भारतीय चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जो भारत में संविधान के तहत चुनावों का आयोजन और नीति निर्धारण करती है। इसके प्रावधान अनुच्छेद-324 के अंतर्गत निर्दिष्ट है। यह भारत की एक प्रतिष्ठित, स्वायत्त और संवैधानिक संस्था है जो विश्व के सबसे बड़े चुनावी और लोकतान्त्रिक महापर्व को संचालित करती है और सिर्फ संचालित ही नहीं इस लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को नियंत्रित और रक्षित भी करती है। चुनाव आयोग ही सुनिश्चित करता है कि चुनाव लड़ना और प्रतिनिधि चुनने का आपका संवैधानिक आधार बना रहे। आम जन तक इसकी पहुंच बनी रहे। धन और बाहुबल का प्रयोग न रहे। चुनाव निष्पक्ष और नियंत्रित रहे। दलों के गिरते सिद्धान्त को सुरक्षित रखे तथा लोकतन्त्र लोगों की ताकत बने न कि धन और बाहुबल।
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दुनिया के सबसे शक्तिशाली निकायों में से एक है ECI
भारत का चुनाव आयोग (ECI) दुनिया में सबसे शक्तिशाली चुनावी नियामक निकायों में से एक है और भारत के सबसे विश्वसनीय संस्थानों में से एक है। चुनाव आयोग ने स्वतंत्रता के बाद से 17 राष्ट्रीय और 370 से अधिक राज्यों के चुनावों को पूरा किया है। यह दुनिया के कुछ सबसे बड़े और सबसे लंबे चुनावों का भी संचालन करता है। उदाहरण के लिए, इसने 2019 के संसदीय चुनावों में 900 मिलियन योग्य मतदाताओं के साथ पूरे भारत का चुनाव रिकॉर्ड 39 दिनों और 9 चरणों में पूरा किया। यह एक ‘अनडॉक्यूमेंटेड अजूबे और उपलब्धि’ के रूप में पूरे विश्व के समक्ष उभरा है।
ईसीआई की लोकप्रियता केवल नागरिकों तक ही सीमित नहीं है। राजनीतिक दल भी इसे एक तटस्थ रेफरी के रूप में देखते हैं। 15 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से संबंधित 62 पार्टी नेताओं और अधिकारियों ने एक साक्षात्कार के दौरान चुनाव आयोग को निष्पक्ष माना है।
एक सेवानिवृत्त मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक साक्षात्कार के दौरान इस दृष्टिकोण की पुष्टि करते हुए कहा कि “वो मुख्यमंत्री जो चुनाव आयोग को पसंद नहीं करते हैं, जब वे विपक्ष में होते हैं तो हमारे काम से बहुत खुश होते हैं क्योंकि वे एक स्वतंत्र और निष्पक्ष पर भरोसा करते हैं।” ओडिशा राज्य में एक क्षेत्रीय दल बीजू जनता दल के बैजयंत पांडा ने चुनाव आयोग की करीबी चुनाव निगरानी के बारे में इस भावना को प्रतिध्वनित किया और कहा कि ‘यह वास्तव में गर्दन में दर्द के समान है। लेकिन यह निष्पक्षता की एक डिग्री और निष्पक्षता की धारणा स्थापित करने के उद्देश्य की पूर्ति करता है।’ भारत की पहली दलित मुख्यमंत्री मायावती ने उत्तर प्रदेश में 2007 के राज्य विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के बहुमत का श्रेय गरीब और हाशिए के मतदाताओं के लिए ECI सुरक्षा को दिया था।
राजनीति में अपराधीकरण को रोकने में असमर्थ रहा आयोग
गौरतलब है कि वर्षों से राजनीति में धन और आपराधिक तत्वों का प्रभाव हिंसा और चुनावी कदाचार के साथ बढ़ा है, जिसके परिणामस्वरूप राजनीति का अपराधीकरण हुआ है। चुनाव आयोग इस गिरावट को रोकने में असमर्थ रहा है। बंगाल जैसे राज्य सरकारों द्वारा सत्ता का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया है। चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को विनियमित करने के लिए पर्याप्त रूप से सुसज्जित नहीं है। ईसीआई के पास आंतरिक-पार्टी लोकतंत्र को लागू करने और पार्टी के वित्त के नियमन को लागू करने की कोई शक्ति नहीं है।
हाल के वर्षों में एक धारणा बन रही है कि चुनाव आयोग कार्यपालिका से कम स्वतंत्र होता जा रहा है, जिसने संस्था की छवि को प्रभावित किया है। प्रमुख संस्थागत दोषों में से एक सीईसी और अन्य दो आयुक्तों के चुनाव में गैर-पारदर्शिता है और यह सरकार की अध्यक्षता करने की पसंद पर आधारित है। ईवीएम में खराबी, हैक होने और वोट दर्ज नहीं करने के आरोप लगते रहे हैं जो आम जनता का संस्था से भरोसा कम करता है। पर, अभी भी इस संस्था की विश्वसनीयता कायम है और आगे आनेवाले समय में यह एक और स्वतंत्र निकाय बन कर उभरेगा!
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