जब राम ने सोने की लंका जीत ली तब विभीषण ने कहा- “प्रभु, यहीं बस जाओ।“ प्रतिउत्तर में राम ने कहा- “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादापि गरीयसी अर्थात् माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी उत्तम हैं।“ जहां आपने जन्म लिया, जहां की माटी में आप खेले, जहां आप पले और बढ़े, अपने लोग, अपना गांव-घर आदि को छोड़ना निस्संदेह ही दुखदायी होता है। घर के लड़के का पेट पालने के लिए शहर चले जाना शायद पूंजीवादी व्यवस्था की सबसे भयावह घटना है। यह प्रवृति परिवार के सुख, गांव की उन्नति और राष्ट्र के विकास तीनों को प्रभावित करता है। परिवार व्यथित होता है क्योंकि पुत्र पलायन कर चुका होता है।
गांव सूना होता है क्योंकि वहां के युवाओं ने पेट के लिए गांव की उन्नति को त्याग दिया है और स्वयं सोचिए अगर गांव आगे नहीं बढ़ेगा, तो क्या भारत प्रभावित नहीं होगा? गांवो का पलायन शहर पर भार बढ़ाता है और वहां के विकास मानदंडों को भी अवरुद्ध कर देता है। पर, पेट और परिवार सर्वोच्च है। अतः गांवों की स्थिति को यथास्थिति रखते हुए जीविकोपार्जन हेतु पलायन आवश्यक है। शहर में पलायन का अवसर और जीविकोपार्जन का उपाय मिलना सौभाग्य की बात मानी जाने लगी, लेकिन अगर आप अपने निजी स्वार्थों और आवश्यकताओं को कुछ क्षण के लिए भुला कर देश के नागरिक के तौर पर सोंचे तो यह आपको भयावह लगेगा। ऐसे राष्ट्रभक्त नागरिकों के लिए एक अच्छी खबर है।
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जब महामारी की मार पड़ी, तो कई प्रवासी श्रमिक अपने गृहनगर लौट आए और अपनी शहरी प्राथमिकताओं और आदतों को अपने साथ घर ले आए। भारत में मजबूत ई-कॉमर्स नेटवर्क के निर्माण से स्वस्थ भोजन विकल्पों की मांग बढ़ी। महामारी के कारण उपभोक्ताओं ने स्वस्थ खाने की आदतों को अपनाया है। डाबर इंडिया के मार्केटिंग हेड मयंक कुमार ने बताया कि “जब लोग बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों से गांवों में चले गए, तो उन्होंने स्वस्थ खाद्य पदार्थों का सेवन करने की आदत डाली। हालांकि, इन जगहों के लोगों को इन आदतों को अपनाने में जिस चीज ने मदद की है, वह है ई-कॉमर्स की पहुंच जिससे इस आदत को बनाए रखने में मदद मिली।”
हाल की एक रिपोर्ट में मार्केट डेटा प्रदाता यूरो मॉनिटर इंटरनेशनल के वरिष्ठ शोध प्रबंधक इना डावर ने कहा, “भारतीय शहर पैकेज्ड फूड ब्रांड मालिकों के लिए नए डिमांड हॉटस्पॉट हैं। स्व-देखभाल में बढ़ती रुचि और घर में खाना पकाने में वृद्धि ने भोजन पर महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है, जबकि उपभोक्ताओं के टियर-2 और टियर-3 शहरों में रिवर्स माइग्रेशन ने छोटे शहरों और कस्बों में खाद्य प्रवृत्तियों को प्रभावित और शहरीकृत किया है। इसलिए कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए अपने उत्पाद और चैनल रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन और सुधार करना आवश्यक हो गया है।”
गौरतलब है कि हम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच आकांक्षाओं, व्यवहार, प्रथाओं, उत्पाद, श्रेणियों आदि के संदर्भ में पर्यावरण के अधिक सम्मिश्रण को देख रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में पिछले साल कोविड के कारण रिवर्स माइग्रेशन के साथ विकास में तेजी देखी गई, जिसमें ये उपभोक्ता अपने शहरी उपभोग की आदतों को ग्रामीण क्षेत्रों में ले गए, जिससे व्यवहार का और सम्मिश्रण हुआ। इस प्रकार का बदलाव सुखदाई हैं। धन्य हैं वे लोग जो पुनः गांवों की ओर लौट रहें हैं वो भी शहर के सौन्दर्य को छानकर जिससे गांव उन्नति के पथ पर आगे बढ़ेंगे।
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