बिहार में बहार है यह सिर्फ फ़िल्मी कहानियों और डायलॉगों में सुनने मिल सकता है पर असल में बहार नहीं, लोग लाचार हैं। लाचारी भी ऐसी कि बना बनाया व्यवसाय क्षणभर में धराशाई हो जाता है, और सरकारें आँख मूंदकर रह जाती हैं। ऐसा ही मामला हाल ही में बिहार से सामने आया है, जहाँ बिहार और झारखंड राज्य में मोबाइल सेवाओं पर बंद होने की तलवार लटक रही है। कुछ कथित यूनियनों ने बिहार और झारखंड क्षेत्र में दूरसंचार सेवाओं को बाधित करने की धमकी दी है। ऐसे में यदि धमकियों पर राज्य का शासन और कामकाज चलेगा तो वो दिन दूर नहीं कि जो आज बंगाल में हो रहा हैं वह शीघ्र ही बिहार में देखने को मिलेगा |
और पढ़ें ;-
सैम बहादुर – एक ऐसा मतवाला जिनके लिए संयम बाद में और लक्ष्य सबसे पहले था
बिहार में फैली अराजकता
यूँ तो बिहार में नीतीश कुमार का शासन और सत्ता कभी किसी दल तो कभी किसी दल के सहयोग से चल ही जाती है, पर राज्य की यथास्थिति आज बद से बदतर हो चुकी है। राज्य में शासन और प्रशासन के संवाद के बीच एक बड़ी खाई प्रतीत होती है, तो वहीं यह भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, कि राज्य में वो निवेश अब भी नहीं आ पा रहा है, जो उसके बाद बने राज्यों के पास अबसे 5 वर्ष पूर्व ही आ गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह राज्य में बढ़ता क्राइम रेट है, जो किसी भी बाहरी कंपनी को डरा देता है। अब नई कंपनियां आए या न आएं पर राज्य में स्थापित कई वर्षों से राज्य को आर्थिक रूप से सबल बनाने में सहायक कंपनियां आज अपने बुरे दौर से बस इसलिए गुजर रही हैं, क्योंकि उन्हें स्थानीय उगाही करने वालों, गुंडे बदमाशों और माफियाओं और सरगनों से जानलेवा धमकियाँ मिल रही हैं। ऐसे में बिहार की तस्वीर कुछ कुछ पश्चिम बंगाल जैसी बनती दिख रही है जहाँ आज अपराधियों में खौफ तो नहीं है | देश की एक प्रसिद्ध टेलीकॉम कंपनी बिहार में अपने व्यवसाय को ताला मार कर सकती है। अगर ऐसा होता है, तो राज्य को एक बड़ा झटका तो लगेगा ही साथ ही लाखों मोबाइल उपयोगकर्ताओं का विकल्प खत्म हो सकता है। और सबसे बड़ी बात, कंपनी के लिए काम करने वाले करीब 9 हजार लोग बेरोजगार हो सकते हैं, जो सबसे बड़े बिखराव और बिहार के सत्यनाश की कहानी लिखने की ओर कदम बढ़ा सकता है।
और पढ़ें ;- क्या बिहार में नीतीश युग का अंत हो गया है?
टेलीकॉम कंपनियाँ को विषम परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा है
दरअसल, एक लंबे समय से बिहार में टेलीकॉम कंपनियाँ और उनके संबंधित अधिकारी काफी कष्टों से जूझ रहे हैं। मामला मोबाइल टावर और उसके जेनरेटर के लिए उपलब्ध कराए जाने वाले डीजल से जुड़ा है। कंपनी से ज्यादा डीजल की मांग की जा रही है, जबकि कंपनी का कहना है, कि अब बिजली की आपूर्ति पूरी हो रही है, इसलिए उसे आवश्यकता नहीं है। विवाद बढ़ने पर कंपनी के 2 हजार टावर 10 घंटे के लिए जबरन बंद करा दिए गए जिससे राज्य में बहुत बड़े पैमाने पर आर्थिक और मानसिक नुकसान दर्ज़ किया गया। इस मामले में कंपनी के अधिकारियों ने कुल 5 जिलों के 9 थानों में लिखित शिकायत दर्ज़ की है। और तो और इससे कंपनी को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है। यदि ऐसी घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती रहीं तो, बिहार से धीरे-धीरे कर सभी स्थापित कंपनियां छिटककर अन्य राज्यों में चली जाएंगी और अंततः बिहार के युवा नौकरी से और भी वंचित हो जाएंगे।
और पढ़ें ;-VIP पार्टी ने बिहार में भाजपा को फिर से जीवंत करने का एक और मौका दिया है
जबरदस्ती डीजल लेने का दबाव बना रहे संगठन
डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन (डीआईपीए) के महानिदेशक तिलक राज दुआ ने झारखंड के मुख्य सचिव को 28 मार्च को लिखे एक पत्र में कहा, “राज्य भर में दूरसंचार सेवाओं को बाधित करने के लिए एक अवैध खतरा है।” डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन (DIPA) ने बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुभानी को एक पत्र लिखा है। डीआईपीए के सदस्यों में अमेरिकन टावर कंपनी, इंडस टावर्स, समिट डिजीटेल (पहले रिलायंस जियो इंफ्राटेल), टावर विजन आदि शामिल हैं। दुआ के मुताबिक, इंडस्ट्री एसोसिएशन के सदस्य डीजल पर निर्भरता कम करके ‘ग्रीन टेलीकॉम’ विजन की दिशा में काम कर रहे हैं। जिसने संबंधित राज्यों में यूनियनों को परेशान किया है। नामों का उल्लेख किए बिना, पत्र में कहा गया है, “डीजल की कमी संघ के साथ अच्छी तरह से नहीं हुई है, और अगर डीजल की आपूर्ति में एक लीटर की भी कटौती की जाती है, तो वे जबरदस्ती कार्रवाई की धमकी दे रहे हैं।”
परिणामस्वरूप यह पूरा प्रकरण रिलायंस जियो, भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और राज्य द्वारा संचालित भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के नेटवर्क को प्रभावित कर रहा है। इन्हें देखते हुए, दुआ ने सभी संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करने में राज्यों की सरकार के हस्तक्षेप की मांग की है। सभी जिलों को निर्बाध दूरसंचार कनेक्टिविटी और दूरसंचार कर्मचारियों, उनके परिवारों, अधिकारियों, एजेंटों और भागीदारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनुरोध भी किया है।
एक समय पर जब बिहार में बिजली की स्थिति लचर थी, तब सभी टेलीकॉम कंपनी जेनरेटर से मोबाइल टावर को चलाने के लिए डीजल देती थी, लेकिन अब बिहार में बिजली के हालात सुधरने के बाद टेलीकॉम कंपनियों ने जेनरेटर के लिए पहले की तुलना में डीजल की कटौती कर दी। टेलीकॉम कंपनियों का यह फैसला मोबाइल टावर मालिक और टावर की सिक्योरिटी में तैनात गार्ड को रास नहीं आया। इसके बाद ही वो दबंगई, रंगदारी और अपनी मनमानी पर उतर आए हैं। आरोप है, कि ये लोग जबरन टेलीकॉम कंपनी से पहले की तरह ही डीजल देने की मांग कर रहे हैं। दरअसल कंपनी के सूत्रों की मानें तो मोबाइल टावर मालिक और सिक्योरिटी गार्ड मिलकर डीजल की चोरी करते थे। कंपनी के नए फैसले से डीजल की चोरी करने में इन्हें परेशानी होने लगी अन्तोत्गत्वा इनके अवैध कमाई पर रोक लगने के साथ ही सभी अवैध धंधों पर ताले जड़ गए और ये चोरी की कमाई करने में असफल होने लगे।