ईश्वर कर्मों के आधार पर फल देता है, यह बात तब चरितार्थ होती है जब किसी के कर्मों को वास्तव में वो फल मिलता है जिसका वो वास्तविक अधिकारी होता है। सोमवार को बेंगलुरु में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत पर वहीं पड़े एक माइक से हमला किया गया और फिर उन पर स्याही फेंक दी गई। यह स्याही काण्ड वहीं उपस्थित कुछ अन्य किसानों ने अंजाम दिया जिनकी टिकैत से मतभिन्नता थी।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे अब ये प्रतीत हो चुका है कि जिन राकेश टिकैत के टेसुए देख घर को रवाना हो चुके किसान, किसान आंदोलन के लिए लौट आए थे आज उन्हीं राकेश टिकैत की स्थिति ऐसी हो चुकी है कि न तो उनके हाथ में संगठन है और न ही वो कार्यकर्ता जो उनके लिए किसान आंदोलन के समय कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे।
Bengaluru | No security has been provided by local police here. This has been done in collusion with the government: Bhartiya Kisan Union leader Rakesh Tikait on ink attack on him pic.twitter.com/P5Jwcontc7
— ANI (@ANI) May 30, 2022
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बेंगलुरु में टिकैत का हुआ घोर अपमान
दरअसल, बेंगलुरु में सोमवार को उस समय अफरा-तफरी मच गई जब किसान नेता राकेश टिकैत पर एक संवाददाता सम्मेलन में काली स्याही फेंकी गई। समाचार एजेंसी एएनआई द्वारा साझा किए गए दृश्यों में भारतीय किसान संघ (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत का चेहरा स्याही से सना हुआ देखा जा सकता है। हंगामा होते ही आसपास के लोग एक-दूसरे पर कुर्सियां फेंकते नजर आए। कार्यक्रम के दौरान कुछ अन्य किसान नेता भी उपस्थित थे। इस क्षण के बाद सबसे बड़ा सवाल जो सबके मन में आया वो ये था कि जिन राकेश टिकैत ने जनवरी 2021 को किसान आंदोलन की लगभग समाप्ति होने के बाद रोना शुरू कर दिया था और अपने-अपने गांव की ओर रवाना हो चुके किसानों का हृदय परिवर्तन कर दिया था आज उन्हें उसी किसान समुदाय के लोग पीटने को आतुर हैं।
यह तब हुआ जब हाल ही में उनके संगठन से दोनों भाइयों, भारतीय किसान यूनियन के निवर्तमान अध्यक्ष नरेश टिकैत और निवर्तमान राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत को संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने हाल ही में राकेश टिकैत को निष्कासित कर दिया था जो 2020-21 में किसान आंदोलन का चेहरा थे। राकेश टिकैत के अलावा उनके भाई नरेश टिकैत को भी बीकेयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है। किसान नेताओं ने टिकैतों पर ‘राजनीति खेलने’ और ‘राजनीतिक दल के हित में काम करने’ का आरोप लगाया है। जिसके बाद दोनों को संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और दोनों के हाथ में संगठन के नाम पर अपना एक गुट ही बचा है जिसमें पहले से ही लोग अलग-थलग पड़े हुए हैं।
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तीव्रता से बदली हैं स्थितियां
यह सब घटनाक्रम इतनी तीव्रता से बदले हैं कि अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि कौन कब कैसे अलग-थलग कर दिया गया और वो भी वो चेहरे जो प्रमुख रूप से उग्र दिख रहे थे। दोनों भाईयों के प्रति ऐसी अविश्वसनीयता कोई 4 दिन पुरानी तो हो नहीं सकती। निश्चित रूप से यह किसान संगठन और उन किसान परिवारों की मजबूरी ही थी कि आंदोलन चलता रहे इसलिए अपने भीतर की सरफुट्टवल जगजाहिर नहीं होने देते हैं। जैसे ही आंदोलन अपने अंत पर पहुंचा, सगंठन तो संगठन बाहरी राज्यों के किसानों ने भी अपना निर्णय लेते हुए नाराज़गी व्यक्त करनी शुरू कर दी।
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निस्संदेह, यदि इसकी सत्यता को देखें तो निश्चित रूप से राकेश टिकैत के कर्मों का फल उन्हें मिला है। बक्कल तार देने वाले टिकैत ब्रदर्स के असल में अब खुद के ही बक्कल तर गए हैं। सच कितना भी छुपाने का प्रयास हुआ हो, अन्तोत्गत्वा टिकैत की कुटाई के बाद से सामने आ ही गया।