क्या आपको याद है कि केरल ने कथित तौर पर पिछले साल कोविड-19 टीकों की शून्य बर्बादी हासिल करने का दावा किया था। पर, अब पिनाराई सरकार का झूठ पकड़ा गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार केरल वास्तव में लगभग 20 प्रतिशत वैक्सीन बर्बादी के लिए जिम्मेदार है। रिपोर्टों के अनुसार, केरल में विशेष रूप से निजी अस्पतालों में, टीकों के लिए कोई खरीदार नहीं हैं जिसके कारण टीकों की बर्बादी हो चुकी है। यहां तक कि सरकार की ओर से मुहैया कराए जा रहे मुफ्त टीके भी खत्म हो चुके हैं। केरल प्राइवेट हॉस्पिटल्स एसोसिएशन के महासचिव डॉ अनवर एम अली ने कहा, ”सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद अब टीकों की ज्यादा मांग नहीं है, कुछ अस्पताल लोगों को मुफ्त टीकाकरण के लिए भी आकर्षित नहीं कर सके। इसके चलते वैक्सीन का कुछ स्टॉक खत्म हो जाने पर डंप कर दिया गया। नतीजतन, अस्पतालों को भारी नुकसान हुआ है और हमने कोविड के टीके की खरीद में और निवेश नहीं करने का फैसला किया है।”
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केरल सरकार का फ्लॉप मॉडल
क्वालिफाइड प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के सचिव अब्दुल वहाब के अनुसार, केरल के निजी अस्पतालों में वैक्सीन की बर्बादी एक वास्तविकता है। अब्दुल वहाब ने कहा, “हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कोई अपव्यय न हो, लेकिन अब यह असंभव प्रतीत होता है। जब सरकारी अस्पतालों में टीके आसानी से मुफ्त में उपलब्ध हैं, तो लोग उनके लिए भुगतान करने को क्यों तैयार होंगे? इसलिए या तो सरकार को सभी टीके वापस खरीद लेने चाहिए या वैक्सीन बनाने वालों को इसे निजी अस्पतालों को नहीं बेचने चाहिए, अन्यथा वैक्सीन की बर्बादी जारी रहेगी।” रिपोर्ट के अनुसार, केरल के निजी अस्पतालों ने दूसरी लहर के चरम के दौरान जब टीकों की भारी मांग बढ़ गई थी, तब टीकों का स्टॉक कर लिया था। निजी अस्पतालों ने निर्माताओं से 20 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के टीके खरीदने के लिए 5% ब्याज पर बैंक ऋण लिया।
हालांकि, वर्ष 2021 में ओणम के बाद निजी अस्पतालों में भुगतान किए गए टीकों के लिए आने वाले लोगों में गिरावट आई है क्योंकि सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त स्टॉक था। इसके साथ, अधिकांश अस्पतालों में लगभग-एक्सपायरी टीकों को बदलने के सरकार के प्रयासों के बावजूद 10% से 20% टीके बर्बाद हो गए। केरल के स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “इसका मुख्य कारण यह है कि हम बदले हुए टीकों का क्या करते हैं? निजी अस्पतालों में अब टीकों के लिए कोई खरीदार नहीं हैं। राज्य भर के अधिकांश निजी अस्पताल इस समस्या से पीड़ित हैं। हालांकि, त्रिशूर और एर्नाकुलम जिलों में स्थिति गंभीर है।” जाहिर है कि कई निजी अस्पतालों को हाल ही में समाप्त हो चुके कोविशील्ड स्टॉक के कारण भारी नुकसान हुआ है। हाल ही में कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाले सीरम इंस्टीट्यूट ने भी कीमतों में कटौती की है, जिससे इन निजी अस्पतालों को घाटा हुआ है।
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केरल सरकार ने लोगों को मरता हुआ छोड़ दिया!
बताते चलें कि कोविड-19 महामारी के दौरान केरल, महाराष्ट्र के साथ-साथ महामारी के उपरिकेंद्रों में से एक बन गया था। दो विपक्षी शासित राज्यों ने महामारी की दोनों लहरों में लगातार उच्च संख्या में मामले दर्ज किए। एक समय में दोनों राज्यों में देश के कुल मामलों का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा था। एक समय जहां न सिर्फ पूरा देश बल्कि विश्व कोरोना की समस्या से जूझ रहा है, वहीं केरल की पिनाराई सरकार ने अपने खराब प्रबंधन के कारण करीब 20% टिके बर्बाद कर दिए। इस बर्बादी से हमें एक बात और पता चली वो ये कि भले ही राज्य सरकारें, वामपंथी और तथाकथित उदारवादी मीडिया ने मोदी सरकार को टीके के मामले पर चाहे कितना भी कोसा हो, पर टीकों के उत्पादन और उपलब्धता के मामले में मोदी सरकार ने विश्व के लिए मील का पत्थर स्थापित किया है। एक ओर जहां केंद्र सरकार अपने बेहतरीन उत्पादन प्रबंधन और जन जागरूकता से टीकाकरण के सुदृढ़ अनुपालन को सुनिश्चित करने में लगी थी, तो वही केरल की पिनाराई सरकार न सिर्फ अपने लोगों को टीकों के अभाव में मरता हुआ छोड़ दिया, बल्कि अनुपलब्धता का बहाना बनाकर टीकों को भी बर्बाद कर दिया।
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