Dear Kareena, सैफ के हर दशक में पिता बनने की चाहत से आपको खुश नहीं बल्कि दुःखी होना चाहिए

जनसंख्या नियंत्रण के प्रति गंभीर नहीं बॉलीवुड

परिवार नियोजन

स्रोत - गूगल

भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या एक बड़ी समस्या है। वर्तमान समय में  भारत में दुनिया की लगभग 16 प्रतिशत आबादी रहती है, और भारत के पास विश्व की कुल जमीन का  केवल 2.45 प्रतिशत हिस्सा है तथा भारत के पास कुल वैश्विक जल संसाधन का केवल 4 प्रतिशत हिस्सा है। जनसंख्या पर बहस भारत जैसे देश में अपरिहार्य है, क्योंकि भारत आने वाले समय में जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकल जाएगा और दुनिया में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र बन जाएगा |  संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग के अनुमान के मुताबिक, भारत की आबादी 2030 तक 1.5 अरब तक पहुंच जाएगी और 2050 में 1.64 अरब हो जाएगी। चीन की आबादी 2030 तक 1.46 अरब तक पहुंच जाएगी। हमारे देश में इस समस्या को नजरअंदाज किया जा रहा है। कम से कम सरकारी तौर पर तो यह कहा जा सकता है। कि जो लोग शिक्षित हैं, वह कम बच्चे पैदा कर रहे हैं। हालांकि शिक्षा और नियंत्रित आबादी का खेल सबके लिए एक समान नहीं है। जहां एक ओर भारत का आम पढ़ा लिखा जनमानस, परिवार नियोजन के प्रति सजग हो रहा है तो दूसरी ओर सैफ अली खान और करीना कपूर जैसे लोग भी हैं, जो लगातार इस चीज की धज्जियां उड़ा रहे हैं।

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जनसंख्या नियंत्रण कोई मज़ाक नहीं 

हाल ही में वोग के साथ एक साक्षात्कार में, करीना ने कहा – सैफ को हर दशक में एक बच्चा हुआ है – दूसरे, तीसरे,चौथे और अब अपने पाँचवें दशक में भी वे पिता बने हैं, मैंने उनसे कहा है, कि आपके साठ के दशक में ऐसा नहीं होने वाला है। तैमूर की एक तस्वीर को ट्रेंड कराने वाली जनता  एक बार के लिए इसे मजाक में उड़ा सकती है, लेकिन मजाक में बोली गई यह बात बहुत ही गैर जिम्मेदाराना है। सैफ अली खान और करीना कपूर भारत के प्रबुद्धजनों में से एक हैं, जिनको एलीट क्लास कहा जाता है। आबादी का यह वह हिस्सा है, जिसका समाज के ऊपर प्रभाव रहता है, उनके ऊपर समाज के सामने एक मानक तय करने की भी जिम्मेदारी होती है। शायद यही कारण है, कि भारत के कई बड़े लोग चाहे वो व्यवसाय क्षेत्र से हो, राजनीति से हो या फिर खेल कूद से हो, वह सामाजिक जीवन में काफी सतर्क होकर काम करते हैं। बॉलीवुड में कुछ लोगों को छोड़कर, बाकी सब प्रबुद्धजन कहलाते हैं, लेकिन कोई भी समझदारीपूर्ण कार्य इनके द्वारा किये नहीं जाते हैं।आप आबादी और परिवार नियोजन वाली बात को ले लीजिए। जब परिवार नियोजन की बात आती है तो बॉलीवुड हस्तियां भयानक उदाहरण हैं। सैफ अली खान के 4 बच्चे हैं, शाहरुख खान के 3 बच्चे हैं, आमिर खान के 3 बच्चे हैं, अनिल कपूर के 3 बच्चे हैं, बोनी कपूर के 4 बच्चे हैं। वास्तव में इतने सारे बच्चे पैदा करने के लिए उन्हें या तो अज्ञानी या अभिमानी होना चाहिए। यहां पर एक तर्क यह दिया जा सकता है कि उनके पास पैसा है, और वह बच्चे का ख्याल रख सकते हैं, तो बच्चा पैदा करने में क्या समस्या है? बात यहां पैसे की नहीं है, भारत में फिर भी जापान, चीन और अमेरिका से कम पैसा है। समस्या है कि यह जनसंख्या वृद्धि को रोकने वाले प्रयास पर किस तरह से चोट करता है।आज भारत में जब कुल प्रजनन दर 2000 में प्रति महिला 3 जन्म से घटकर अब लगभग 2 जन्म प्रति महिला हो गई है, तब सैफ अली खान 2 विवाह से 4 बच्चों की ओर बढ़ रहे हैं। यह भारत के प्रयासों पर भी चोट है।

 

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भारत का जनसंख्या नियंत्रण प्रोग्राम 

परिवार नियोजन के माध्यम से जनसंख्या नियंत्रण की कहानी भारत में एक जिज्ञासु मामला है, जिसे 1951 में आधिकारिक तौर पर परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू करने वाले विकासशील देशों में पहला होने का गौरव प्राप्त है। यह तब हुआ था, जब पहली लोकसभा का गठन भी नहीं हुआ था। 1970 के दशक में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान, दो-बच्चों नीति को एक आक्रामक बल मिला। यह वह दशक था, जब चीन अपनी दो-बच्चों की नीति से एक-बच्चे की नीति में स्थानांतरित हो गया था।भारत में सरकारी एजेंसियों में ऐसा जोश था कि उन्होंने जबरन नसबंदी का सहारा लिया। इसका उलटा असर तब हुआ जब आपातकाल हटा और देश में अभूतपूर्व जनसंख्या विस्फोट हुआ। फिर 1980 के दशक के दौरान “हम दो हमारे दो” जैसे जन अभियान लोकप्रिय हुए। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को अपनाया गया। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 में 2045 तक जनसंख्या को स्थिर करने के दीर्घकालिक उद्देश्य के साथ आयी थी।

हालांकि, परिवार नियोजन के माध्यम से जनसंख्या नियंत्रण के प्रति सरकार के समग्र दृष्टिकोण में एक विपरीतता है। जबकि परिवार के आकार को सीमित करने पर जोर दिया गया है – जिसके परिणामस्वरूप सफलता के साथ-साथ कुल प्रजनन दर 2000 में प्रति महिला 3 जन्म से घटकर अब लगभग 2 जन्म प्रति महिला हो गई है | भारत, जनसंख्या पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 1994 का एक हस्ताक्षरकर्ता बन गया है। इसका मतलब है, कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक प्रतिबद्धता की है, कि वह जनता के व्यक्तिगत अधिकार का सम्मान करेगा, कि वे कितने बच्चे पैदा करना चाहते हैं, और उनके बच्चों के जन्म के बीच अंतर कितना होगा।

यह समझा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए कोई केंद्रीय विधेयक क्यों नहीं लाया। हालाँकि, 16वीं लोकसभा में प्रह्लाद सिंह पटेल द्वारा एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया गया था, जो अब नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं। जनसंख्या नियंत्रण विधेयक 2016 तब तक मतदान के चरण में नहीं आया जब तक कि इसे 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भंग नहीं कर दिया गया।

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जनसंख्या नियंत्रण के लिए राज्यों के प्रयास 

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 1994 का पंचायती राज अधिनियम लाया गया जो दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करता है। महाराष्ट्र में दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को ग्राम पंचायत और नगरपालिका चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। साथ ही 2005 के महाराष्ट्र सिविल सेवा नियम, दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को राज्य सरकार में किसी पद पर रहने से अयोग्य घोषित करता हैं। महाराष्ट्र में दो से अधिक बच्चे होने पर महिलाओं को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभों की अनुमति नहीं है।

राजस्थान दो से अधिक बच्चों वाले उम्मीदवारों को सरकारी नौकरी के लिए अपात्र घोषित करने में असम की तरह है। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 एक व्यक्ति को एक छूट के साथ पंचायत चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करता है, यदि दो बच्चों में से एक विकलांग बच्चा है। गुजरात में स्थानीय प्राधिकरण अधिनियम में 2005 में संशोधन किया गया था – तब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे | और पंचायतों, नगर पालिकाओं,और नगर निगमों के चुनाव लड़ने से दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी व्यक्ति को अयोग्य घोषित किया गया।

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जनसंख्या को लेकर हो रहे विभिन्न शोध 

सामाजिक वैज्ञानिक लंबे समय से जन्म अंतराल के प्रभावों में रुचि रखते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रेडेम्स के शोध में यह पाया गया कि परिवार का आकार और जन्म क्रम घर के बौद्धिक वातावरण को प्रभावित करता है। शोध परिणाम का मानना है कि जन्म क्रम के प्रभाव “पूरी तरह से उम्र के अंतर से मध्यस्थता करते हैं। बड़े बच्चों वाले परिवारों में पैदा हुए बच्चों का जन्म अधिक अनुकूल बौद्धिक वातावरण में होता है।चिकित्सा साहित्य में संक्षिप्त (आमतौर पर कम ) और लंबे (5 वर्ष से अधिक) अंतर-गर्भावस्था अंतराल पर तमाम परिणाम है| इसमें शिशु मृत्यु दर, मृत जन्म, समय से पहले प्रसव और जन्म के समय कम वजन शामिल हैं। शोध में यह भी पाया गया है कि जो महिलाएं दूसरे बच्चे को जन्म देने में देरी करती हैं, दूसरे महिलाओं की तुलना में उनकी श्रम शक्ति की भागीदारी कम हो जाती है।

 

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