भारत में फ्री की राजनीति के ब्रांड अंबेसडर बने अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को कितना बर्बाद किया है, यह सभी जानते हैं। फ्री का झुनझुना पकड़ा कर जनता को बेवकूफ बनाने में केजरीवाल को महारत हासिल है। देश को मुनाफा हो या घाटा किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। बस राजनीतिक फायदे के लिए कुछ करना है तो करना है। अपने इसी ध्येय के साथ फ्री पुरूष केजरीवाल लगातार बढ़ते जा रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि मुफ्त की सेवाएं देकर आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली राज्य पर कितना आर्थिक भार डाल रही है। दरअसल, हाल ही में केजरीवाल सरकार ने घोषणा करते हुए कहा कि दिल्ली के मजदूरों को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा मिलेगी। ध्यान देने वाली बात है कि इस सरकार ने पहले ही दिल्ली की महिलाओं को फ्री बस सेवा की सुविधा दी है और अब मजदूरों को भी इसमें शामिल किया गया है। कहने को तो इसे फ्री सेवा कहा जा रहा है लेकिन सच में क्या यह फ्री सेवा है?
जवाब है नहीं! हालांकि, ट्विटर पर सरकार के निर्णय की जानकारी देते हुए दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने लिखा, “दिल्ली में निर्माण श्रमिकों के लिए आज मुफ़्त बस पास योजना शुरू की गई। निर्माण स्थल पर काम कर रहे बेलदार, मिस्त्री, बढ़ई, इलेक्ट्रिशन, गार्ड व अन्य मज़दूर इसका लाभ उठा सकते हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का प्रयास है कि मजदूरों की अधिकतम सहायता की जाए। ये दिल्ली के निर्माता हैं।” दिल्ली सरकार की इस सेवा का लाभ 10,00,000 पंजीकृत मजदूरों को होगा। पहले ही दिल्ली सरकार मजदूरों को ₹5000 का आर्थिक पैकेज दे रही है और अब फ्री बस सेवा के द्वारा राज्य पर बोझ डाला जा रहा है जबकि दिल्ली पर पहले ही 40,000 करोड़ से अधिक का ऋण है। वर्ष 2021 के बजट के अनुसार दिल्ली पर 40,697 करोड़ रुपए का ऋण है, जो दिल्ली की कुल अर्थव्यवस्था का 5% से अधिक है।
हर साल 1000 करोड़ कर बढ़ सकता है आर्थिक बोझ
दिल्ली सरकार द्वारा मुफ्त बस सेवा उपलब्ध कराने पर औसतन राज्य पर कितना आर्थिक बोझ आएगा इसका एक अनुमान लगाया जा सकता है। दिल्ली में पंजीकृत मजदूरों की संख्या 10 लाख है, अगर एक मजदूर 1 दिन में कम से कम आने जाने पर ₹20 खर्च करता है और सरकार उसे मुफ्त बस सेवा उपलब्ध कराती है, तो 10,00,000 मजदूरों के हिसाब से 1 दिन में दिल्ली सरकार पर 2 करोड़ रुपये का आर्थिक बोझ पड़ेगा। हालांकि, हमने 1 दिन के बसयात्रा का किराया ₹20 मानकर बहुत ही कम राशि के आधार पर अनुमान लगाया है किंतु इस अनुमान के अनुसार भी एक महीने में दिल्ली पर 60 करोड़ का बोझ पड़ेगा। और इस हिसाब से 1 साल में लगभग 700 करोड़ रुपए का आर्थिक बोझ पड़ेगा। दिल्ली के बहुत से मजदूर शहर के बाहर दूरदराज इलाकों में रहते हैं और वहां से मुख्य शहर तक आने का खर्चा ₹20 से अधिक होगा। ऐसे में दिल्ली पर आर्थिक बोझ सालाना 1000 करोड़ के स्तर तक जा सकता है। दिल्ली सरकार की योजना इस सेवा के अंतर्गत इलेक्ट्रीशियन, प्लम्बर, बढ़ई, गार्ड सभी को शामिल करने की।
टैक्स के पैसे का गलत इस्तेमाल
बता दें कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है उसे मिलने वाले ऋण केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जाते हैं। ऐसे में केजरीवाल की योजनाओं का भार मोदी सरकार को उठाना पड़ेगा। TFI ने अपने एक लेख के माध्यम से बताया था कि कैसे क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की महत्वाकांक्षाओं का भार महानगरों को उठाना पड़ता है। महानगरों में रहने वाले शहरी लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में देते हैं जिससे शहर की मूलभूत सुविधाओं का विकास हो सके। किंतु राजनीतिक दल अपने छोटे स्वार्थों की पूर्ति के लिए शहर के विकास के स्थान पर लोकलुभावनी योजनाओं की घोषणा कर देते हैं। आम शहरी नागरिक टैक्स भरता है और बरसात के मौसम में पानी से लबालब भरी सड़कें देखता हैं, जबकि सरकार में बैठे आम आदमी पार्टी जैसे राजनितिक दल, टैक्स के पैसों से मुफ्त की योजनाएं चलाकर वोटर को लुभाने में लगे रहते हैं। फ्री सेवा फ्री सेवा के नाम पर ढोल पीटने वाली केजरीवाल सरकार इन रुपयों का सही जगह जैसे दिल्ली में जमा हुए कूड़े के ढेर को हटाने या हवा साफ करने के उपायों के लिए इस्तेमाल करने की बजाए, ऐसे फ्री राइड जैसी सेवाओं पर मेहनत से कमा रहे करदाताओं के टैक्स का इस्तेमाल कर रही है।