आप प्रश्न का उत्तर ढूंढोगे या उत्तर का ही प्रश्न खोजने निकल पड़ोगे? आप भी सोच रहे होंगे कि ये क्या खिचड़ी पका रहे हैं, परंतु ऐसा ही है। 12 वर्ष पूर्व भारत को एक ऐसी ही ‘बीरबल की खिचड़ी’ खिलाई गई थी। आज महालेट एवं सुपर फ्रस्ट्रेटेड रिव्यू में हम बात करेंगे दुनिया के सबसे अजीब PR की, जिसने जाने कितने अभिनेताओं का डूबता करियर बचाया, एक औसत निर्देशक को फालतू का भाव दिया और जाने कितने आतंकियों को अपने कुत्सित कार्यों को उचित ठहराने का सुनहरा अवसर दिया। हम बात कर रहे है बॉलीवुड फिल्म My Name is Khan and I’m not a Terrorist की…
अब विश्वास मानिए, हम सभी ने इस फिल्म को देखा, परखा और सराहा है। Those were the golden days of Ganga Jamuni Tehzeeb, जहां सब मिल जुलकर रहते थे, कोई मनमुटाव, कोई शिकायत नहीं। उसी समय फरवरी 2010 में प्रदर्शित हुई करण जौहर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘My Name is Khan’, जिसमें प्रमुख भूमिका में थे शाहरुख खान, काजोल इत्यादि। यह कहानी थी रिज़्वान खान की, जिन्हें लगता है कि वो आतंकी नहीं है, पर वो क्यों नहीं है, इसकी खोज में वह एक लंबी यात्रा पर निकल पड़ते हैं। क्या रिज्वान सफल होते हैं या नहीं, यही है ‘My Name is Khan’ की कहानी।
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आतंकवाद को उचित ठहराने का हुआ है कुत्सित प्रयास!
अब सर्वप्रथम तो इस फिल्म ने अपने आप में कई कीर्तिमान रचे हैं। पहला, इसने सिद्ध किया है कि कैसे राई का पहाड़ बनाने के लिए लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं। ये फिल्म उन लोगों को समर्पित है, जिन्हें 9/11 के पश्चात नस्लभेदी हमलों का सामना करना पड़ा, परंतु ये नस्लभेदी हमलों पर कम और आतंकवाद को उचित ठहराने पर ध्यान अधिक केंद्रित करती है। अत्याचारों के कारण लोग विवश होते हैं जैसी घिसी-पिटी बातें इस फिल्म में भी भरपूर दोहराई गई हैं। अब यह ‘न्यू यॉर्क’ जितनी स्पष्ट और उग्र तो नहीं, पर एक वर्ग विशेष को पीड़ित दिखाने में करण जौहर ऐसे उलझ गए कि कहानी का बंटाधार कर बैठे।
अब बात कहानी पर प्रारंभ की ही है, तो फिर पूरा पोस्ट मॉर्टम करना तो बनता है। जवाब का सवाल ढूंढने का अनोखा कार्य किया है ‘My Name is Khan’ और इसमें अभिनय के नाम पर शाहरुख खान ने जो जमकर रायता फैलाया है, उसके बारे में तो जितना बोलें उतना कम है। आप एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन आप आम लोगों के साथ घुलना मिलना चाहते हैं, तो आप कुछ तो अनुसंधान करेंगे। कुछ नहीं तो ‘सदमा’ और ‘खिलौना’ जैसी फिल्में ही ध्यान से देख लेते, जहां ऐसे मानसिक रोगियों के रूप में श्रीदेवी एवं संजीव कुमार ने अपने अपने रोल से लोगों को सम्पूर्ण विश्वास दिलाया था कि वे वाकई में गंभीर रूप से किसी रोग से ग्रसित हैं। लेकिन जो रिसर्च और मेहनत करे, वो बॉलीवुड कहां?
अमेरिकी एयरपोर्ट पर मचा था बवाल
अरे ये तो कुछ भी नहीं है बंधु। इस फिल्म के प्रोमोशन हेतु अमेरिकी एयरपोर्ट पर रूटीन चेकिंग के नाम पर शाहरुख मियां ने जो भसड़ मचाई, उसने तो एक तीर से दो निशाने साध दिए। न केवल बुद्धिजीवियों को अपने वर्षों के एजेंडे का भरपूर मसाला दिया, अपितु कई असामाजिक तत्वों को उन्होंने अपने कुत्सित कार्यों को उचित ठहराने के लिए अनंत अवसर भी दिए। विश्वास न हो तो यासीन भटकल से पूछ लीजिए। अब रही बात डायरेक्शन की, तो करण जौहर का निर्देशन से वही नाता है जो इमरान खान का राजनीति से और राजदीप सरदेसाई का शिष्टाचार से! कुल मिलाकर My Name is Khan ने सामान्य ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिकता, मौलिकता एवं रचनात्मकता का सम्पूर्ण विध्वंस किया है। यहां से करण जौहर की वो यात्रा प्रारंभ हुई, जिसमें ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ एवं ‘ए दिल है मुश्किल’ जैसे पड़ाव आए हैं और ये यात्रा कब खत्म होगी, ये तो मियां करण ही जानें!
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पहले आतंक फैलाते हैं फिर उसे whitewash करने के लिए ecosystem तैयार है कला एवं साहित्य के क्षेत्र में |