राजस्थान में चल रहा कांग्रेस का चिंतन शिविर समाप्त हो चुका है। चिंतन शिविर का उद्देश्य कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य को अंधकार के गणित में जाने से रोकना था किंतु गांधी परिवार ने इसमें भी अपने हितों की सुरक्षा को सर्वोच्च वरीयता दी है। कांग्रेस ने चिंतन शिविर के बाद संरचनात्मक बदलाव करते हुए निर्णय लिया है कि अब एक परिवार के एक सदस्य को ही टिकट मिलेगा तथा एक व्यक्ति एक पद का ही दायित्व लेगा।
अपने पुत्र पुत्रियों को राजनीति में बढ़ावा
सर्वविदित है कि कांग्रेस में पुरानी पीढ़ी के नेताओं द्वारा अपने पुत्र पुत्रियों को राजनीति में बढ़ावा देने के लिए प्रयास किया जाता रहा है। कांग्रेस के कई बड़े नेता स्वयं राजनीति को विरासत में पाकर आगे बढ़े हैं। गांधी परिवार के खिलाफ बगावत करने वाले नेताओं में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र राज्यसभा सांसद हैं। महाराष्ट्र के पृथ्वीराज चव्हाण स्वयं अपने पिता डी आर चव्हाण के बल पर राजनीति में आए थे। सम्भवतः उनकी विरासत उनका कोई वंशज देखे। इसके अतिरिक्त कई ऐसे नेता और भी होंगे जो इस उम्मीद में होंगे कि यदि कांग्रेस पार्टी की गाड़ी पुनः पटरी पर वापस आती है तो वह अपने परिवार के लोगों को बढ़ावा देंगे। किंतु गांधी परिवार ने चिंतन शिविर के माध्यम से यह सुनिश्चित कर लिया है कि कांग्रेस में गांधी परिवार के अतिरिक्त कोई अन्य परिवार शक्तिशाली नहीं होने वाला।
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कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया है कि संगठन में 50 फीसदी युवाओं को महत्व दिया जाएगा। कांग्रेस की कार्यसमिति, राष्ट्रीय पदाधिकारियों, प्रदेश, जिला, ब्लॉक व मंडल पदाधिकारियों में 50 प्रतिशत पदाधिकारियों की आयु 50 वर्ष से कम हो। इतना ही नहीं चुनाव में भी 50 फीसदी टिकट युवाओं को देने का लक्ष्य रखा गया है। गांधी परिवार ने 50% नेतृत्व युवाओं को देने की बात मनवाकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को राजनीतिक रूप से कमजोर करने का कार्य किया है। गांधी परिवार को क्या चिंता सता रही थी कि कांग्रेस के बागी वरिष्ठ नेता गांधी परिवार के नेतृत्व को समाप्त करने का कार्य कर सकते हैं।
राहुल गांधी के नेतृत्व पर प्रश्न
गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं द्वारा राहुल गांधी के नेतृत्व पर बार-बार प्रश्नचिह्न लगाये जाते रहे हैं। किंतु अब इन नेताओं को चित करने के लिए गांधी परिवार युवा नेताओं के ऊपर विश्वास जता रहा है, राहुल गांधी जानते हैं कि उनके लिए नए युवा चेहरों को अपने नियंत्रण में रखना आसान होगा।
कांग्रेस की असल समस्या पार्टी में युवा नेतृत्व की कमी नहीं बल्कि विचारधारा के स्तर पर उसे लगातार मिल रही पराजय है। कांग्रेस के पास भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद तथा विकास की राजनीति का उत्तर नहीं है। भाजपा के विकल्प के रूप में शासन चलाने के लिए उनकी नीतियां क्या होंगी इसका कोई रोडमैप नहीं है। किंतु गांधी परिवार ने चिंतन शिविर में इन मुद्दों को प्राथमिकता नहीं दी। गांधी परिवार की प्राथमिकता पार्टी में हो रही बगावत को नियंत्रित करना और भविष्य में बागी नेताओं की आवाज को बंद करने का तरीका खोजना था।
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