हिन्द महासागर सामरिक दृष्टि से भारत के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से है। इसकी महत्ता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं की पूरे विश्व का 80 प्रतिशत तेल व्यापार इस क्षेत्र से होकर गुजरता है और भारत के लिए इसकी रणनीतिक अहमियत कितनी है इसी बात से प्रतिबिम्बित होती है कि यह दुनिया का एकमात्र महासागर है जिसका नामकरण एक देश के नाम पर हुआ है। अगर आप भौगोलिक दृष्टि से भी अवलोकन करें तो पाएंगे की भारत का एक वृहद भूभाग हिन्द महासागर से लगता है। इस क्षेत्र में भारत और उसकी नौसेना का दबदबा है।
चीन ने पाकिस्तान के साथ मिलकर चली चाल
इसी दबदबे को कम करने के लिए चीन ने ‘string of pearls’ नामक रणनीति की शुरुआत की जिसमें हिन्द महासागर के देशों के साथ संबंध स्थापित करना था। इस क्षेत्र में दबदबे के डर से ही चीन ने पाकिस्तान के साथ ग्वादर और CPEC परियोजना की शुरुआत की। यह नाना प्रकार के खनिजों, तेल, गैस, समुद्री जीवों और रत्नों से पटा पड़ा है। अतः इस क्षेत्र में दबदबा भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी उद्देश्य हेतु परियोजना 75 और परियोजना 75(I) का शुभारंभ किया गया।
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अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक कहावत प्रचलित है:- “राष्ट्र एक-दूसरे को उनकी क्षमताओं से आंकते हैं न कि उनके इरादों से क्योंकि इरादे रातोंरात बदल सकते हैं।“ इसी को ब्रह्मवाक्य मानते हुए भारत ने इस परियोजना की शुरुआत की जिसके तहत पूरे हिन्द महासागर को भारतीय पंडुब्बियों से आच्छादित कर देने का संकल्प था। वर्तमान में भारत के पास 15 पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं, जिन्हें एसएसके के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारत के पास एक परमाणु बैलिस्टिक पनडुब्बी भी है जिसे एसएसबीएन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
1999 में हिन्द महासागर और भारत की सुरक्षा हेतु कैबिनेट समिति द्वारा स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण के लिए 30-वर्षीय योजना (2000-30) अनुमोदित की गयी जिसमें एक विदेशी मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) के सहयोग से भारत में निर्मित छह पनडुब्बियों की दो उत्पादन लाइनों की परिकल्पना की गई थी। इन्हीं परियोजनाओं को P-75 और P-75I कहा जाता था।
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भारत को 2012-15 तक 12 नई पनडुब्बियां मिल जाएंगी
इस 30 वर्षीय योजना में अनुमान लगाया गया था कि भारत को 2012-15 तक 12 नई पनडुब्बियां मिल जाएंगी। इसके बाद, भारत 2030 तक अपने 12 बेड़े बना लेगा, जिससे बेड़े का आकार 24 हो जाएगा और पुरानी पनडुब्बियों को भी सेवामुक्त कर दिया जाएगा। इसके लिए फ्रांस के DCNS के साथ नौसेना ने अनुबंध किया। इसके तहत इस साल के अंत में स्कॉर्पीन डिजाइन की छठी कलवरी श्रेणी की नाव नौसेना को सौंपने के साथ ही प्रोजेक्ट 75 का पहला हिस्सा पूर्ण हुआ। आईएनएस वाग्शीर को बुधवार को यहां प्रोजेक्ट -75 के तहत लॉन्च किया गया और कमीशन प्राप्त करने से पहले कठोर परीक्षणों की श्रृंखला से गुज़रा। प्रोजेक्ट-75 के तहत निर्मित छठी और आखिरी पनडुब्बी आईएनएस वाग्शीर को रक्षा सचिव अजय कुमार ने लॉन्च किया।
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प्रोजेक्ट -75 के तहत निर्मित चार पनडुब्बियां – आईएनएस कलवरी, आईएनएस खंडेरी और आईएनएस करंग और आईएनएस वेला – पहले ही भारतीय नौसेना में शामिल हो चुकी हैं। श्रृंखला की पांचवीं पनडुब्बी, आईएनएस वागीर के इसी वर्ष चालू होने की संभावना है। परियोजना को फ्रांसीसी तकनीकी सहायता से क्रियान्वित किया जा रहा है।
परियोजना 75(I) 30 वर्षीय पनडुब्बी निर्माण योजना के चरण I का दूसरा भाग है, जिसे जुलाई 1999 में CCS द्वारा ही अनुमोदित किया गया था, जिसे 2000-15 की अवधि में निष्पादित किया जाना था। इसके तहत, अमूर 1650 (रूस) वर्ग की छह पनडुब्बियों को नौसेना को सौंपना था। इस चरण में 12 पनडुब्बियों को पूरी तरह से स्वदेशी डिजाइन से बनाया जाना था।
परंतु, यह तो तय है की आनेवाले समय में भारत हिन्द महासागर में पंडुब्बियों का एक ऐसा चक्रव्युह रचने जा रहा है जो सुरक्षा की दृष्टि से भारत को अभेद्य तो बनाएगा ही ऊपर से इसके व्यापारिक और आर्थिक हितों के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।