मिलिए भारत के असली फासीवादियों से, जिन्होंने लोकतंत्र के विध्वंस का बेड़ा उठाया है!

'तानाशाही' में हिटलर को भी मात देने में लगे हैं नेता!

तानाशाही

Source- TFI

चाहे भारतीय मीडिया हो या फिर वैश्विक मीडिया द्वारा नरेंद्र मोदी को तानाशाह कहने की परंपरा लगभग 25 वर्ष पहले से चली आ रही है। पहले वो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रचारक थे, इसलिए उन्हें तानाशाह कहा गया। देश की सत्ता संभालने के बाद जब वह राष्ट्रहित की बातें करने लगे तो वो बड़े तानाशाह हो गये। गुजरात दंगे, राम मंदिर, अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण ने उन्हें सबसे बड़े तानाशाह के साथ-साथ राजनीतिक रूप से अछूत भी बना दिया। मोदी भाजपा को प्रखर राष्ट्रवाद की ओर ले गए। उनके इस प्रकार राष्ट्रवाद और विकास के मॉडल को सभी भाजपा शासित राज्यों ने अपनाया और इसी आधार पर विजय पाया। जनता के इस अपार समर्थन और विकास के इस अद्वितीय मॉडल से दुखी वामपंथी, लिबरल और छद्म बुद्धिजीवियों ने भाजपा शासित सभी राज्यों को तानाशाही व्यवस्था के रूप में घोषित करने का काम किया।

भाजपा शासित राज्यों में कानून और विधि व्यवस्था को बनाए रखने के लिए की गई प्रशासनिक कार्रवाईयों को सांप्रदायिक रंग दिया गया। सर्वधर्म समानता के हथियार से जब भाजपा ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को काटा तो इसे इस्लाम विरोधी बताया गया। हिजाब, बुलडोजर और लाउडस्पीकर सभी को मुद्दा बनाया गया। पर, आज हम आपको बिल्कुल निष्पक्ष और संतुलित विश्लेषण करते हुए समझाएंगे कि असली तानाशाही भाजपा शासित राज्यों में नहीं, बल्कि गैर भाजपा शासित राज्यों में है। इन राज्यों की स्थिति और यहां के शासकों के तानाशाही रवैये से आपका अवगत होना महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी यह तानाशाही राजनीतिक हत्याओं और लोकतंत्र के विध्वंस तक पहुंच चुकी है।

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महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के उद्धव सरकार ने अपने पुराने मित्र और गठबंधन सहयोगी के खिलाफ जो तानाशाही रवैया दिखाया है, वह अचंभित और आश्चर्यचकित करने वाला है। शायद किसी भी राजनीतिक पंडित ने उद्धव सरकार से ऐसी क्रूरता की अपेक्षा नहीं की थी। सत्ता की सनक और पद की हनक में शासकों को जनता पर सख्त रवैया अपनाते हुए भारतीय राजनीति में बहुत बार देखा गया है, लेकिन कोई सरकार अपने पूर्व सहयोगी के जनप्रतिनिधियों पर इतनी बर्बरता और दुराग्रह पूर्ण कार्रवाई करे, इसका उदाहरण विरले ही देखने को मिला है। महाराष्ट्र में उद्धव की तानाशाही गुंडाशाही में परिवर्तित हो चुकी है! अगर कोई भी साधारण व्यक्ति अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए उद्धव सरकार की आलोचना करता है, तो उसे शिवसेना के गुंडों द्वारा बर्बरतापूर्वक पीटा जाता है। इस पिटाई में वह किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते चाहे कोई आम नागरिक हो या फिर नौसेना में काम कर चुका अधिकारी। शिवसेना के गुंडों का आतंक इतना बढ़ चुका है कि लोगों ने अपने विरोध और आलोचना करने के संवैधानिक अधिकार को ही त्याग दिया है।

अभी हाल ही में शिवसेना के गुंडों ने भाजपा के जनप्रतिनिधि किरीट सोमैया पर जानलेवा हमला किया। उनकी गाड़ी को घेर लिया गया और कार के शीशे तोड़कर उन्हें घायल कर दिया गया। इसी तरह के एक अन्य मामले में शिवसेना सुप्रीमो के निवास स्थान मातोश्री के पास हनुमान चालीसा पढ़ने की बात करने पर राणा दंपति को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। इसी तरह का एक और वाकया भाजपा के एक अन्य जनप्रतिनिधि के साथ भी देखने को मिला, जब लाल बत्ती के पास रूकी उनकी गाड़ी को शिवसैनिकों ने घेर कर क्षतिग्रस्त कर दिया और उन्हें जान से मारने का प्रयास किया। कहते हैं राजनीति में दिल मिले न मिले, लेकिन हाथ जरूर मिलते रहना चाहिए। यह राजनीति में मर्यादा की महत्ता को प्रतिबिंबित करती है, परंतु पहली बार गैर-भाजपा शासित राज्यों ने तानाशाही का ऐसा उदाहरण पेश किया है जिसमें बर्बरता और क्रूरता की जांच स्वयं उनके साथ सदन में बैठने वाले जनप्रतिनिधियों तक पहुंच चुकी है।

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पश्चिम बंगाल

भारतीय राजनीति में अगर कोई नेता निकृष्टता के नित नए आयाम स्थापित कर रहा है तो वो हैं- ममता बनर्जी! शायद, यह बात आपको सुनने में अटपटी लगे, परंतु भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर अगर कोई सबसे बड़ा खतरा है तो वो हैं- ममता बनर्जी! उनका बर्ताव करने का तरीका किसी राज्य के मुख्यमंत्री जैसा नहीं, बल्कि एक भावी देश के राष्ट्रध्यक्षा के समान है। बंगाल में होने वाली राजनीतिक हिंसा की कहानियां किसी से छिपी नहीं है। पंचायत चुनाव के दौरान राजनीतिक हिंसा का ऐसा चक्र चला कि लोकतंत्र का चीरहरण कर कई स्थानों पर टीएमसी को निर्विवाद रूप से विजेता घोषित कर दिया गया। इसी तरह की राजनीतिक हिंसा बंगाल चुनाव के समय भी दिखी। तृणमूल ने पहले जनता को डरा-धमका कर अपने पक्ष में मतदान करने के लिए हिंसा का सहारा लिया। चुनाव के दौरान भी उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा बलों पर हमले करवाए और चुनाव पश्चात जिन हिंदुओं ने तृणमूल को मत नहीं किया था, उन्हें दंडित किया गया।

हिंसा का ऐसा नंगा नाच चला कि अपने ही देशों में हिंदुओं को पलायन कर असम में शरण लेनी पड़ी। न्यायालय को भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सीबीआई जांच के निर्देश देने पड़े। बंगाल चुनाव के दौरान तृणमूल ने अपने उन्मादी सनक में अपने साथी जनप्रतिनिधियों पर भी हमले करवाए, जिसमें कैलाश विजयवर्गीय और तेजस्वी सूर्या आदि महत्वपूर्ण हैं। अभी हाल ही में हुए आसनसोल उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी अग्निमित्र पौल पर भी जानलेवा हमला करने की कोशिश की गई। क्षेत्रफल और आबादी दोनों की दृष्टि से उत्तर प्रदेश बंगाल से बहुत बड़ा और राजनीतिक रूप से एक विविध राज्य है, परंतु फिर भी वहां योगी की सरकार होने के बावजूद भी सारे चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुए। लेकिन, उदारवादी ममता के राज्य में आए दिन राजनीतिक हत्याओं की घटनाएं आम हो चुकी है। मीडिया उत्तर प्रदेश में हुई घटनाओं का मुद्दा तो बना देगा, लेकिन बंगाल में होने वाली बड़ी से बड़ी विभीषिका पर भी मौन साध लेगा।

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केरल

कहते हैं साम्यवादी सत्ता की नींव ही लोकतंत्र के कब्र पर रखी जाती है और केरल के वामपंथी शासन में रोज ही लोकतंत्र की कब्र खुदती रहती है। यहां वामपंथ और कट्टर इस्लाम यह ऐसा गठजोड़ है जो आए दिन भगवा राजनीति के संवाहकों को मौत के घाट उतारता रहता है और तथाकथित बुद्धिजीवी तथा छद्म उदारवादी उन्हें ढकने का काम करते हैं। केरल की विजयन सरकार और पीएफआई के गठजोड़ ने देश में सबसे ज्यादा राजनीतिक हत्याएं की है। अभी हाल ही में हुए RSS कार्यकर्ता की मौत में पलक्कड़ के एक इमाम का हाथ बताया जा रहा है। केरल देश में होने वाले सबसे ज्यादा राजनीतिक हत्याओं का केंद्र बन चुका है। एक स्वतंत्र सर्वेक्षण के अनुमान के मुताबिक 1 साल में केरल में करीब 200-250 भाजपा और संघ के कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं।

केरल में होने वाले राजनीतिक हत्याओं का आलम यह है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों से जुड़ने वाले हर युवा और कार्यकर्ता को इसलिए मार दिया जाता है ताकि यह संगठन इस राज्य में पनप ही न पाए। भारत की राजनीति के लिए यह परिपाटी अत्यंत ही घातक सिद्ध हो सकती है। यह लोकतंत्र के लिए आने वाले समय में जानलेवा सिद्ध होगी और सबसे बड़ी विभीषिका तो मीडिया का मौन और आम जनता की अज्ञानता है। मीडिया इस बात को उठाती नहीं है और आम जनता इससे परिचित नहीं हो पाती। रही सही कसर तथाकथित उदारवादी बुद्धिजीवी और वामपंथी मिलकर पूरी कर देते हैं और पूरे देश में सिर्फ एक ही नैरेटिव फैलाया जाता है कि ‘भाजपा एक तानाशाह पार्टी है।’

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