भयानक दर से गर्भवती हो रही हैं मुस्लिम किशोर लड़कियां

मुस्लिम लड़कियां बन गयी हैं बच्चे पैदा करने की मशीन!

Muslim Teen Pregnancy

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परिवार नियोजन और जनसंख्या वृद्धि एक ऐसा विषय है, जिसे अनदेखा करना अपने आप में किसी पाप से कम नहीं होगा। इतने पर भी कुछ रिपोर्ट्स ऐसी भी हैं जिनके अनुसंधान न केवल आपको झकझोर देंगे अपितु हमारे देश के अल्पसंख्यकों के लिए एक चेतना समान है। इस लेख में जानेंगे कुछ ऐसे आंकड़े और जानेंगे कि कैसे देश में एक समुदाय में गर्भावस्था की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है और भारतीय समाज के लिए ये एक शुभ संकेत कतई नहीं हैं।

जनसंख्या वृद्धि पर हम सभी चर्चा तो बहुत करते हैं, परंतु इसके मूल कारणों और इसकी जड़ों पर मंथन बहुत ही कम करते हैं। इसी का एक महत्वपूर्ण भाग है मुस्लिम लड़कियों, विशेषकर किशोर लड़कियों में बढ़ते गर्भावस्था के मामले। प्रश्न है वो कैसे?

असल में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार 15 – 19 वर्ष के बीच जो महिलाएं गर्भवती हुई हैं, वह 2015-16 के मुकाबले 2021 में 1 प्रतिशत घटी है। ये पूर्व में 8 प्रतिशत था जो अब 7 प्रतिशत है –

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मुस्लिम लड़कियों की अवस्था से क्या नाता?

तो इसका मुस्लिम लड़कियों की अवस्था से क्या नाता? इसी रिपोर्ट में एक भयावह तथ्य भी सामने आया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, जब बात गर्भवती होने की आती है, तो 15 – 19 के आयु वर्ग में मुस्लिम लड़कियां बाकी लड़कियों को मीलों पीछे छोड़ देती है। गर्भावस्था का प्रतिशत मुस्लिमों में सर्वाधिक 8.4 प्रतिशत, 6.8 प्रतिशत ईसाइयों में, सनातनियों यानि हिंदुओं में 6.5 प्रतिशत, बौद्धों में 3.7 प्रतिशत एवं सिखों में 2.8 प्रतिशत पाया गया है।

बात यहीं तक सीमित नहीं है, NFHS की रिपोर्ट के अनुसार फर्टिलिटी रेट भले देश भर में घट रही हो परंतु जन्म देने में अब भी मुस्लिम महिलाएं अन्य महिलाओं से कहीं आगे हैं, भले ही उनका गर्भावस्था का अनुपात पहले के मुकाबले थोड़ा घटा हो।

भारत का कुल फर्टिलिटी रेट [TFR] 2016 में 2.2 प्रतिशत के मुकाबले घटकर 2021 में 2 प्रतिशत हो चुका है। फर्टिलिटी रेट क्या होता है? औसतन जितने बच्चे एक महिला को जीवन में होते हैं, उसका अनुपात है फर्टिलिटी रेट।

लेकिन NFHS रिपोर्ट की माने तो मुस्लिम महिलाओं को बाकी महिलाओं की तुलना में अधिक बच्चे चाहिए। ये हम नहीं कहते, अपितु आँकड़े इसी ओर संकेत देते हैं। जिन महिलाओं को अधिक बच्चे नहीं चाहिए, वह मुसलमानों में सबसे कम है। वहीं दूसरी ओर हिंदुओं और सिखों में भारी मात्रा में महिलायें चाहती हैं कि उनके अधिक बच्चे नहीं हो।

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बेमेल विवाहों की बाढ़

तनिक समय का पहिया थोड़ा पीछे अगर घुमाएं तो आपको स्मरण होगा कि जब मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि वे बाल विवाह संशोधन विधेयक लाएंगे, और अचानक से हरियाणा के मेवात और तेलंगाना के हैदराबाद में बेमेल विवाहों की बाढ़ सी आ गई। इन सब में रोचक बात एक थी – सब एक ही समुदाय से संबंधित थी , मानों उनकी महिलायें का और कोई उद्देश्य है ही नहीं। ऐसी रूढ़िवादी सोच से न केवल इन महिलाओं के भविष्य पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगता है, अपितु हमारे सामाजिक सद्भाव के लिए भी ये एक शुभ संकेत नहीं।

ऐसे में NFHS की इस रिपोर्ट को केंद्र सरकार को काफी गंभीरता से लेना चाहिए, यदि वह चाहती है कि जनसंख्या वृद्धि और परिवार नियोजन के विषय पर वह गंभीरता से काम करती हुई दिखाई दे, अन्यथा ये समस्या कब देश के लिए प्रलयंकारी रूप धारण कर ले, किसी को नहीं पता चलेगा।

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