भारत और श्रीलंका के बीच एक दशक पुराना मछुआरा मुद्दा अभी तक सुलझ नहीं पाया है। श्रीलंकाई नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी की खबरें अक्सर हमारे सामने आती रहती हैं। कई बार हमने समाचार पत्रों में श्रीलंकाई सेना द्वारा भारतीय मछुआरों के पकड़े जाने की खबरें सुनी होंगी। इन सबमें सबसे प्रमुख कारण कच्चातीवु द्वीप का विवाद है। यह मुद्दा स्वतंत्रता पूर्व से भारत में उठता रहा है और भारत और श्रीलंका के संबंधों में दरार पैदा करता रहता है। द्वीप का अपना इतिहास है और अंतरराष्ट्रीय आपसी समझौतों पर भी तमिलनाडु सरकार ने सवाल उठाए हैं।
कच्चातीवु द्वीप के बारे में
कच्चातीवु पाक जलडमरूमध्य में एक निर्जन अपतटीय द्वीप है। इसका निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। 285 एकड़ की इस भूमि को ब्रिटिश शासन के दौरान भारत और श्रीलंका द्वारा संयुक्त रूप से प्रशासित किया गया था।
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रामनाड के राजा (वर्तमान में रामनाथपुरम, तमिलनाडु) के पास कच्चातीवु द्वीप था और बाद में यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया। 1921 में, श्रीलंका और भारत दोनों ने मछली पकड़ने के लिए भूमि के इस टुकड़े पर दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध एक बयान के अनुसार, सरकार ने 1974 और 1976 में श्रीलंका के साथ समुद्री सीमा समझौते किए पर यह मामला अभी भी भारत के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। केंद्रीय परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री वी. के. सिंह के अनुसार केंद्र श्रीलंका से कच्चाथीवू को वापस लाने के लिए गंभीर प्रयास कर रहा है लेकिन यह मुद्दा फिलहाल ठंडे बस्ते में है।
हंबनटोटा के बाद, जहां चीनी लेनदारों ने श्रीलंकाई क्षेत्र का 99 साल का पट्टा प्राप्त कर लिया है, भारत नहीं चाहता कि चीन द्वीप-राष्ट्र में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण और निष्पादन के नाम पर अपने तटों के करीब आए। यह राष्ट्र की सुरक्षा तथा भारत श्रीलंका के परस्पर संबंधों के लिए अत्यंत ही घातक सिद्ध हो सकता है। चीन एक ओर जहां भारत को घेरने के लिए श्रीलंका में नित नए कदम बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर आर्थिक संकट से जूझ रहा श्रीलंका उसे रोकने में नाकाम है।
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श्रीलंका को चाहिए भारत की सबसे ज्यादा मदद
हम सभी जानते हैं कि श्रीलंका को इस आर्थिक संकट से निकालने के लिए सबसे ज्यादा मदद अगर किसी देश ने की है तो वह भारत ही है। भारत न सिर्फ श्रीलंका को ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ के रूप में आर्थिक मदद मुहैया करा रहा है बल्कि उसे मानवीय सहायता भी उपलब्ध करा रहा है। भारत श्रीलंका के निर्बाध ऊर्जा आपूर्ति को भी सुनिश्चित कर रहा है।
अतः, भारत को चाहिए कि श्रीलंका की इस स्थिति को देखते हुए उस पर कच्चातीवु द्वीप को लौटाने के लिए दबाव बनाये अन्यथा बहुत देर हो जाएगी और ये द्वीप भी भारत श्रीलंका के मध्य गले की हड्डी बन जाएगा जिसका फायदा चीन सरीखे देश उठाएंगे।