आखिरकार, पाकिस्तान में तब्दीली आ ही गयी। तब्दीली वहाँ के जनता कल्याण, मानवीय सूचकांक और राष्ट्र उत्थान के संदर्भ में नहीं बल्कि सत्ता परिवर्तन के संदर्भ में आई है। विपक्ष द्वारा नेशनल असेंबली में पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव में इमरान सरकार बहुमत साबित करने में नाकाम रही। पाक के नेशनल असेंबली में 342 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए 172 सीटें चाहिए। विपक्ष जोड़-तोड़ और तोड़-मरोड़ करके किसी तरह बहुमत के पास पहुँच गयी। न्यूनतम बहुमत और प्रचंडतम गठबंधन से बनी ये अवसरवादी सरकार पाक सेना के लिए बिल्कुल अनुकूल है। वैसे तो पाक में सेना का ‘पोपट’ ही सत्ताधीश बनते हैं पर इस बार शाहबाज़ शरीफ के रूप में उन्हे एक गुलाम मिल चुका है, अगर इस गुलाम ने कुछ भी गलत किया तो अपनी सत्ता से हाथ खो बैठेगा।
अतः सत्ता पक्ष से सेना को कोई समस्या के आसार नहीं लगता लेकिन विपक्ष का क्या? इमरान खान उखड़े हुए हैं। उनके गुस्से का असर जनता में पाक सेना के खिलाफ उठे लहर में देखा जा सकता है। सत्ताच्युत होने के बाद इमरान की पार्टी नें पूर्व गृहमंत्री शेख रशीद के नेतृत्व में रावलपिंडी में रैली की। इस रैली में चर्चा का मुख्य केंद्र बिन्दु रहा पाक सेना के खिलाफ लगे नारे। लोग चिल्ला रहे थे- “चौकीदार चोर है।“ यहाँ चौकीदार पाक सेना है। रशीद इस नारे को सुनते ही घबरा गए लेकिन जनता का क्या है? तख्तापलट, नैतिकता गिरावट, सत्ता परिवर्तन से आजिज़ आ चुकी है।
अतः आने वाले समय में सेना पर जनता का दबाव अवश्य बढ़ेगा क्योंकि पाक में असली सरकार सेना की ही है। सीधे जनता से मिली चुनौती के बाद सेना का कदम क्या होगा? कोई नेता या मंत्री होते तो तख्तापलट कर देते लेकिन जनता का तख्तापलट कैसे करें? अतः पाक सेना जनता को मिलने के लिए उन्हे दिग्भ्रमित करेगी और इसमें उसके दो हथियार होंगे। प्रथम, धर्म और द्वितीय राष्ट्रवाद।
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हिंदुओं पर हमले बढ़ेंगे अगर धर्म के परिपेक्ष्य में देखें तो लोगों की भावनाओं को उजगार करने के लिए पाक सेना हिंदुओं पर हमले को बढ़ावा देगी। दिन और इस्लाम को खतरे में बताएगी जिससे लोगों में एकजुटता बढ़ेगी और पाक सेना को समर्थन मिल सकता है। इसके साथ-साथ पाक के अनैतिक आधिपत्य में फंसे बलोच जैसे स्वतन्त्रता सेनानियों पर कूरता और नृशंसतापूर्ण कारवाई की जाएगी।
राष्ट्रवाद को उभरने के लिए भारत से भिड़ंत
वैसे तो पाक राष्ट्रवाद का अर्थ नहीं जानता क्योंकि उसकी स्थापना ही धर्म के नाम पर हुई है। उनके पास कोई साझी संस्कृति, इतिहास और विरासत भी नहीं है जिस पर वो गौरवान्वित हो सके। उनका पूरा राष्ट्रवाद भारत विरोध पर ही टीका हुआ है। अतः पाकिस्तान भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम अवश्य देगा। जहां तक भारत विरोधी गतिविधियों का प्रश्न है भारत से सीधे भिड़ने की तो उसकी औकात है नहीं इसीलिए वो दो चीजों का सहारा लेगा। प्रथम आतंकवादी और द्वितीय चीन या फिर दोनों एक साथ। आतंकवादी कोई उतनी बड़ी समस्या नहीं है क्योंकि भारतीय सेना उनको हूरों के पास भेजने की अभ्यस्त हो चुकी है। ये समस्या निरंतर बनी रहेगी बस हाल के परिस्थितियों को देखते हुए भारतीय सेना इसमें तीव्रता ला देगी। हूरों के उपलब्धता में समस्या अवश्य आ सकती हैं लेकिन उसका निदान करना जन्नत के सत्तधीशों के हाथ में है।
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लद्दाख बनेगा संग्राम स्थल
अब बात करते हैं चीन की, अगर पाक चीन के साथ मिलकर या फिर उसकी मदद से कोई दुस्साहस करता तो यह समस्या का विषय है। संभावना है की इस समस्या का स्थान बनेगा- लद्दाख। लद्दाख क्षेत्र उत्तर में काराकोरम पर्वत श्रृंखला और दक्षिण में ज़ांस्कर श्रेणी के बीच स्थित है। पाकिस्तान इसके पश्चिमी सीमा से लगता है और चीन इसके पूर्व में है। शुष्क और ऊबड़-खाबड़ इलाके के बावजूद, यह सदियों से सिल्क रूट का हिस्सा रहा है और कई बार फारसियों, तिब्बतियों और रूसियों द्वारा आधिपत्य हेतु जंग का मैदान बने हैं। ये सभी पहाड़ को नियंत्रित करने के लिए पहुंच और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारत, चीन और पाकिस्तान सभी के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में आर्थिक और सामरिक हित निहित हैं। लद्दाख भी भारतीय प्रशासित कश्मीर की सीमा में है। जम्मू और कश्मीर और लद्दाख दोनों 2019 में भारत के औपचारिक हिस्से बन गए हैं जिससे पाकिस्तानी सेना इन क्षेत्रों में कोई सैन्य गतिविधि को अंजाम दे सकती है क्योंकि इस क्षेत्र से पाक और चीन दोनों के अनैतिक हित जुड़े हुए है। इसी इलाके से पाक-चीन की महत्वाकांक्षी CPEC परियोजना भी गुज़र रही है। अतः भारत को इस क्षेत्र में सतर्क रहते हुए अपने तैयारियों और तैनातियों दोनों को तीव्र कर देना चाहिए।
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