पीएम मोदी ने भारत का कायाकल्प कर दिया है। स्वतंत्रता पश्चात पहली बार किसी सरकार ने सबका साथ सबका विकास की राजनीति और सामाजिक कल्याण के मुद्दे पर देश को एकीकृत किया है। हालांकि, सबसे बड़ा बदलाव यह है कि पीएम मोदी ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत एक उभरती हुई शक्ति के रूप में वैश्विक पटल पर स्थापित हो और हाल ही में यह तब प्रदर्शित हुआ जब ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन भारत के दौरे पर आए थे। ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन के बाद अब अर्जेंटीना के विदेश मंत्री की यात्रा भारत और पीएम मोदी के बढ़ते सामर्थ्य को प्रतिध्वनित कर रही है।
हमारे अपने चाहे हमें कितना भी कोसे पर, विश्व ने भारत को एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्वीकार कर लिया है। दुनिया यह जानती है कि भारत न सिर्फ सैन्य, आर्थिक बल्कि एक कूटनीतिक ताकत भी है जिसपर भरोसा जताया जा सकता है। शायद, इसी नियत की वजह से दुनिया भारत के उदय का समर्थन करती है, जबकि चीन को संशय के नज़र से देखती है। हाल ही में, अर्जेंटीना के विदेश मंत्री ने अर्जेंटीना और यूनाइटेड किंगडम के बीच फ़ॉकलैंड या मालवियन द्वीप मुद्दे को हल करने के लिए भारत की मदद मांगी है। संघर्ष की मध्यस्थता के लिए अर्जेंटीना द्वारा भारत को शामिल करने का नवीनतम प्रयास नई दिल्ली को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करता है, जो जटिल विवादों और लंबे समय से चल रहे संघर्षों को हल करने का माद्दा रखती है।
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मध्यस्थ के रूप में भारत की स्थिति
हाल ही में, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा के दौरान क्षेत्रीय विवादों की मध्यस्थता में भारत की भूमिका की महत्ता स्थापित हुई थी। जॉनसन की भारत यात्रा दिलचस्प रूप से मॉरीशस के पीएम प्रविंद जगन्नाथ की आठ दिवसीय भारत यात्रा के साथ हुई थी। दोनों प्रधानमंत्रियों की एक साथ यात्रा का कारण डिएगो गार्सिया विवाद को भारत के ध्यान में लाना और इसे सुलझाना था। द्वीप समूह के निवासियों के विरोध के बावजूद, ब्रिटेन ने मॉरीशस के चागोस द्वीप समूह पर कब्जा जारी रखा है।
आज के समय में चागोस द्वीप समूह पर डिएगो गार्सिया द्वीप श्रृंखला एक रणनीतिक अमेरिकी सैन्य अड्डा है। इसलिए, यूके इसे छोड़ना नहीं चाहता है। दूसरी ओर, मॉरीशस भी इस पर संप्रभुता का दावा करता है। इसलिए जगन्नाथ और जॉनसन की एक साथ यात्रा इस बात का संकेत थी कि दोनों नेता चाहते हैं कि भारत मध्यस्थता करे और अपने विवाद का समाधान निकाले। अब अर्जेंटीना के लोग भी भारत की ओर रुख कर रहे हैं।
जगन्नाथ की भारत यात्रा से मारिसस- ब्रिटेन के बीच सीमाई विवाद सुलझाने की उम्मीद पैदा हुई। शायद इसीलिए, अर्जेंटीना के लोगों ने भी अपने संघर्ष को सुलझाने में भारत की सहायता लेने का फैसला किया। मॉरीशस की तरह, अर्जेंटीना भी ब्रिटिश-फ़ॉकलैंड द्वीप विवाद के साथ एक औपनिवेशिक युग के क्षेत्रीय संघर्ष को साझा करता है। इसलिए, अपनी भारत यात्रा के दौरान अर्जेंटीना के विदेश मंत्री सैंटियागो कैफिएरो को भारत की प्रशंसा करते हुए और “क्षेत्रीय विवाद” को हल करने के लिए नई दिल्ली के पारंपरिक विचार को समर्थन देते हुए देखा गया।
फ़ॉकलैंड विवाद
अर्जेंटीना के लोग चाहते हैं कि भारत इस जटिल संघर्ष का समाधान करे। फ़ॉकलैंड द्वीप समूह दुनिया भर में सबसे अधिक विवादित क्षेत्रों में से एक है। अर्जेंटीना के तट से दूर दक्षिण अटलांटिक महासागर में स्थित इस द्वीप समूह पर 18वीं शताब्दी में ब्रिटेन, फ्रांस और स्पेन सहित कई यूरोपीय शक्तियों का कब्जा था। 18वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजों ने द्वीप समूह पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया और अर्जेंटीना के साथ संघर्षों की एक श्रृंखला के बाद, फ़ॉकलैंड द्वीप 1840 में एक ब्रिटिश क्षेत्र बन गया। इस द्वीप समूह ने दो विश्व युद्धों के दौरान अंग्रेजों को एक रणनीतिक लाभ दिया और इसलिए, ब्रिटेन ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी इसपर अपना कब्जा बनाए रखने का फैसला किया। दूसरी ओर, अर्जेंटीना के लोग इस द्वीप समूह पर अपनी संप्रभुता का दावा करते रहे हैं।
वार्ताओं का दौर चला, पर दोनों देशों के बीच वार्ता विफल रही और वे इस द्वीपसमूह को लेकर 1982 में युद्धरत हो गए। युद्ध के अंत तक, 650 अर्जेंटीना सैनिक और 255 ब्रिटिश सैनिक अपनी जान गंवा चुके थे। किसी भी तरह से, ब्रिटेन ने द्वीप समूह पर अपना नियंत्रण बनाए रखा और इसलिए अर्जेंटीना संघर्ष को सुलझाने के लिए भारत से गुहार लगा रहा है। अर्जेंटीना के विदेश मंत्री कैफिएरो ने कहा, “अर्जेंटीना और भारत समान-औपनिवेशिक विरासत और मूल्यों को साझा करते हैं।” अर्जेंटीना के विदेश मंत्री ने बड़ी संख्या में दूतों की उपस्थिति में अपनी भारत यात्रा के दौरान फ़ॉकलैंड द्वीप समूह पर यूके के साथ “संवाद के लिए आयोग” का भी शुभारंभ किया।
एक साक्षात्कार के दौरान, कैफिएरो ने आगे विस्तार से बताया कि “वास्तव में अर्जेंटीना के दावे का समर्थन करने में भारत की भूमिका ऐतिहासिक है। भारत यूएन डीकोलोनाइजेशन कमीशन का हिस्सा है और यह अन्य मंचों का भी हिस्सा है जो इन समस्याओं का समाधान कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, यह किसी सरकार या देश के साथ अच्छे या बुरे संबंधों की बात नहीं है, यह एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है और इसके बीच भारत चाहता है कि हम एक राजनयिक समाधान खोजें। हम सभी जानते हैं कि हमें इस विवाद को हल करने की आवश्यकता है क्योंकि यूके ने इसे खड़ा किया है। 189 साल पहले हमारी जमीन पर कब्जा करना और उपनिवेश स्थापित करना वास्तव में एतिहासिक त्रुटियां हैं, इसलिए हमें बातचीत के आधार पर एक शांतिपूर्ण समाधान खोजने की जरूरत है।
मॉरीशस और अर्जेंटीना जैसे देशों के लिए, भारत स्पष्ट रूप से जटिल विवादों को सुलझाने वाले एक शक्ति के रूप में उभर रहा है। अर्जेंटीना और मॉरीशस जैसे देश भारत को एक निष्पक्ष शक्ति के रूप में देखते हैं, जो नव-साम्राज्यवाद का प्रतिकार कर सकता है और साथ ही वे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में एक प्रभावशाली वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उदय से भी चकित हैं। वे जानते हैं कि यूनाइटेड किंगडम जैसी अतीत की महाशक्तियां भारत को परेशान नहीं कर सकतीं और यदि नई दिल्ली पूरे मन से इसमें शामिल हो जाती है, तो फ़ॉकलैंड द्वीप समूह जैसे सदियों पुराने संघर्षों का समाधान हो सकता है।