अगर वामपंथियों के नैरेटिव से ‘करौली दंगा’ मेल खाता तो यह तस्वीर पुलित्जर पुरस्कार जीत जाती

वामपंथी इकोसिस्टम की खुल गई है कलई!

नेत्रेश शर्मा

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कहा जाता है कि एक फोटो जो बात कह जाती है वह हजार शब्दों में भी नहीं कही जा सकती। आज के दौर में तस्वीर इतनी शक्तिशाली हो चुकी है कि उसका प्रयोग सत्य बताने और झूठ फैलाने, दोनों में होता है। इसी बीच एक तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है, जिसमें एक पुलिस कांस्टेबल एक बच्ची को आग से बचाकर निकालते दिख रहा है। हाल ही में कांग्रेस शासित राजस्थान के करौली में नववर्ष के अवसर पर हिंदुओं द्वारा एक बाइक रैली निकाली गई थी, जिस पर मुसलमानों द्वारा पथराव कर दिया गया। उसके बाद अराजक तत्वों ने कई दुकानों को आग के हवाले कर दिया। उस दौरान आगजनी में एक महिला और एक बच्ची फंस गए, जिन्हें एक पुलिस कॉन्स्टेबल द्वारा वहां से बचाकर निकाला गया। पुलिस कांस्टेबल का नाम नेत्रेश शर्मा है। अपने जीवन की चिंता किए बिना कॉन्स्टेबल नेत्रेश शर्मा जलते हुए मकान के अंदर घुस गए और उन्होंने वहां फंसे मां और बेटी को सुरक्षित बाहर निकाल लिया।

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नेत्रेश शर्मा- नाम ही काफी है!

कॉन्स्टेबल नेत्रेश शर्मा की फोटो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर चारों और उन्हें सराहना मिल रही है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी उनकी प्रशंसा की है। गहलोत ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‛करौली में अपना कर्तव्य निभाते हुए 4 लोगों की जान बचाने वाले कांस्टेबल श्री नेत्रेश शर्मा से फोन पर बात कर उन्हें शाबासी दी। श्री नेत्रेश शर्मा को हेड कांस्टेबल के पद पर पदोन्नत करने का निर्णय किया है। अपनी जान की परवाह न कर कर्तव्य निभाने वाले श्री नेत्रेश का कार्य प्रशंसनीय है।’

वहीं, प्रख्यात विद्वान आनंद रंगनाथन ने टिप्पणी करते हुए लिखा, “मैंने आग की लपटों को बढ़ते देखा और बिना सोचे समझे दौड़ पड़ा।” रंगनाथन ने अपने ट्वीट में लिखा, उन्होंने (नेत्रेश शर्मा) पथराव और आगजनी का सामना करते हुए बच्ची को उसकी मां की गोद से लेकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। अगली बार आप जब भी पुलिस पर नाराज हों, भले ही आप सही कारण से नाराज हुए हों, फिर भी नाम याद रखिएगा, कांस्टेबल नेत्रेश शर्मा।

आनंद रंगनाथन ने बिल्कुल ठीक ही लिखा है क्योंकि यह एक तस्वीर ही पुलिस विभाग पर होने वाले विभिन्न हमलों का प्रतिउत्तर है। यह सत्य है कि पुलिस की छवि आम लोगों में अच्छी नहीं है, प्रायः उन्हें क्रूर समझा जाता है। कई बार पुलिस वालों को आम लोगों को अनावश्यक रूप से परेशान करते भी पाया जाता है। किंतु यह भी सत्य है कि पुलिस विभाग के लोग विपरीत परिस्थितियों में अपनी जान जोखिम में डालकर आम आदमी की सुरक्षा करने से हिचकते भी नहीं हैं। कोरोना काल के दौरान जब हर व्यक्ति अपने घरों में बंद था, तब भी पुलिस के लोग चिकित्सा कर्मियों की तरह आम आदमी की सेवा में लगे हुए थे। दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस की बहादुरी के कारण ही सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान बच सकी। CAA के विरोध में हुए दंगों के दौरान मुसलमानों की भीड़ द्वारा विभिन्न राज्यों में पुलिस पर लगातार हमले हुए और पुलिस विभाग के बहादुर कर्मियों ने निर्भीक होकर उनका सामना किया।

वामपंथी इकोसिस्टम की खुल गई है कलई

हालांकि, जो वामपंथी और उदारवादी समूह दानिश सिद्दीकी जैसे फोटोग्राफर की तस्वीरों को वायरल करते हैं, उन्होंने कॉन्स्टेबल शर्मा की बहादुरी पर एक शब्द नहीं कहा। क्योंकि कॉन्स्टेबल शर्मा जिस आग से बच्ची को बचा कर निकाल रहे थे वह कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा लगाई गई थी। यदि किसी दंगे में हिंदू समुदाय द्वारा आग लगाए जाने की ऐसी खबरें सामने आती अथवा कश्मीर के किसी गांव में सेना की कार्रवाई के दौरान किसी घर में आग लगी होती और वहां से किसी बच्चे को निकालने की तस्वीर वायरल हुई होती, तो उसे वामपंथी समूह द्वारा हाथोंहाथ उठाया जाता और उसे पुलित्जर पुरस्कार (Pulitzer Prize) तक देने की मांग हो चुकी होती। लेकिन यहां मामला उल्टा है, जिसके कारण वामपंथियों के मुंह पर ताला लगा हुआ है।

ध्यान देने वाली बात है कि तस्वीरों के साथ भी समाचार की तरह व्यवहार होता है। जो तस्वीर नैरेटिव के अनुसार सही बैठती है, उसे आगे बढ़ाया जाता है, अन्य को पूछा भी नहीं जाता। यह कहावत बिल्कुल सही है कि तस्वीर हजार शब्दों से अधिक बात कह जाती है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि कॉन्स्टेबल नेत्रेश शर्मा की तस्वीर ने तो वामपंथी इकोसिस्टम की कलई खोल दी है, यह तस्वीर और इसके प्रति वामपंथियों का नजरिया, नैरेटिव वॉर का पूरा ग्रन्थ है!

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