किसी महापुरुष ने एक समय कहा था, “बेटे, जो मस्जिदें मंदिर तोड़कर बनायी गयी हैं, वे गुलामी की निशानी हैं”। इस पर हमारे लिबरल तुरंत ज्ञान देने लगेंगे। लेकिन अगर ये बात महात्मा गांधी ने कही हो, तो? इस लेख में जानेंगे कि मोहनदास करमचंद गांधी के एक चर्चित लेख के बारे में, साथ ही जानेंगे कि किस तरह से धार्मिक स्थलों पर अवैध नियंत्रण पर उनके विचार कई वामपंथियों को निशब्द करने पर विवश कर सकते हैं।
लिबरल गांधी कार्ड आगे कर देते हैं
जब भी बात हिन्दुत्व विरुद्ध धर्मनिरपेक्षता की आती है तो लिबरल गांधी कार्ड आगे कर देते हैं। क्योंकि बाबा गांधी से बड़ा सेकुलर तो इस देश में वैसे भी कोई न था। यही बात हाल के काशी विश्वनाथ के विषय पर भी लागू होती है, जब लिबरल लोग गांधीवादी विचारों की ओट में छुपकर भारतीयों को सनातनी विचारधारा अपनाने के लिए कोस रहे थे।
परंतु मोहनदास करमचंद गांधी के एक पुराने लेख का स्क्रीनशॉट काफी वायारल हो रहा है, जो लिबरलों के विचारधारा के ठीक विरुद्ध जाता प्रतीत होता है, क्योंकि वे न केवल धार्मिक स्थलों पर अवैध नियंत्रण का विरोध करते हैं, अपितु इसके लिए कट्टरपंथी मुस्लिमों को सार्वजनिक तौर पर दोषी भी ठहराते हैं। 27 जुलाई, 1937 को ‘नवजीवन’ के इस अंक में गांधी जी बिना किसी लाग-लपेट के साफ-साफ कहते हैं कि हिंदुओं की जिन धार्मिक स्थलों पर मुस्लिमों का कब्जा है उन्हें खुशी-खुशी हिंदुओं को सौंप देना चाहिए।
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चकित मत, गांधी जी आरएसएस की किसी शाखा से होकर नहीं आ रहे थे। ये वास्तव में उन्हीं के बोल हैं। दिल्ली की एक मासिक पत्रिका ‘सेवा समर्पण’ में भी प्रकाशित इस लेख के अनुसार, “किसी भी धार्मिक उपासना गृह के ऊपर बलपूर्वक अधिकार करना बड़ा जघन्य अपराध है। मुगल काल में धार्मिक धर्मांधता के कारण मुगल शासकों ने हिंदुओं के बहुत से धार्मिक स्थानों पर कब्जा कर लिया, जो हिंदुओं के पवित्र आराधना स्थल थे। इनमें से कई को लूटा गया और कई को मस्जिदों में तब्दील कर दिया गया। हालांकि, मंदिर और मस्जिद दोनों ही भगवान की पूजा करने के पवित्र स्थल हैं और दोनों में कोई अंतर नहीं है। मुस्लिमों और हिंदुओं के पूजा करने का तरीका अलग है” –
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महात्मा गांधी ने और क्या लिखा
“महात्मा गांधी ने आगे लिखा था, “इसी तरह हिन्दुओं के जिन धार्मिक स्थलों पर मुस्लिमों का कब्जा है, उन्हें खुशी-खुशी हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए। इससे आपसी भेदभाव दूर होगा और हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच एकता बढ़ेगी, जो भारत जैसे देश के लिए वरदान साबित होगी।” 27 जुलाई, 1937 को ‘नवजीवन’ के इस अंक में गांधी जी बिना किसी लाग-लपेट के साफ-साफ कहते हैं कि हिंदुओं की जिन धार्मिक स्थलों पर मुस्लिमों का कब्जा है उन्हें खुशी-खुशी हिंदुओं को सौंप देना चाहिए”। अब मात्र इतना पढ़के ही लिबरलों का हाल बेहाल हो गया होगा।
जिस समय मात्र दर्पण दिखाने पर कुछ लोगों को मृत्यु से लेकर दुष्कर्म तक की धमकियां दी जा रही हो, वहां ऐसे धूर्त इस्लामवादियों के वामपंथी समर्थकों के लिए महात्मा गांधी के बोल हलाहल से कम घातक न होंगे। वैसे देखने वाली बात है कि वामपंथियों के देवता, व्लादिमिर लेनिन एक समय स्वातंत्र्यवीर सावरकर से भी लंदन मिले थे।
सच कहें तो वामपंथियों के अनुसार जो भी वे बोलें वो शाश्वत सत्य, वहीं कोई और कुछ भी बोलें, चाहे वह वास्तव में शाश्वत सत्य की प्रतिमूर्ति ही क्यों न हो, उसे वह झूठ सिद्ध करने में कोई कसर न छोड़ेंगे। ऐसे में लिबरलों से एक विनम्र निवेदन है – हमारी न सही, अपने बापू की तो सुन लो।