भारतीय राजनीति में राजनीति और जातीयता कुछ इस प्रकार हावी हो गई है कि उसे हटाने की चक्कर में कई नेता ही मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स से ही हटते चले गए पर जातीयता वहीं की वहीं रही। यह राजनीति का वो शाश्वत सत्य है जो सदा से चला आ रहा है। स्वयं नेता भी चुनावी सभाओं में अपने धर्म और जाति का बखान करने से नहीं झिझकते हैं, ऐसे में इस कारक को भारतीय राजनीति से हटाना असंभव ही प्रतीत होता है। अब हरियाणा को ही देख लिया जाए तो उसके जातीय समीकरण बनते बिगड़ते अब इस दोह राह पर खड़े हो गए हैं कि भाजपा अपने घटक दल के अतिरिक्त नई राजनीतिक बिसात बिछाना शुरू कर चुकी है। यही कारण है कि, बीजेपी की नई “जाट वोट” की रणनीति काफी दिलचस्प लग रही है।
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी 2024 के लोकसभा चुनावों और उसके बाद निकटस्थ विधानसभा चुनावों के लिए अपनी कमर कस रही है। यही कारण है कि हरियाणा भाजपा इकाई द्वारा राज्य में जाटों को लुभाने के लिए हलचल और साथ ही पार्टी का परंपरागत वैश्व वोटर दूर न जाए इसे लेकर भी मंथन चल रहा है। पार्टी, प्रमुख निर्णायक भूमिका निभाने वाले समुदाय को लुभाने की योजना बना रही है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जाट नेताओं का एक वर्ग 2020-21 के किसानों के आंदोलन और मीडिया द्वारा पार्टी के खिलाफ उन्हें दी गई गलत सूचना के कारण पार्टी से अलग हो गया है। हालांकि, भाजपा को जाट समुदाय को लुभाना के लिए अब अपने घटक दल जननायक जनता पार्टी (JJP) पर आश्रित नहीं रहना है इसलिए वो अपने संगठनात्मक स्तर पर इन सभी पर काम करने के लिए जुट चुकी है।
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जाट वोट बैंक की राजनीति करने को तैयार
2019 में, भाजपा को विधानसभा में 90 में से 40 सीटें मिलीं और सरकार बनाने के लिए जेजेपी से हाथ मिलाना पड़ा था। लेकिन अब जिस प्रकार जाट समुदाय में जेजेपी के प्रति नाराज़गी जगजाहिर हो चुकी है, भाजपा को लगने लगा है कि समय आ गया है कि वो अपने जाट वोट बैंक पर ध्यान दे जो अभी भी कांग्रेस और जेजेपी जैसे दलों पर अधिकांश रूप से हावी होकर उनके पक्ष में जाता दिख रहा है। चूंकि दुष्यंत चौटाला राज्य में जाट समुदाय के समक्ष मुख्यधारा के वो जाट नेता बनने में असफल रहे, ऐसे में भाजपा अब स्वयं आगे बढ़ते हुए जाट समीकरण अपने पक्ष में करने के लिए आगे बढ़ चुकी है।
पार्टी के एक नेता की बात पर गौर करें तो उनका कहना था कि, “हमें अपने वोट बैंक के विस्तार के लिए सहयोगियों पर निर्भर रहना पसंद नहीं है। सरकार और पार्टी दो अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं।” बता दें इसी क्रम में, पार्टी 30 मई को एक आउटरीच कार्यक्रम शुरू करेगी जो एक महीने तक चलेगा। केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में प्रचार करने के लिए मंत्री और नेता लोगों के बीच जाएंगे। पार्टी ने लाभार्थियों की एक सूची तैयार की है और उनके साथ सम्मेलन और बातचीत करेगी।
ज्ञात हो कि, किसान आंदोलन के बाद से भाजपा के विरोधी दलों ने उसके विरुद्ध ऐसा मायाजाल खड़ा कर दिया था कि जाट समुदाय का एक धड़ा उससे छिटककर बहुत दूर चला गया था पर वहीं कुछ खाप ऐसे भी थे जहाँ से एकतरफा समर्थन भी दर्ज़ किया गया। इस समर्थन ने ही भाजपा को अपनी साख बचाने और जाट वोट बैंक को पुनः अपने पाले में लाने के लिए प्रेरित किया। शाश्वत सत्य यही है कि इसी क्रम में अब जहाँ एक ओर राज्य में जाट समुदाय का पूरा धड़ा तैयार करने के लिए पार्टी आलाकमान अपने घोड़े खोल चुका है।
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