किसी भी नीति को बदलने का मूल उद्देश्य होता है कि पूर्व में उसके क्रियान्वन के दौरान पाई गई कमियों और रिक्तताओं को कैसे भी भरा जा सके। इसी बीच इन दिनों एक नीति बहुत प्रचारित हो रही है कि पुरानी पेंशन योजना वापस अमल में लाई जाए जबकि एक धड़ा इस पक्ष में है कि नई नीति को जस का तस ही रखा जाए। कुछ एक राज्य इस बात पर सहमति बना यह घोषणा कर चुके हैं कि वो केंद्र के नहीं अपने अनुरूप अपने राज्यों में उसी पुरानी पेंशन योजना को बहाल करेंगे जिसकी मांग एक पक्ष कर रहा है।
जनता पिसा हुआ महसूस कर रही है
ऐसे में यह योजना निश्चित रूप से अधर में लटक रही है और वास्तव में जिस आम जन को इसका सीधा लाभ मिलता है वो भी उलझन और अस्पष्टता में घिरे हुए हैं। सरकारों में तो इसलिए टकराव है क्योंकि वो एक दूसरे के राजनीतिक और वैचारिक प्रतिद्वंद्वी हैं पर इस रस्साकस्सी में जनता पिसा हुआ महसूस कर रही है।
दरअसल, वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के दौरान पुरानी पेंशन योजना को समाप्त कर दिया गया था क्योंकि पेंशन देनदारियां केंद्र और राज्य सरकारों के वित्तीय स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही थीं। 2004 में, निवेश और रिटर्न-आधारित नई पेंशन योजना (एनपीएस) शुरू की गई थी, यह योजना 1 अप्रैल 2004 से लागू है। एनपीएस की शुरुआत पर केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 में संशोधन किया गया था जबकि इस मुद्दे को अतीत में कई विरोधों को देखा गया है, हाल ही में राजस्थान के सीएम द्वारा ओपीएस की बहाली की घोषणा के बाद यह मुद्दा गर्म हो गया है।
दरअसल, यह एक सहभागी योजना है, जहां कर्मचारी अपने वेतन से अपने पेंशन कोष में सरकार के बराबर अंशदान के साथ करते हैं। इसके बाद निधियों को पेंशन निधि प्रबंधकों के माध्यम से निर्धारित निवेश योजनाओं में निवेश किया जाता है। सेवानिवृत्ति के समय वे कुल राशि का 60% निकाल सकते हैं जो कर-मुक्त है और शेष 40% वार्षिकी में निवेश किया जाता है, जिस पर कर लगता है।
इसके दो घटक हो सकते हैं – टियर I और II, टियर- II एक स्वैच्छिक बचत खाता है जो निकासी के मामले में अधिक लचीलापन प्रदान करता है और दूसरा इसके बिलकुल उलट जिसमें कोई भी किसी भी समय पैसे की निकासी कर सकता है। यहां तक कि निजी व्यक्ति भी इस योजना का विकल्प चुन सकते हैं।
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‘सरकार पर अनावश्यक वित्तीय बोझ पड़ेगा’
हाल ही में संपन्न उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस प्रक्रिया में कई सरकारी शिक्षकों और कर्मचारियों का समर्थन प्राप्त करते हुए, इसी Old Pension Scheme की बहाली की घोषणा की थी। तो वहीं, भाजपा ने कहा था कि पुरानी व्यवस्था को बहाल करने से सरकार पर अनावश्यक वित्तीय बोझ पड़ेगा।
पिछले सप्ताह में, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए थे। देश भर में ट्रेड यूनियनों ने 28 और 29 मार्च को दो दिवसीय हड़ताल का आयोजन किया और पुरानी पेंशन योजना को खत्म करने की मांग की। वित्त मंत्रालय ने पहले केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों के एक महासंघ के प्रस्तावों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि “परिवर्तन आर्थिक रूप से अस्थिर होंगे।”
पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) एनपीएस का नियामक है। पीएफआरडीए की स्थापना 2013 में पीएफआरडीए अधिनियम के माध्यम से की गई थी ताकि पेंशन फंड की योजनाओं के ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए पेंशन फंड विकसित करके वृद्धावस्था आय सुरक्षा को बढ़ावा दिया जा सके।
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पुरानी पेंशन योजना और नई पेंशन योजना के बीच मुख्य अंतर
पुरानी पेंशन योजना और नई पेंशन योजना के बीच मुख्य अंतर यह है कि एनपीएस कर्मचारियों के योगदान को उनके करियर की अवधि में बाजार की प्रतिभूतियों जैसे इक्विटी में निवेश करता है। “इस प्रकार एनपीएस रिटर्न के किसी भी आश्वासन के बिना बाजार से जुड़े रिटर्न उत्पन्न करता है, जो ओपीएस कर्मचारी द्वारा प्राप्त अंतिम वेतन पर मासिक पेंशन के आधार पर प्रदान करता है।
एनपीएस सेवानिवृत्ति पर एक पेंशन फंड प्रदान करता है जो कि 60 प्रतिशत कर-मुक्त है जबकि शेष को वार्षिकी में निवेश करने की आवश्यकता है जो पूरी तरह से कर योग्य है। ओपीएस से होने वाली आय पर कर नहीं लगता है। अंत में, ओपीएस को सरकारों को अपनी वित्तीय प्राथमिकताओं पर फिर से विचार करने की आवश्यकता हो सकती है, जबकि एनपीएस का उद्देश्य उस आवश्यकता को कम करना था ओपीएस के तहत मासिक भुगतान होता है, जो अंतिम आहरित वेतन के पचास प्रतिशत के बराबर होता है।
जहां कांग्रेस की मात्र दो सरकारें हैं जहां उनका मुख्यमंत्री है तो वो उन राज्यों में इस पुरानी नीति को बहाल करने के लिए अपने अपने स्तर पर घोषणाएं और उनका क्रियान्वन करना शुरू कर चुके हैं। दूसरी तरफ केंद्र और भाजपा की राज्य सरकारों के यह तथ्य हैं कि आवश्यक बदलाव करने पर बल दिया जाएगा पर सरकार वित्तीय बोझ बढ़ाने के बिलकुल भी पक्षधर नहीं है।
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान वृद्ध लोगों के रूप में PAYG योजना हमेशा राजनीतिक दलों के लिए एक आकर्षक व्यवस्था थी, भले ही उन्होंने पेंशन किटी में योगदान न दिया हो। हालांकि, यह योजना राज्य के वित्त के लिए टिकाऊ नहीं है और हमेशा राजकोषीय बोझ रही है। सवाल जस का तस बना हुआ है कि इतनी मांगों के सरकार कैसे उन प्रदर्शकारियों की जायज मांगों को निस्तारण के रास्ते पहुंचा पायेगी।