निखत जरीन ने हाल ही में महिला मुक्केबाजी विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित किया। स्वाभाविक रूप से, वह भारत में एक सनसनी बन गई है और हर मीडिया हाउस उसके साथ एक ‘एक्सक्लूसिव’ बातचीत करके बयान निकालने के लिए बेताब है, जो उनके पाठकों और दर्शकों की संख्या बढ़ा दे। इस मामले में विशेष रूप से NDTV अपनी रेटिंग के बारे में बहुत चिंतित है, क्योंकि हम सभी जानते हैं कि यह वामपंथी मीडिया हाउस अपनी ओछी और तथ्यहीन पत्रकारिता के लिए भारतीय दर्शकों के बीच अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। इसलिए, NDTV ने यह सुनिश्चित किया कि वह निखत जरीन से विशेष रूप से बात करने के अवसर प्राप्त करे। NDTV को यह अवसर मिला भी, पर निखत ज़रीन से उनके खेल को छोड़कर बाकी सारे सवाल पूछे गए ताकि इस इंटरव्यू को सनसनीखेज बनाया जा सके और यह दिखाया जा सके कि बहुसंख्यक समाज अल्पसंख्यकों को कितना प्रताड़ित करता है, जिससे देश को गौरवान्वित करनेवाली खिलाडी भी अछूती नहीं है।
आपकी जानकारी के लिए दोहरा दें कि निखत जरीन मुस्लिम हैं। इस वाक्य को दोहराना इसीलिए जरूरी है क्योंकि NDTV ने शायद निखत का साक्षात्कार ही इसीलिए लिया क्योंकि वो एक मुस्लिम खिलाड़ी हैं, अतः वो NDTV के सूक्ष्म हिन्दू-मुस्लिम प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए सबसे उपयुक्त थी। इसलिए, NDTV ने उनसे यह पूछना सबसे अच्छा समझा कि वह हिजाब और भारत में इसके कारण हुए विवाद के बारे में क्या सोचती हैं। एंकर ने पूछा, “आज कल बहुत चर्चा चल रही है क्या लड़कियों को पब्लिक प्लेस पर हिजाब पहनना चाहिए या नहीं? हिजाब पहनने के बारे में आपकी क्या राय है?” ऐसा लगता है एंकर ने काफी मेहनत कर के ये प्रोपेगेंडा से भरा सवाल तैयार किया, जो NDTV को मसाला दे सकता था। पर, देश की इस बेटी ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।
ज़रीन का जवाब बहुत सटीक और सामान्य था। उन्होंने कहा कि यह महिला पर निर्भर है कि वह कौन से कपड़े पहनना चाहती है। इस्लामी कट्टरपंथियों पर उनके सूक्ष्म हमले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यही मजहब के ठेकेदार और कठमुल्ले मुस्लिम परिवारों विशेष रूप से महिलाओं को मजबूर करते हैं कि उन्हें अपनी शील की रक्षा के लिए हिजाब और अन्य कड़े कपड़े पहनने चाहिए, बजाये उन भेड़ियों पर अंकुश लगाने के जो ऐसी नज़र रखते हैं। इसके लिए वो धर्म को हथियार बनाते हैं और समाज को मोरल पॉलिसिंग करने के लिए मजबूर कर देते हैं।
NDTV ने बनाया ‘बात का बतंगड़’
हिजाब मामले पर जरीन के जवाब को लेकर NDTV प्रोपेगेंडा फैला रहा था। अतः एनडीटीवी ने निखत ज़रीन के जवाब को कर्नाटक में ‘हिजाबी लड़कियों’ के अधिकार का समर्थन करने वाले नेत्री के रूप में पेश करने की कोशिश की। जबकि, जरीन ने कहा था कि ‘यह पूरी तरह से उनकी अपनी पसंद है। मैं उनकी पसंद पर टिप्पणी नहीं कर सकती। मेरी अपनी पसंद है। मुझे ऐसे कपड़े पहनना पसंद है। मुझे ऐसे कपड़े पहनने में कोई आपत्ति नहीं है। मेरे परिवार को मेरे इस तरह के कपड़े पहनने से कोई ऐतराज नहीं है। इसलिए, मुझे परवाह नहीं है कि लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं।”
उन्होंने कहा, “लेकिन अगर वे हिजाब पहनना चाहती हैं और अपने धर्म का पालन करना चाहती हैं, तो यह उनकी निजी पसंद है। मुझे उनके हिजाब पहनने से कोई दिक्कत नहीं है। आखिर यह उनकी अपनी पसंद है। मैं इसके साथ ठीक हूं।” इस बहुत ही सामान्य और सटीक जवाब से झुंझलाए NDTV अपने शीर्षक में ऐसे चिल्लाने लगा जैसे कि हिजाब का सबसे बड़ा प्रस्तावक मिल गया हो। आप स्वयं NDTV की हेडलाइन पढ़िए- “हिजाब रो पर, बॉक्सिंग चैंपियन निखत ज़रीन की प्रो-च्वाइस स्ट्राइक।”
निश्चित तौर पर निखत जरीन ने महिलाओं की पसंद की बात कही। हालांकि, स्कूली लड़कियां वयस्क नहीं हैं और सभी सामान्य भारतीय बच्चों की तरह उन्हें अपने स्कूलों के नियमों का पालन करना चाहिए। जरीन ने कहीं नहीं कहा कि मुस्लिम लड़कियों के लिए स्कूलों में एक अपवाद बनाया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी ‘पसंद’ का प्रयोग कर सकें। निखत जरीन ने कट्टरपंथी इस्लामवादियों को एक जोरदार संदेश भेजा है, जो मुस्लिम महिलाओं को सिर से पैर तक खुद को ढकने के लिए मजबूर करते हैं।
हिजाब और पितृसत्ता
आपको बता दें कि मुस्लिम महिलाओं को पितृसत्तात्मक जकड की प्रतीक ‘बुर्का’ को पहनने के लिए बाध्य करनेवाले वाले अधिकांश लोगों ने इस मजहब पर कब्ज़ा कर लिया है और इसके अनुयायियों को बुद्धिहीन बनाने पर तुले हुए हैं। पहले हिजाब और फिर किताब इसी की अभिव्यक्ति है। मुस्कान को शाबाशी इसी की परिणिति है। वे नहीं चाहते कि महिलाओं को सच्चे अर्थों में मुक्ति मिले। उनकी लड़ाई अपने वर्चस्व को बनाये रखने की है।
बुर्का के समर्थकों से एक आसान सा सवाल पूछा जाना चाहिए। क्या पुरुषों की गन्दी नज़र के कारण महिलाओं को ढंक देना गन्दी मानसिकता का प्रतीक नहीं है और इसी सोंच को शिक्षा के मंदिर में भी प्रसारित करना तो और भी जघन्यतम है? इस सोंच से बचने के लिए मजहब की आड़ ले लेना मुस्लिम महिलाओं के मुक्ति के उद्देश्य को विफल कर देता है। ‘बुर्का’ और ‘हिजाब’ के समर्थन में अराजकता करने वाले लोग पुराने जमाने के दकियानूसी सोंच का अनुकरण कर रहे हैं, भले ही वह एक तथाकथित अदूरदर्शी प्रगतिशील मार्ग से हो। हालांकि, दोनों स्थितियों में अंतिम खेल यह है कि महिलाओं को यह विश्वास करने के लिए प्रेरित किया जाता है कि बुर्का और हिजाब उनकी पसंद की स्वतंत्रता है। उनके धार्मिक और निजी स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है।
मुस्लिम समुदाय के भीतर से इसके मुक्ति के लिए आवाज़ उठानी चाहिए जो महिलाओं पर दैनिक आधार पर उनके कुप्रथा को कायम रखते हैं। एनडीटीवी और अन्य मीडिया संगठन एक स्वतंत्र, सफल मुस्लिम महिला के बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। वे बहुत समय से एक सफल महिला ढूंढ रहे हैं जो हिजाब का समर्थन कर दे। मुस्कान का मानसिक दोगलापन भी सामने आ गया है। लोगों को उनके सोशल मीडिया से पता चल गया कि ये सब एक राजनीतिक प्रपंच था, मुस्कान खुद निजी जीवन में कभी बुरखा नहीं पहनती है। इसके अलावा उसके परिवारवाले कट्टर मुस्लिम संगठन PFI से जुड़े हुए हैं। अतः निखत से बात निकलवाने की कोशिश की गयी। पर, निखत जरीन ने महिलाओं के निजी ‘पसंद’ की बात की है। हालांकि, अगर स्कूली लड़कियां नियमों की पूरी अवहेलना के साथ अपनी ‘पसंद’ का प्रयोग करना शुरू कर देती हैं, तो यह न सिर्फ उनके जीवन में बल्कि पूरे देश के लिए एक स्थायी समस्या होगी।
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