जयशंकर ने बाइडेन के मानवाधिकार बम को वापस उसी की जेब में डाल दिया

सुन लो अमेरिका, जयशंकर से पंगा नहीं लेने का!

मानवाधिकार अमेरिका

सौजन्य अमर उजाला

चौबे जी गए छब्बे जी बनने, दूबे जी बनकर लौटे। पहले रूस-यूक्रेन मामले को लेकर भारत की तटस्थता पर ज्ञान बांटा, फिर तेल आयात पर बुद्धि देने का प्रयास किया, फिर आया मानवाधिकार का शिगूफा क्योंकि कुछ भी हो भारत को धमकाने की मूल प्रवृत्ति कैसे छूट सकती है। इसी पर अमेरिका ने सदा से अपना काम करना जारी रखा है।

गुंडागर्दी धरी की धरी रह गई

पर इस बार भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सभी अमेरिकी ज्ञान बहादुरों को एक ही बयान में चारों खाने चित्त कर दिया। जयशंकर ने अकेले पवनसुत हनुमान बनकर एक तरफ से पश्चिमी मीडिया और दूसरी ओर से जो बाइडन की लॉबी को दांतों चने चबवा दिए और सारी अमेरिकी गुंडागर्दी धरी की धरी रह गई।

दरअसल, भारत के दो बड़े मंत्रालयों के ध्वजवाहक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर बीते सोमवार को अमेरिका में थे। वहां दो बड़ी महत्वपूर्ण चर्चाओं, पहली 2+2 बैठक और दूसरी आभासी शिखर सम्मेलन के लिए दोनों भारत का पक्ष रखने के लिए पहुंचे थे जिसमें तमाम बड़े पदधारक मौजूद थे। मूल रूप से अमेरिका का उद्देश्य ही भारत पर दबाव बनाने का था। वहीं, ये पैंतरा उनपर ही उलट पड़ गया।

हुआ ये कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कथित “मानवाधिकारों के हनन” के संबंध में भारत के विरुद्ध की गयी आलोचना पर संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) को कड़े रूप में उत्तर दिया है। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली को भी अमेरिका में मानवाधिकारों के बारे में चिंता है। ऐसे में अरी, मोरी मैया कहकर अमेरिका बिलखता रह गया और खेला कर गए माननीय मंत्री जयशंकर जी।

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अमेरिकी विदेश मंत्री को क्या प्रतिक्रिया मिली

भारत में “मानवाधिकारों के हनन में वृद्धि” पर अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की हालिया टिप्पणियों पर तीखी प्रतिक्रिया में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि “लोगों” को भारत की नीतियों के बारे में विचार रखने का अधिकार है, लेकिन साथ ही, नई दिल्ली उनके बारे में विचार रखने का “समान रूप से हकदार” है।

विदेश मंत्री ने बुधवार को अमेरिकी बयानों पर अपनी पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया में न्यूयॉर्क में दो सिख पुरुषों पर हुए घृणात्मक हमले का भी उल्लेख किया था जिससे अंदरखाने अमेरिकी तंत्र की सुलग गई और सूत्रों के अनुसार बरनोल का प्रबंध भारत से करके भेजा जायेगा।

सोमवार को शीर्ष अमेरिकी और भारतीय मंत्रियों के 2+2 संवाद के बाद एक संयुक्त समाचार सम्मेलन में, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा था कि अमेरिका भारत में हाल के कुछ “संबंधित घटनाक्रमों” की निगरानी कर रहा है, जिसमें उन्होंने “मानव अधिकार हनन में वृद्धि” की बात कही थी। कुछ सरकार, पुलिस और जेल अधिकारियों द्वारा अधिकारों का हनन हो रहा है ऐसे बात वार्ता में उल्लेखित की गई जिस पर जयशंकर ने सौम्यता से धोबीपछाड़ दिया और अमेरिका के मुंह में दही जम गया कि अब कहें तो भला क्या कहें।

एस जयशंकर ने प्रेस वार्ता में कहा, मानवाधिकार का मुद्दा मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान चर्चा का विषय नहीं था “देखिए, लोगों को हमारे बारे में विचार रखने का अधिकार है। लेकिन हम भी समान रूप से उनके विचारों और हितों के बारे में विचार रखने के हकदार हैं। इसलिए, जब भी कोई चर्चा होती है, तो मैं कर सकता हूं आपको बता दें कि हम बोलने से पीछे नहीं हटेंगे, मानवाधिकार का मुद्दा मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान चर्चा का विषय नहीं था।

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मानवधिकार वाले शिगूफे की मिट्टी पलीद

फिर आया वो मोड़ जिन शब्दों की अपेक्षा अमेरिका कभी नहीं कर रहा था, जिसमें अमेरिका के ही मानवधिकार वाले शिगूफे की मिट्टी पलीत कर दी। एस जयशंकर ने कहा कि, “मैं आपको बताऊंगा कि हम संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अन्य लोगों के मानवाधिकारों की स्थिति पर भी अपने विचार रखते हैं। इसलिए, हम इस देश में मानवाधिकार के मुद्दों को उठाते हैं, खासकर जब वे हमारे समुदाय और मूल से संबंधित होते हैं। और वास्तव में, कल हमारे पास एक मामला था … और वास्तव में हम उस पर खड़े हैं।“ यह मामला था अमेरिका के न्यूयॉर्क के रिचमंड हिल्स इलाके में एक कथित घृणा अपराध की घटना में मंगलवार को दो सिख लोगों पर हमला करने का एक स्पष्ट संदर्भ था। दो लोग जो सुबह की सैर पर निकले थे उनपर कथित तौर पर उसी स्थान पर हमला किया गया था जहां लगभग 10 दिन पहले समुदाय के एक सदस्य पर हमला किया गया था।”

बस फिर क्या था, एस जयशंकर के इन शब्दों के बाण को भारत में मानवाधिकारों पर अमेरिकी विदेश मंत्री की टिप्पणियों को रूस के यूक्रेन आक्रमण पर भारत के रुख पर चर्चा के बीच नई दिल्ली के वाशिंगटन द्वारा एक दुर्लभ प्रत्यक्ष फटकार के रूप में देखा गया था।

रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले पर एक सवाल के जवाब में भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, “मैंने देखा कि आपने तेल खरीद का उल्लेख किया है। यदि आप रूस से ऊर्जा खरीद पर विचार कर रहे हैं, तो मेरा सुझाव है कि आपका ध्यान यूरोप पर केंद्रित होना चाहिए। एस जयशंकर ने बताया, “हम कुछ ऊर्जा खरीदते हैं, जो हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी है। लेकिन मुझे संदेह है, आंकड़ों को देखते हुए, महीने के लिए हमारी कुल खरीदारी यूरोप की दोपहर की तुलना में कम होगी। तो, आप इसके बारे में सोचना चाहेंगे।”

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अमेरिका को उसी के षड्यंत्र में दबोच लिया

मतलब चाहे तेल हो, या हो भारत का रूस-यूक्रेन पर तटस्थ रुख या फिर मानवाधिकार का मामला, विषय से भटकाव के बावजूद भारत ने उन सभी विषयों पर जवाब देने के साथ ही अमेरिका को उसी के षड्यंत्र में दबोच लिया। दबाव बनाने आए अमेरिका को भारत ने दर्पण ही दिखा दिया कि आतंकवाद पर चुप देश, मानवाधिकार पर ज्ञान न ही दे तो अच्छा है। “न खाता न बही, जो अमेरिकी कहें वही सही” अमेरिका को उसकी इस सोच से अब हाथ धो लेना चाहिए क्योंकि उसकी अब इतनी बिसात भी नहीं रही कि वो भारत के साथ के बिना दो देशों के विवाद को शांत करा पाए, और बनने चले हैं सर्वशक्तिशाली देश।

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