मस्त कथाएं लिखने के लिए प्रेस फ्रीडम को मिलना चाहिए पुलित्ज़र पुरस्कार

प्रेस फ्रीडम के नाम पर खुन्नस निकालना है एक मात्र लक्ष्य

प्रेस फ्रीडम

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वेस्टर्न मीडिया भारत को प्रेस फ्रीडम के नाम पर हमेशा से ही नीचा दिखाने का प्रयास करती रही है। हमेशा से ही भारत के विरुद्ध ही दिखायी देती रही है। विशेषकर भारत के मुद्दे पर तो उसका रवैया पक्षपात वाला ही रहा है। पश्चिमी मीडिया और उनके दूषित संस्थान को लगता है कि उनके द्वारा बतायी जाने वाली झूठी भारत विरोधी कहानियों को अधिक विश्वसनीयता मिलेगी लेकिन वो घोर भ्रम में है। दरअसल, “प्रेस स्वतंत्रता” के नाम पर पश्चिमी देशों के शोध संसथान द्वारा भारत के विरुद्ध नकली रिपोर्टों का ढेर तैयार किया गया है।

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नेपाल को छोड़कर भारत के पड़ोसियों की रैंकिंग में भी गिरावट

global media watchdog  की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग पिछले साल के 180 देशों में से 142वें स्थान से गिरकर 150वें स्थान पर आ गई है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल को छोड़कर भारत के पड़ोसियों की रैंकिंग में भी गिरावट आई है, जिसमें पाकिस्तान को 157वें, श्रीलंका को 146वें, बांग्लादेश को 162वें और म्यांमार को 176वें स्थान पर रखा गया है। इस साल नॉर्वे (प्रथम) डेनमार्क (दूसरा), स्वीडन (तीसरा) एस्टोनिया (चौथा) और फ़िनलैंड (पांचवां) ने शीर्ष स्थान हासिल किया जबकि उत्तर कोरिया 180 देशों और क्षेत्रों की सूची में सबसे नीचे रहा।

रूस को 155वें स्थान पर रखा गया था, जो पिछले साल 150वें स्थान से नीचे था, जबकि चीन दो स्थान ऊपर चढ़कर रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के साथ 175वें स्थान पर था। पिछले साल चीन 177वें स्थान पर था। इस बार रूस -यूक्रेन युद्ध के कारण भी रूस को रैंक में नीचे रखा गया है।

आरएसएफ 2022 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के अनुसार, नेपाल वैश्विक रैंकिंग में 76वें स्थान पर 30 अंक ऊपर चढ़ गया है। पिछले साल हिमालयी राष्ट्र को 106वें, पाकिस्तान को 145वें, श्रीलंका को 127वें, बांग्लादेश को 152वें और म्यांमार को 140वें स्थान पर रखा गया था। इन सूची को देखकर यह भी समझा जा सकता है कि  यह पश्चिमी संस्थान हमेशा एशियाई देशों को रैंकिंग में नीचे रखते हैं।

रिपोर्टर्स सेन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) ने कहा कि भारतीय अधिकारियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करना चाहिए और आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए ट्रम्प-अप या राजनीति से प्रेरित आरोपों में हिरासत में लिए गए किसी भी पत्रकार को रिहा करना चाहिए और उन्हें निशाना बनाना और स्वतंत्र मीडिया का गला घोंटना बंद करना चाहिए।

वैश्विक परिदृश्य के बारे में, आरएसएफ ने कहा कि 20वें विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक से पता चलता है कि “ध्रुवीकरण” में दो गुना वृद्धि हुई है, जो सूचना अराजकता से बढ़ी है, यानी मीडिया ध्रुवीकरण देशों के भीतर विभाजन को बढ़ावा देता है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच ध्रुवीकरण भी।

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झूठे शोध के लिए बदनाम है पश्चिमी मीडिया

इससे पहले नवीनतम वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में भारत को दुनिया के सबसे नाखुश देशों में स्थान दिया गया है, इस रैंकिंग में भारत 136वें स्थान पर है। हैप्पीनेस रिपोर्ट की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता की कल्पना इस तथ्य से की जा सकती है कि नेपाल (84), बांग्लादेश (94), पाकिस्तान (121) और श्रीलंका (127) की रैंकिंग भारत से बेहतर है। इस तरह का झूठा शोध के लिए बदनाम पश्चिमी मीडिया और संसथान की अब सड़ी हुई मानसिकता का पोल खुल चुका है। प्रेस फ्रीडम को लेकर जिस तरह से पश्चिमी संसथान मस्त कथाएं लिख रहा है उसके लिए उसे Pulitzer पुरस्कार मिलना चाहिए।

पश्चिमी समाज खुद को अधिक महत्व देता है। इन सूचकांकों और शोध में कोई वस्तुनिष्ठता नहीं है। पश्चिमी संस्थान कभी अपने देशों में हो रहे मीडिया ट्रायल के बारे में बात नहीं करती है। वो अपनी कुंठा और नफरती सोच केवल ऐसे देशों पर करके उनकी छवि खराब करना चाहती है जो देश विश्वपटल पर तरक्की कर रहे हैं।

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