ये रही उन अभिनेताओं की सूची जो अक्षय कुमार से बेहतर पृथ्वीराज के शौर्य को आत्मसात कर सकते थे

बॉलीवुड ने 'पृथ्वीराज' के साथ न्याय नहीं किया!

Prithviraj

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“धर्म के लिए जिया हूँ, धर्म के लिए मरूँगा”

बहुत ही मस्त, एकदम सरस, अति उत्तम, परंतु ये बातें अक्षय कुमार के मुख पर तो बिल्कुल नहीं सुहाती। उनकी फिल्म पृथ्वीराज प्रदर्शित होने वाली है लेकिन इस फिल्म के ट्रेलर में अक्षय कुमार की असहजता ने अपनी ओर सभी का ध्यान आकर्षित कर लिया है। इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे कि अगर अक्षय कुमार के स्थान पर किसी योग्य अभिनेता को यह रोल दिया गया होता तो यह फिल्म कहां से कहां से जा सकती थी।

दरअसल, हाल ही में डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘पृथ्वीराज’ का ट्रेलर सामने आया है। भारतवर्ष के महान सनातनी योद्धाओं में से एक सम्राट पृथ्वीराज चौहान के गौरव को चित्रित करने का प्रयास करती यह फिल्म 3 जून 2022 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने को तैयार है। इस फिल्म को डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी निर्देशित कर रहे हैं, वही डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी, जिन्होंने भारत को ‘चाणक्य’, ‘उपनिषद गंगा’ जैसे बहुमूल्य सीरीज़ प्रदान किये।

इस फिल्म के लिए लोग कितने प्रतीक्षारत थे, इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस फिल्म के ट्रेलर को 6 करोड़ से अधिक व्यूज अब तक यूट्यूब पर मिल चुके हैं। परंतु इस फिल्म से कई लोगों को आपत्ति है, क्योंकि इस फिल्म से न तो एक ऐतिहासिक फिल्म का आभास हो रहा है और दूसरा, इस फिल्म की कास्टिंग पर भी अनेक प्रश्न उठाए जा रहे हैं।

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कास्टिंग को लेकर उठाए जा रहे हैं प्रश्न

वो कैसे? असल में ‘पृथ्वीराज’ के शीर्ष भूमिका में हैं अक्षय कुमार, जो सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शौर्य गाथा को सिल्वर स्क्रीन पर आत्मसात करेंगे। तो इसमें समस्या क्या है? समस्या सम्राट पृथ्वीराज चौहान के व्यक्तित्व और अक्षय कुमार में है, जिसमें आकाश पाताल का अंतर है। तो इसका गलत कास्टिंग से क्या वास्ता? सर्वप्रथम पृथ्वीराज के ट्रेलर को ही देख लीजिए। इसमें कहीं भी आपको पृथ्वीराज चौहान दिख रहे हैं क्या? जब आप कोई भी ऐतिहासिक फिल्म बनाने चलते हैं, तो आप उसे ऐसा आत्मसात करते हैं कि आप उस किरदार का जीता जागता स्वरूप बन जाते हैं। उदाहरण के लिए जब आप ‘द लीजेंड ऑफ भगत सिंह’ में अजय देवगन को देखते हैं या ‘पद्मावत में रणवीर सिंह, या ‘तान्हाजी’ में अजय देवगन के अतिरिक्त शरद केलकर एवं ल्यूक केनी को देखते हैं, तो आप इन अभिनेताओं को नहीं, इनके द्वारा आत्मसात किये गए ऐतिहासिक किरदारों को देखते हैं।

लेकिन ‘पृथ्वीराज’ ने एक बार फिर बॉलीवुड की उस महामारी से परिचित कराया है, जिसकी चर्चा तो सब करते हैं, पर समाधान शायद ही कोई चाहता है – गलत कास्टिंग। आप स्वयं सोचिए, जिन सम्राट पृथ्वीराज चौहान को वीरगति प्राप्त होते होते 300 वर्ष भी पूरे नहीं हुए, उसके लिए आप ऐसे अभिनेता को चुनते हैं, जिसकी आयु 54 वर्ष है? उसके समक्ष ऐसी अभिनेत्री है, जिसकी आयु उसके बेटी समान है? आखिर क्या सोचकर अक्षय कुमार को सम्राट पृथ्वीराज चौहान बनाया गया? ऐसा नहीं है कि वो एक खराब अभिनेता हैं, परंतु इस फिल्म के ट्रेलर से वो पृथ्वीराज चौहान कम और अक्षय कुमार अधिक प्रतीत हुए और यह शुभ संकेत नहीं है।

बॉलीवुड के पास मौजूद थे कई विकल्प

ऐसे में गलत कास्टिंग की यह बीमारी बॉलीवुड के लिए कोई नई बात नहीं है। परंतु ‘पृथ्वीराज’ ने सिद्ध किया है कि यदि इस बीमारी का जल्द निस्तारण नहीं हुआ, तो बॉलीवुड का समूल विनाश निश्चित है। इस बात को लेकर कई लोगों ने फिल्म के निर्माताओं और अक्षय कुमार की जबरदस्त आलोचना की है। परंतु क्या इनके उचित विकल्प नहीं थे? थे, बिल्कुल थे, और हम कुछ ऐसे ही विकल्प आपको गिनाते हैं, जो अक्षय कुमार से बेहतर पृथ्वीराज चौहान की भूमिका को आत्मसात कर सकते थे –

अगर पृथ्वीराज चौहान के रोल में ही किसी को चुनना था, तो विक्की कौशल में क्या बुराई थी भाई? हाँ, कुछ लोग बौद्धिक तौर पर उनके विचारों से असहमत हो सकते हैं और ‘सरदार उधम सिंह’ के वैचारिक दृष्टिकोण से भी असहमत हो सकते हैं, परंतु उनके अभिनय पर कम ही लोग संदेह कर सकते हैं। यह भी कम लोग जानते हैं कि पद्मावत में भी वो रावल रत्न सिंह के रोल के लिए प्रथम विकल्प थे, परंतु दीपिका पादुकोण के घमंड के आगे निर्देशक संजय लीला भंसाली को झुकना पड़ा, क्योंकि महोदया अपने से तुच्छ एक्टर के साथ काम नहीं करना चाहती थी। सोचिए, जब केवल शाहिद कपूर के होने पर रणवीर सिंह को टक्कर मिली थी, तो विक्की कौशल के होने पर क्या होता और यदि विक्की कौशल पृथ्वीराज चौहान के रूप में होते, तो सिल्वर स्क्रीन पर कितनी आग लगती।

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एक और नाम भी है, जिसपे लोग चकित हो सकते हैं, परंतु यदि यह जीवित होते और उन्हें ये अवसर मिलता, तो सुशांत भी विक्की कौशल की भांति सिल्वर स्क्रीन पर आग लगा सकते थे, और सम्राट पृथ्वीराज चौहान की शौर्य गाथा को सम्पूर्ण न्याय दे सकते थे। हम बात कर रहे हैं सुशांत सिंह राजपूत की। यदि आप सोच रहे हैं कि ये कैसे संभव है? तो स्मरण कीजिए 2016 की उस अभूतपूर्व फिल्म ‘एम एस धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी’ को, जिसकी सक्सेस के पीछे केवल एक कारण है – सुशांत सिंह राजपूत, जिन्होंने न केवल इस प्रतिभाशाली क्रिकेटर को आत्मसात किया, अपितु हमें इस बात पर विवश कर दिया कि हम सिल्वर स्क्रीन पर सुशांत को धोनी, अपितु धोनी का एक ही अलग रूप देख रहे हैं। सोचिए, यदि यह सम्राट पृथ्वीराज चौहान के रूप में चुने जाते, तो क्या होता?

एक और व्यक्ति हैं, जो सम्राट पृथ्वीराज चौहान की भूमिका को सम्पूर्ण न्याय दे सकते हैं और वो हैं रणदीप हुड्डा। वो सिर्फ एक मंझे हुए अभिनेता ही नहीं है, अपितु परिवेश से जाट भी है, इसलिए वो समीकरणों के दृष्टिकोण से इस भूमिका को काफी बेहतर रूप से  निभा सकते हैं। यदि अक्षय कुमार की ‘केसरी’ न आई होती, तो वह सारागढ़ी के नायक, हवलदार इशर सिंह की भूमिका को आत्मसात करने के लिए तैयार थे, जिसके लिए उन्होंने अपने लुक्स और कद काठी पर काफी मेहनत भी की। उन्हें हाल ही में अमर वीर क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर की भूमिका को आत्मसात करने के लिए चुना गया है। ऐसे में वे पृथ्वीराज चौहान की भूमिका हेतु कितना परिश्रम करते, आप सभी परिचित हैं।

कहते हैं कि पृथ्वीराज चौहान केवल वीर ही नहीं, अपितु हृष्ट पुष्ट और हर प्रकार की धनुर्विद्या में कुशल थे। कई सोशल मीडिया यूज़र्स का यह भी मानना है कि यदि विद्युत जामवाल जैसे अभिनेता पृथ्वीराज के रूप में चुने जाते, तो इस फिल्म के मायने ही कुछ और होते। अब कहीं न कहीं उन यूज़र्स ने विद्युत की युद्ध कला यानी मार्शल आर्ट्स में में योग्यता को ध्यान में रखते हुए अवश्य सोचा होगा, परंतु वे अभिनय में भी उतने बुरे नहीं है और ‘फोर्स’  से लेकर ‘खुदा हाफ़िज़’ तक में उन्होंने अपनी योग्यता सिद्ध की है। आवश्यकता है तो बस सही अवसर की, जो शायद उनके हाथ से फिसल गया।

कहीं न कहीं पृथ्वीराज में अक्षय कुमार के रूप में एक गलत विकल्प चुनकर डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने अपने बहुप्रतीक्षित प्रोजेक्ट की प्रतिष्ठा दांव पर अवश्य लगाई है। ये फिल्म कितनी सफल होगी, ये तो आने वाला समय ही बताएगा, परंतु यदि असफल हुई, तो दोषी केवल एक वस्तु होगा – गलत निर्णय, क्योंकि एक निर्णय ‘तान्हाजी’ को जनता का प्रिय बना सकती है और ‘पानीपत’ को हास्य का विषय बना सकती है।

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