अवसरवादी नेता जो करता वही राहुल गांधी ने किया, लेकिन हम कैंब्रिज यूनिवर्सिटी को नहीं छोड़ सकते

महुआ मोइत्रा, सीताराम येचुरी, सलमान खुर्शीद, मनोज झा, तेजस्वी यादव के इस ‘गिरोह’ को भारत की बात करने का अधिकार किसने दिया ?

Source: Rahul Gandhi Twitter

राहुल गांधी को एक नेता के तौर पर इस देश की जनता ने कभी पसंद नहीं किया। चुनाव-दर-चुनाव राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को जनता ने धूल चटाई है। जनता ने उनकी राजनीति को पूरी तरह से ख़ारिज़ कर दिया है। इसके बाद भी मौकापरस्त राजनेता राहुल गांधी हर जगह भारत को लेकर अपने विचार प्रस्तुत करने पहुंच जाते हैं। जहां भी जाते हैं, भारत के विरोध में बातें करते हैं। भारत की आलोचना करते हैं।

लोकतंत्र पर सवाल

लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने ‘आइडिया फॉर इंडिया’ कॉन्क्लेव का आयोजन किया। इस कॉन्क्लेव में पहुंचे राहुल गांधी ने भारत के विरुद्ध अपनी बात रखी। राहुल गांधी ने लद्दाख और डोकलाम की तुलना यूक्रेन के साथ की। इसके साथ ही विदेशी धरती पर बैठकर, विदेशी लोगों के कार्यक्रम में शामिल होकर राहुल गांधी ने कहा कि आज भारत के लोकतंत्र की स्थिति अच्छी नहीं है। बीजेपी ने पूरे देश में केरोसिन छिड़क दिया है। एक चिंगारी और हम सब एक बड़े संकट में पहुंच जाएंगे।

ऐसा पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने विदेश में जाकर भारत के लोकतंत्र को कटघरे में खड़ा किया हो, इससे पहले भी कई बार राहुल गांधी विदेशों में जाकर भारत विरोधी बयान दे चुके हैं। इसके पीछे की वज़ह है कांग्रेस पार्टी की चुनावों में बुरी हार। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के लिए लोकतंत्र की अच्छी स्थिति तो तभी होगी जब हमेशा कांग्रेस ही सत्ता में बैठी रहेगी। जनता उन्हें हरा रही है, उन्हें वोट नहीं दे रही है- देश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू चल रहा है, तो वो किसी तरह से भारत के लोकतंत्र को कलंकित करने के प्रयासों में जुटे हैं।

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केरोसिन के बयान को लेकर राहुल गांधी पर पलटवार करते बीजेपी ने कहा, ‘एक हताश कांग्रेस और उसके विफल नेता राहुल गांधी जब भी विदेशी धरती पर जाते हैं, चाहे वो लंदन हो, अमेरिका हो, सिंगापुर हो उनके व्यक्तव्य कहीं न कहीं ये दर्शाते हैं कि आज की कांग्रेस पार्टी 1984 से लेकर अब तक, देश में आग लगाने, सौहार्द बिगाडने में लगी है। लंदन में राहुल गांधी कहते हैं कि भाजपा ने देश में मिट्टी का तेल छिड़का है। राहुल गांधी जी, मिट्टी का तेल तो कांग्रेस पार्टी छिड़कती है। 1984 का जो नरसंहार हुआ, कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने कत्लेआम करवाया, उस मिट्टी के तेल को डालने वाले कांग्रेस के ही नेता थे।’

भारतीयता पर पहुंचाई चोट

इसके साथ ही राहुल गांधी ने एक बार फिर से भारतीयता की भावना पर कड़ी चोट पहुंचाई है। उन्होंने कहा, ‘हम विश्वास करते हैं कि भारत लोगों के बीच एक समझौता है, जबकि भाजपा और आरएसएस को लगता है कि भारत एक ‘सोने की चिड़िया’ है, जिसका लाभ कुछ ही लोगों को मिलना चाहिए। जबकि हम विश्वास करते हैं कि सभी का बराबर का अधिकार है।’

राहुल गांधी को अगर गंभीरता से राजनीति करनी है तो सबसे पहले अपनी ही पार्टी कांग्रेस का इतिहास पढ़ लेना चाहिए। आज़ादी के बाद से 60 साल से ज्यादा कांग्रेस पार्टी किसी ना किसी तरह से केंद्र की सत्ता में रही है। अगर कांग्रेस पार्टी ‘सभी को बराबर’ जैसे आदर्शवादी सिद्धांत में इतना ही यकीन करती थी तो इतने वर्षों तक सत्ता की मलाई चाटने के बाद उन्होंने इस सिद्धांत को जमीन पर लागू करके क्यों नहीं दिखाया ?

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कांग्रेस पार्टी के शासनकाल में इस देश में लोग भुखमरी से मर जाते थे। गरीबी से मर जाते थे। उस वक्त राहुल गांधी कहां थे ? उस वक्त उनका ये ज्ञान कहां था ? राहुल गांधी जो कह रहे हैं कि भारत लोगों के बीच ‘समझौता’ है, इस बात को कहने से पहले उन्हें शर्म से डूब मरना चाहिए। भारत लोगों के बीच समझौता नहीं बल्कि भारत लोगों की भावनाओं से- लोगों की आत्माओं से जुड़ा एक राष्ट्र है- जिसकी धमनियों में सनातन की महान परंपरा का लहू बहता है। लेकिन राहुल गांधी को भारत की महानता से कोई लेना-देना नहीं है।

राहुल गांधी को भारत और उसके साथ भारत के लोगों के संबंधों से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें बस अपनी राजनीति चमकानी है। और इसमें कोई संदेह भी नहीं है, जिस पार्टी ने एक वक्त में अपनी राजनीति के लिए भगवान राम के वज़ूद को ही नकार दिया था, उससे और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं।

‘गिरोह’ से रहना होगा सावधान!

‘आइडिया फॉर इंडिया’ कॉन्क्लेव का आयोजन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने किया था। इसलिए कुछ कठिन सवाल कैंब्रिज से भी पूछे जाने चाहिए। उनसे पूछा जाना चाहिए कि आप किस आधार पर भारत से नेताओं को भारत के मुद्दे पर बोलने के लिए चुनते हैं ? यह सवाल इसलिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस बार कैंब्रिज ने जिन्हें भारत के मुद्दे पर बात रखने के लिए बुलाया, उन्हें आपको जान लेना चाहिए।

राहुल गांधी के साथ कैंब्रिज ने इन लोगों को बुलाया था।

तेजस्वी यादव- नेता प्रतिपक्ष, बिहार विधानसभा

मनोज झा- राज्यसभा सांसद

सीताराम येचुरी- नेता, CPI (M)

सलमान खुर्शीद- कांग्रेस नेता

महुआ मोइत्रा- सांसद, टीएमसी

आप इन नेताओं के नाम एक बार फिर से देख लीजिए। इनमें से कौन-सा नेता भारत का प्रतिनिधित्व करता है जो उसे कैंब्रिज में भारत पर बात रखने के लिए बुलाया गया? इन सभी नेताओं की विचाराधारा करीब-करीब एक जैसी है। सभी ने अपने-अपने दलों के लिए या फिर अपने लिए मुस्लिम तुष्टीकरण करने में कभी कमी नहीं छोड़ी है।

यह सभी नेता या फिर इनकी पार्टियां आज मोदी लहर के सामने नतमस्तक हैं। ऐसे में किस आधार पर कैंब्रिज इन्हें अपने कॉन्क्लेव में बुलाकर भारत पर बात करता है। क्या भारतीय जनता पार्टी का विरोधी होना या फिर मोदी का विरोधी होना ही आपको बुद्धिजीवि बना देता है?

ऐसे में हिंदुस्तान के लोगों को और हिंदुस्तान की सरकारों को इस पूरे ‘गिरोह’ को समझने की जरूरत है। इस पूरे ‘गिरोह’ से बचने की जरूरत है और जब भी जैसे भी मौका मिले इस पूरे ‘गिरोह’ को तोड़ने की ज़रूरत है।

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