समान नागरिक सहिंता, वो मांग है जो आजादी के बाद के 7 दशक बीत जाने के पश्चात समय की मांग बनकर सबके सामने आ चुकी है। इसको लेकर काई बातें इसके पक्ष तो कई विपक्ष में भी समाज में देखी जा सकती हैं। ऐसे में कई राज्य ऐसे हैं जो इसे समय से पूर्व अर्थात केंद्र सरकार के राष्ट्रीय स्तर पर अमल में लाने से पूर्व ही इसे राज्य स्तर पर लाने के लिए अपनी कमर कस चुके हैं। इसी क्रम में सबसे आगे भाजपा शासित राज्य इसका सबसे बड़ा उदाहरण बनने जा रहे हैं और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के तल्ख़ तेवर इसकी पुष्टि भी कर रहे हैं।
Everybody wants UCC. No Muslim woman wants her husband to bring home 3 other wives. Ask any Muslim woman. UCC is not my issue, it is an issue for all Muslim women. If they are to be given justice, after the scrapping of Triple Talaq, UCC will have to be brought: Assam CM HB Sarma pic.twitter.com/vsR5PJdolm
— ANI (@ANI) April 30, 2022
दरअसल, शनिवार को असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के बयान में जिस प्रमुख बात को रेखांकित किया जा रहा है वो है, “कोई भी मुस्लिम महिला नहीं चाहती कि उसके पति की 3 पत्नियां हों।” यह कहकर न केवल सरमा ने UCC (यूनिफार्म सिविल कोड) पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है साथ ही उन्होंने अन्य राज्यों के लिए भी सोचने के लिए द्वार खोल दिए हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शनिवार को कहा कि यदि मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिया जाना है, तो समान नागरिक संहिता लाना होगा। समाचार एजेंसी एएनआई के हवाले से, भाजपा के मुख्यमंत्री ने कहा कि हर मुस्लिम महिला समान नागरिक संहिता चाहती है। मुख्यमंत्री ने नई दिल्ली में कहा, “किसी भी मुस्लिम महिला से पूछिए। यूसीसी मेरा मुद्दा नहीं है, यह सभी मुस्लिम महिलाओं का मुद्दा है। कोई भी मुस्लिम महिला नहीं चाहती कि उसका पति 3 अन्य पत्नियों को घर लाए।”
समान नागरिक संहिता
निस्संदेह कोई महिला अपने पति को बांटने के लिए हामी नहीं भरेगी। इसलिए सीएम हिमंता की इस बात से तो हर कोई सरोकार रखता है कि, कोई भी मुस्लिम महिला अपने पति को बांटना पसंद नहीं करती है पर चूंकि कुछ बुद्धिहीन किताबों के ज्ञान को बांटने की आड़ में तीन-तीन चार-चार बीवियां लेकर उसे शान और अधिकार समझ बैठे हैं। सीएम हिमंता बिस्वा सरमा के बयान आने के बाद एक बार फिरसे सियासी पारा चढ़ गया है और समान नागरिक संहिता पर बहस फिर से शुरू हो गई है। कुछ भाजपा शासित राज्यों ने इसे लागू करने की बात की है, तो दूसरी ओर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहले से ही इन वार्ताओं का विरोध कर रहा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने हाल ही में एक बयान जारी कर कहा कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकारों या केंद्र द्वारा समान नागरिक संहिता को अपनाने की बात सिर्फ बयानबाजी है जिसका उद्देश्य महंगाई, बेरोजगारी आदि से जनता का ध्यान भटकाना है।
ज्ञात हो कि, सीएम सरमा के राज्य असम में ही नहीं अपितु हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी पूर्व में कहा कि उनकी सरकार इसे लागू करने के लिए तैयार है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए जल्द ही एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा।
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ऐसे में यह तो तय है कि, समय रहते समान नागरिक सहिंता राज्य स्तर पर तो लागू होनी शीघ्र ही प्रारंभ हो जाएगी ताकि सभी समाज अर्थात सर्वसमाज को एक कानून के भीतर पिरोया जा सके। जब तक सभी धर्मों के लोगों के लिए नियम और कानून एक नहीं हो जाते तब तक संसाधनों की बंदरबांट यूँही चलती रहेगी और वंचित हो चुका समाज वंचित ही रह जाएगा ऐसे में सीएम हिमंता बिस्वा ,सरमा का कड़ा संदेश कि, “कोई भी मुस्लिम महिला नहीं चाहती कि उसके पति की 3 पत्नियां हों” ने यूसीसी के लिए टोन सेट कर दी है कि सभी राज्य (प्रमुखतः भाजपा शासित) इस बात के लिए तैयार हैं कि कब और कैसे समान नागरिक सहिंता को लागू किया जाना है।