लाउडस्पीकर फैसले के अनुपालन में भाजपा की सख्ती से अब AIMIM नेता भी सीधी चाल चलने पर विवश हैं

आखिरकार ऊंट पहाड़ के नीचे आ ही गया!

AIMIM

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लेट आए लेटेस्ट आए। यह कथन आज उस पार्टी और उसके नेताओं के लिए एकदम सटीक बैठता है जो सिर्फ एक धर्म पर आधारित राजनीति करने और वैमन्सयता फैलाने में विश्वास रखते हैं। जी हां, यहां बात हो रही है AIMIM की जिसके सर्वेसर्वा हैं असदुद्दीन ओवैसी। हाल ही में लाउडस्पीकर विवाद ने बड़ा तूल पकड़ लिया था जिसपर कई मुस्लिम संगठन उग्र होते हुए यह कहते दिखे कि यह उनकी आजादी को दबाने का सत्ताधीशों का षड्यंत्र है, पर जैसे ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया यही संगठन और उसके नेता मिमियाने लगे कि जो भी कहा सही कहा। ऐसे में क्योंकि भाजपा सरकारें किसी भी फैसले का सख्त अनुपालन सुनिश्चित करती हैं, AIMIM के प्रवक्ता और नेता भी सीधी चाल चलने पर विवश हो गए हैं।

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लाउडस्पीकर मामले पर AIMIM का रूख

दरअसल, औरंगाबाद के सांसद इम्तियाज जलील ने एक मीडिया समूह  बात करते हुए को बताया कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर का मुद्दा मुस्लिम समुदाय के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। इस सवाल पर कि लाउडस्पीकर के मुद्दे पर AIMIM अब तक खामोश क्यों है? इस पर जवाब देते हुए इम्तियाज जलील ने कहा कि “मैं चुप्पी नहीं साध रहा हूं। मैं यह कह रहा हूं कि अजान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से, इस मुद्दे को राजनीतिक रूप दिया जा रहा है। कुछ राजनीतिक दल अपना रास्ता बनाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि पुलिस और प्रशासन मस्जिदों के ऊपर लाउडस्पीकर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सख्ती से लागू करें, न कि राजनीतिक दलों के फरमान पर।”

इम्तियाज जलील ने आगे कहा कि राज्य में सैकड़ों मस्जिदें अजान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों का सख्ती से पालन कर रही हैं। अगर कोई मस्जिद नियम का पालन नहीं कर रही है तो पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करे। मुस्लिम समुदाय बदलाव के लिए तैयार है और हम पहले ही अपने दायरे में कई बदलाव ला चुके हैं। लेकिन राजनीतिक दलों को पुलिस या प्रशासन की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। पुलिस और प्रशासन को मस्जिदों का दौरा करना चाहिए और खुद लाउडस्पीकरों के डेसिबल स्तर की जांच करनी चाहिए। यदि वे नियमों का उल्लंघन करते पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए। पुलिस को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए मस्जिदों द्वारा उचित अनुमति ली गई है।

AIMIM सांसद ने कहा कि समाज के लिए यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। हम देश में लागू नियमों और कानूनों का पालन कर रहे हैं। कानून को अपना काम करने दें, अगर कुछ राजनीतिक दल इसे एक बड़ा मुद्दा बनाना चाहते हैं, तो यह उनकी समस्या है। उन्हें अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए शर्तों को निर्धारित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हम जानते हैं कि वे जो कर रहे हैं वह क्यों कर रहे हैं।

इनके पास सवाल उठाने हेतु कोई तथ्य ही नहीं है

अब जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी, सुप्रीम कोर्ट कह रहा है तो मान लेंगे यह कहना आसान है, पर जितनी तीव्रता से शासन-प्रशासन ने धार्मिक स्थलों से धड़ल्ले से एकतरफा अवैध लाउडस्पीकरों को हटाना शुरू किया, क्या AIMIM और क्या अन्य मुल्ला-मौलवी किसी के पास इस बात पर आक्रामक बिंदु नहीं था जिसे उठाकर यह लोग अपना विरोध प्रकट कर सकते। चूंकि लाउडस्पीकरों पर हुई कार्रवाई जितनी मस्जिदों उतनी ही मंदिरों पर और उतनी ही अन्य किसी धार्मिक स्थल पर हुई। ऐसे में AIMIM नेताओं की चुप्पी इसलिए लाजमी हो जाती है क्योंकि वे कहें तो कहें क्या और बोलें तो बोलें क्या।

यह शाश्वत सत्य है कि कार्रवाई जबतक एकतरफा होती है वो किसी भी पक्ष के लिए दुःख और विलाप का कारक हो सकता है, पर जब इसका उल्लंघन एक ही तबका करेगा तो कार्रवाई का डंडा भी तो उसी पर चलेगा, जो ऐसी घटनाओं में संलिप्त पाया जाएगा। सौ बात की एक बात यह भी है कि AIMIM नेताओं और वक्ताओं की लाउडस्पीकर के प्रति ऐसी नरम शैली इसलिए बाहर आई है, क्योंकि भाजपा सरकारें सख्त अनुपालन सुनिश्चित करती हैं और लाउडस्पीकर विवाद में भी ऐसा साफ़ प्रदर्शित हुआ है।

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