कार्यक्रम है जिसे निवेश को बढ़ावा देने, नवाचार को बढ़ावा देने, कौशल विकास को बढ़ाने, बौद्धिक संपदा की रक्षा करने और देश में सर्वश्रेष्ठ निर्माण बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस पहल का प्राथमिक उद्देश्य दुनिया भर से निवेश आकर्षित करना और भारत के विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करना है। इसका नेतृत्व उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम भारत के आर्थिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उद्देश्य मौजूदा भारतीय प्रतिभा आधार का उपयोग करना, अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा करना और माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र को सशक्त बनाना है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य अनावश्यक कानूनों और विनियमों को समाप्त करके, सरकार को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और जवाबदेह बनाकर, नौकरशाही प्रक्रियाओं को आसान बनाकर, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स पर भारत की रैंक में सुधार करना है।
किन किन क्षेत्रों पर है ध्यान?
मेक इन इंडिया कार्यक्रम का फोकस 25 सेक्टरों पर है। इनमें शामिल हैं: ऑटोमोबाइल, ऑटोमोबाइल घटक, विमानन, जैव प्रौद्योगिकी, रसायन, निर्माण, रक्षा विनिर्माण विद्युत मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, खाद्य प्रसंस्करण, आईटी और बीपीएम, चमड़ा, मीडिया और मनोरंजन, खनन, तेल और गैस, फार्मास्यूटिकल्स, बंदरगाह और शिपिंग, रेलवे, अक्षय ऊर्जा, सड़कें और राजमार्ग, अंतरिक्ष, कपड़ा और वस्त्र, थर्मल पावर, पर्यटन, आतिथ्य और कल्याण। इस पहल के लिए समर्पित योजना न केवल 25 क्षेत्रों को प्रदर्शित करती है, बल्कि अवसरों, नीतियों और व्यवसाय करने में आसानी पर भी ध्यान केंद्रित करती है। निवेशक डेस्क इस वेबसाइट का एक अभिन्न अंग है, जिसका उद्देश्य सभी क्षेत्रों में निवेशकों को सभी जानकारी/डेटा विश्लेषण प्रदान करना है।
महामारी का असर
COVID-19 महामारी ने दवाओं और चिकित्सा उत्पादों, भोजन, ऊर्जा, वाहन, दूरसंचार उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स और अनगिनत अन्य सामानों के लिए दुनिया की आपूर्ति श्रृंखलाओं की नाजुकता को उजागर कर दिया है। कुछ कंपनियों ने अधिक विश्वसनीयता और लचीलेपन के लिए अपने सोर्सिंग और विनिर्माण पदचिह्नों को फिर से कॉन्फ़िगर करना शुरू कर दिया है ताकि उन्हें केवल कुछ भौगोलिक क्षेत्रों पर निर्भर न रहना पड़े। लेकिन कुछ देश अभी तक इन बदलावों का पूरा फायदा उठाने को तैयार नहीं हैं। पर, भारत तैयार है और उसका प्रतिफल भी दिखने लगा है।
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के निवेश में लगातार बढ़ोत्तरी
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के निवेश में लगातार बढ़ोत्तरी से साफ है कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम की रफ्तार तेज हो रही है। गोल्डमैन सैश की हालिया की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के निवेश में वित्त वर्ष 2020-21 के मुकाबले 210 फीसद तो वित्त वर्ष 2019-20 के मुकाबले 460 फीसद का इजाफा रहा। वित्त वर्ष 2021-22 में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में कांट्रैक्ट अवार्ड करने में पूर्व के वित्त वर्ष के मुकाबले 135 फीसद की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों में पूंजीगत खर्च में निजी निवेश की हिस्सेदारी में भी खासी बढ़ोत्तरी हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में गत वित्त वर्ष 21-22 में 8,082 अरब रुपए के नए निवेश किए गए, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 में 1445 अरब रुपए का निवेश किया गया था। गत वित्त वर्ष 2021-22 में पूंजीगत खर्च में घरेलू स्तर के निजी सेक्टर ने 11,103 अरब रुपए के नए निवेश की घोषणा की जबकि इससे पूर्व के वित्त वर्ष में निजी सेक्टर ने 4876 अरब रुपए के नए निवेश की घोषणा की थी। विदेशी निजी निवेशकों ने वित्त वर्ष 21-22 में पूंजीगत खर्च के लिए 2,173 अरब रुपए के नए निवेश की घोषणा की जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में विदेशी निजी निवेशकों ने सिर्फ 407 अरब रुपए के नए निवेश की घोषणा की थी।
रिपोर्ट के मुताबिक इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में वित्त वर्ष 2021-22 में 8,883 अरब रुपए के नए निवेश की घोषणा की गई जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में 7,355 अरब रुपए के नए निवेश की घोषणा इस सेक्टर में की गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक गत वित्त वर्ष में विभिन्न सेक्टर में कई बड़ी परियोजनाओं की घोषणा की गई। खासकर स्टील सेक्टर में कई नई परियोजनाओं की घोषणा की गई। इसके अलावा पेट्रोकेमिकल्स, सीमेंट, ऑटोमोबाइल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, ई-वाहन व डाटा सेंटर शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने 13 सेक्टर में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव की भी घोषणा की है। PLI स्कीम के तहत इन सेक्टर में नए निवेश की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
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