आंधी आए या तूफान, विश्व में कुछ भी चल रहा हो, भारतीय अपनी भावनाओं को अधिकतर ऐसे व्यक्त करते हैं जैसे उन्हें तनिक भी अंतर नहीं पड़ता। परंतु जैसे ही चुनाव, क्रिकेट या सिनेमा में से कुछ भी महत्वपूर्ण घटना निकट आए, फिर तो धमाल ही मच जाता है। जहां देखो इसकी चर्चाएं शुरू हो जाती है, लोग अपनी राय बनाने लगते हैं और तरह-तरह की चीजें निकल कर सामने आने लगती है। देश का एक ऐसा ही राज्य है- महाराष्ट्र! जहां की राजनीति पर पूरे देश की नजर टिकी होती है। इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे महाराष्ट्र के आगामी चुनाव काफी रोचक और रोमांच से परिपूर्ण होंगे।
इस बार महाराष्ट्र का राजनीतिक परिदृश्य पिछली बार से काफी अलग और विचित्र है। न तो अब सेक्युलर पॉलिटिक्स का दबदबा है, न ही शरद पवार की तिकड़मबाज़ी का जोर है और न ही अब शिवसेना में वो पहले वाली बात रही। अब भाजपा भी वो पहले वाली भाजपा नहीं रही, जो कभी शिवसेना की कनिष्ठ सहयोगी बनकर प्रसन्न थी। वर्ष 2014 में अपने बल पर सर्वाधिक सीट लाकर और 2019 में पुनः लगभग सत्ता प्राप्त कर उसने सिद्ध कर दिया कि वह शिवसेना के बिना भी महाराष्ट्र में एक शक्तिशाली पार्टी है, और जनता का समर्थन प्राप्त कर सकती है।
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खिसकने लगा है शिवसेना का वोटबैंक
अब बात आती है शिवसेना की, तो वह अपने को ‘मराठियों की पार्टी’ मानती है, जो ‘हिन्दुत्व’ के लिए लड़ती है। लेकिन अब प्रश्न उठता है, लड़ोगे किस लिए और किसके लिए? आपके मतदाता कौन हैं ठाकरे भाऊ? जिन ‘मराठा’ मतदाताओं की शिवसेना बात करती है, वे उनके हाथ से रेत की भांति फिसलते जा रहे हैं और जिस प्रकार से राज्य में अपराध और निरंकुशता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, वे या तो शरद पवार के एनसीपी या फिर देवेन्द्र फड़नवीस के नेतृत्व वाले भाजपा का हाथ थामते जा रहे हैं।
शिवसेना का वोट बैंक शरद पवार के एनसीपी की ओर कैसे जाएगा, इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है! आप माने या नहीं, परंतु एनसीपी के इस वयोवृद्ध नेता का प्रभुत्व अभी भी पश्चिमी महाराष्ट्र, विशेषकर विदर्भ क्षेत्र में व्याप्त है। अपेक्षाओं के विपरीत एनसीपी ने वर्ष 2019 में लगभग 55 सीटों पर विजय प्राप्त की थी, तो इसका अर्थ तो स्पष्ट है कि कम से कम अगले कुछ वर्षों के लिए एनसीपी कहीं नहीं जाने वाली। इसके अलावा मुसलमानों में इनकी पकड़ काफी मजबूत है, जिससे स्पष्ट है कि कम से कम एक मजबूत विपक्ष के रूप में शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी उभर कर सामने आएगी और यदि वे नहीं रहे, तो उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनके भतीजे अजीत पवार तो हैं ही।
शिवसेना को राजनीति में अस्तित्वविहीन कर देगी भाजपा
अब आते हैं इस चुनाव के एक्स फैक्टर यानी भारतीय जनता पार्टी पर, जिनकी जिंदगी का एक मकसद है – बदला। सत्ता के लोभ में उनके साथ जो विश्वासघात उद्धव ठाकरे ने वर्ष 2019 में किया था, उसे देवेन्द्र फड़णवीस भूले नहीं हैं और वो सत्ता प्राप्त किए बिना रुकने वाले भी नहीं हैं। वो अभी साम दाम दंड भेद की रणनीति के अंतर्गत महा विकास अघाड़ी के अत्याचारी शासन को नियंत्रित करने में जुटे हुए हैं, जिसका प्रमाण हमने परमबीर सिंह, अनिल देशमुख और हाल ही में हुई नवाब मलिक की गिरफ्तारियों में भी देखा है।
इसके अतिरिक्त देवेन्द्र फड़णवीस राजनीतिक रूप से भी काफी परिपक्व और कुशल हैं। शिवसेना के कभी खास रहे नारायण राणे को अपने साथ मिलाकर उन्होंने एक-एक कर उनके सभी राजनीतिक गढ़ छीनने प्रारंभ कर दिए हैं, और उन्हें सत्ता से सदैव के लिए बेदखल करने से पूर्व उन्हें सबसे बड़ा घाव देने की तैयारी में भी हैं, जो है BMC चुनाव। BMC नगरपालिका के चुनाव केवल चुनाव नहीं, बल्कि शिवसेना की लाइफलाईन है, जिसे भाजपा ने पिछली बार लगभग वेन्टिलेटर पर डाल दिया था और इस बार तो शिवसेना की इस लाइफलाईन के बचने की उतनी ही संभावना है जितनी यूपी के चुनाव में कांग्रेस के जीतने की थी।
अब बात कांग्रेस की हो ही रही है, तो वे इस चुनावी फिल्म में वही है, जो KGF में शेट्टी भाई है, एटले साइड कैरेक्टर। कभी महाराष्ट्र पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस को अब साइड से ताली बजाने में विशेष आनंद आने लगा है, क्योंकि जब तक भाजपा हार रही है, तब तक क्या दिक्कत है। लेकिन केस कोई भी हो, आगामी महाराष्ट्र चुनाव किसी धमाकेदार मसाला मूवी से कम नहीं होगी। यहीं ड्रामा होगा, एक्शन होगा, कॉमेडी होगी और सबसे ज़्यादा शिवसेना की धुलाई होगी।
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